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सामाजिक समरसता और भारतीय सांस्कृतिक एकता का महोत्सव महाकुंभ

भारत के इतिहास में जहाँ तक दृष्टि जाती है कुंभ के आयोजन का संदर्भ मिलता है। मौर्यकाल में भी और शुंग काल में भी। गुप्तकाल में तो कुंभ का बहुत विस्तार से वर्णन मिलता है। गुप्तकाल के इस विवरण में ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुंभ के आयोजन का उल्लेख है।

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लंका एवं अध्योध्या के बीच भगवान श्री रामचंद्र जी की अट्ठारह दिन की यात्रा

लंका विजय के बाद रामजी को अयोध्या लौटने में पूरे बीस दिन लगे। यह अवधि अनावश्यक विलंब या अपनी विजय का उत्सव मनाने की नहीं है अपितु रामजी द्वारा पूरे भारतवर्ष और प्रत्येक समाज को समरस बनाने की अवधि है

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राष्ट्र निर्माण और सामाजिक परिवर्तन का आंदोलन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

संघ की रीति-नीति में महान सनातन के आदर्श निहित हैं, मातृभूमि सर्वोपरि है,इसलिए शक्ति की उपासना और विजयादशमी के निहितार्थ की कथा समझना अपरिहार्य है। विजयादशमी पर्व के अद्भुत वृतांत का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं है, वरन् अहम की मनोवृत्ति को समझाना है,कि -अहम ही,अधर्म का मूल है और अहम ही सर्वनाश की जड़ है।

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पंच परिवर्तनों से होगा समाज में परिवर्तन

इस पंच परिवर्तन में पांच आयाम शामिल किए गए हैं – (1) स्व का बोध अर्थात स्वदेशी, (2) नागरिक कर्तव्य, (3) पर्यावरण, (4) सामाजिक समरसता एवं (5) कुटुम्ब प्रबोधन।

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