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दोहरा आजीवन कारावास, सर्वाधिक प्रताड़ना झेलने वाले वीर सावरकर

यदि तेल निकालने की मात्रा कम हो तो पिटाई होती थी। भोजन नहीं दिया जाता था। उसी जेल में उनके भाई भी थे पर दोनों भाई एक दूसरे से मिलना तो दूर देख भी नहीं सकते थे। पूरी जेल में सावरकर जी एकमात्र ऐसे कैदी थे, जिनके गले में अंग्रेजों ने एक पट्टी लटका रखी थी। इस पर “D” लिखा था । “D” अर्थात डेंजरस। यातनाएँ देने का यह चक्र चला लगभग ग्यारह वर्ष चला।

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मृत क्रांतिकारी के सिर को काटकर अदालत में प्रस्तुत किया : अंग्रेजों की क्रूरता की पराकाष्ठा

सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी का जन्म 10 दिसंबर, 1888 को हुआ था। जब वे दो वर्ष के थे तभी उनके

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भारतीय इतिहास की हृदयविदारक घटना

“वतन के नाम पर जीना, वतन के नाम मर जाना, शहादत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती।।” भारत को

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महान क्राँतिकारियों भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव का बलिदान

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में ऐसे बलिदानी हुये हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन और प्राण तो देश के लिये बलिदान किये

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