स्वतंत्रता संग्राम

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अंग्रेजियत के विरुद्ध संघर्ष और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पण: माधवहरि अणे

अणे पर लोकमान्य तिलक जी का प्रभाव उनके समाचारपत्र ‘मराठा’ और ‘केसरी’  के कारण पड़ा।  वे इन पत्रों के नियमित पाठक थे। 1914 में जब तिलक जी जेल से छूटकर आये तो अणे जी उनसे मिलने वालों में शामिल थे। इसी भेंट के बाद उनके तिलक जी से संबंध बने और वे तिलक जी के निकट आ गये।

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एक विस्मृत क्रांतिकारी की कहानी

जीवन यापन के लिये भिक्षावृत्ति तक करनी पड़ी। स्वतंत्रता के बाद किसी ने उनकी खबर नहीं ली। उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वाधीनता संघर्ष को अर्पण कर दिया था। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष में भी भाग लिया और अहिंसक आंदोलन में भी। किन्तु स्वतंत्रता के बाद उनके सामने अपने जीवन  जीने के लिये ही नहीं रोटी तक का संकट आ गया था। पेट भरने के लिये भिक्षावृत्ति भी की और अंत में  सड़क के किनारे लावारिश अवस्था में अपने प्राण त्यागे।

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अनसुनी वीरगाथा

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सन् 1857 में रानी अवंतीबाई लोधी को प्रथम महिला वीरांगना के रूप में माना जाता है, जिन्होंने स्वदेश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। 20 मार्च 1858 को रानी अवंतीबाई ने अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए।

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गैंदसिंह थे छत्तीसगढ़ के प्रथम बलिदानी : स्वतंत्रता संग्राम

उत्तर बस्तर (कांकेर ) जिले में चारामा के शासकीय महाविद्यालय का नामकरण शहीद गैंदसिंह के सम्मान में किया गया है,वहीं नवा रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ सरकार का अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम और महासमुंद जिले का कोडार सिंचाई जलाशय भी शहीद वीर नारायण सिंह के नाम पर है।

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वैदिक साहित्य के पुर्नप्रवर्तक श्रीपाद दामोदर सातवलेकर

हीं उनका संपर्क वे आर्य समाज से हुआ।वे आर्य समाज की वेदांत गोष्ठियों में भाग लेने लगे। उनकी व्याख्या और तर्क से समूचा वैदिक विद्वान समाज प्रभावित हुआ।उन्होंने आर्य समाज केलिये “सत्यार्थ प्रकाश”, “ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका” व “योग तत्वादर्श” का मराठी में अनुवाद भी किया।

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