जातीय जनगणना: ब्रिटिश नीति की छाया और भारतीय समाज का विखंडन
भारत में जातीय जनगणना का इतिहास एक औपनिवेशिक विरासत है, जिसकी जड़ें 1871 में ब्रिटिश शासन द्वारा कराई गई पहली जातिगत जनगणना में हैं। यह न केवल सामाजिक विभाजन का औजार बना, बल्कि भारतीय समाज की गतिशीलता और समरसता को भी बाधित किया। आज जरूरत इस बात की है कि जातीय पहचान को विभाजन के बजाय सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम बनाया जाए — ताकि इतिहास की गलतियों से सीख लेकर एक समतामूलक भविष्य की ओर बढ़ा जा सके।
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