आचार्य ललित मुनि

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भय से भक्ति तक की दिव्य यात्रा भैरव उपासना

भैरव जयंती भय से भक्ति तक की यात्रा का प्रतीक है। भगवान शिव के काल भैरव रूप की यह जयंती हमें समय, अनुशासन और आत्मबल का संदेश देती है। जानिए इसकी पौराणिक कथाएं, महत्व और आधुनिक संदर्भ।

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भक्ति आंदोलनऔर सामाजिक समरसता के प्रकाशपुंज गुरु नानक देव जी

गुरु नानक देव जी ने भक्ति आंदोलन को आध्यात्मिकता से आगे बढ़ाकर सामाजिक समरसता, नारी सम्मान और भाईचारे का प्रतीक बनाया। उनकी साखियों में मानवता और एकेश्वरवाद का जीवंत संदेश छिपा है, जो आज भी प्रासंगिक है।

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सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक छठ पूजा

छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अनमोल रत्न है, जो सूर्य देव की उपासना के माध्यम से सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनता है। प्रकृति पूजा, नारी सशक्तीकरण और पर्यावरण संरक्षण के आयामों से परिपूर्ण यह पर्व हमें सिखाता है कि सादगी में ही सच्ची समृद्धि छिपी है।

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भाई दूज की अनकही कहानी : यम-यमुना से आज तक

भाई दूज का पर्व भाई-बहन के अटूट स्नेह, विश्वास और प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, और परिवार में प्रेम का उजाला फैलता है।

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नरकासुर वध और छोटी दीपावली: असुरता पर दिव्यता की विजय का पर्व

भारतीय संस्कृति में छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि आंतरिक प्रकाश और आत्मशुद्धि का संदेश है। जानिए कैसे श्रीकृष्ण और सत्यभामा द्वारा नरकासुर वध की कथा मानव जीवन में अंधकार से प्रकाश की यात्रा का प्रतीक बनती है।

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स्वास्थ्य और समृद्धि का संगम धनतेरस

धनतेरस का पर्व केवल सोना-चांदी की खरीदारी का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, संतुलन और आयुर्वेद की परंपरा का उत्सव है। भगवान धन्वंतरि की आराधना के माध्यम से यह दिन हमें सिखाता है कि सच्चा धन शरीर और मन की समृद्धि में है।

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