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छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोकपर्व गौरी गौरा पूजन

‘लोक’ आडम्बरहीन होता है। लोक जीवन सीधा-सादा ओर सरल होता है। इसलिए उसके आचार-विचार, कार्य और व्यवहार भी सीधे-सहज और सरल होते हैं। लोक के देवी-देवता और उसकी पूजा प्रार्थना भी लोक सम्मत होते हैं। जहाँ पार्वती, गौरी और शिव गौरा के रूप में लोक पूजित और लोक प्रतिष्ठित हैं ।

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छत्तीसगढ़ी लोक परम्परा में देवारी की पचरंगी छटा

छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति आज भी लोकजीवन मे संरक्षित है। सचमुच दीपावली अर्थात ‘देवारी’ छत्तीसगढ़ की संस्कृति का दर्पण है और पर्वों का महापर्व है। उजालों की फुलवारी देवारी सदैव खिलती रहे महकती रहे।

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आस्था और प्रेम का प्रतीक तीजा तिहार

लोक परंपरा के अनुसार, तीजा के अवसर पर बेटियों को साड़ी उपहार में दी जाती है। छत्तीसगढ़ में एक कहावत भी प्रचलित है: “मइके के फरिया अमोल”—यानि मायके से मिले कपड़े का टुकड़ा भी अनमोल होता है। इस दिन माताएँ अपनी बेटियों के लिए चूड़ियाँ, फीते और सिन्दूर भी लाती हैं। तीजा की इस अनोखी परंपरा को निभाने का महत्व छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में गहराई से बसा हुआ है।

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