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पर्यावरण की अनदेखी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: ‘पूर्वव्यापी मंजूरी’ पर रोक, 2017 और 2021 की अधिसूचनाएं अवैध घोषित

पर्यावरण संरक्षण को विकास का अहम हिस्सा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2017 में जारी की गई उस अधिसूचना को असंवैधानिक और “अवैध” करार दिया, जिसके तहत परियोजनाओं को ‘पूर्वव्यापी पर्यावरणीय स्वीकृति’ (Ex-post facto Environmental Clearance) दी जा सकती थी — यानी पर्यावरणीय मंजूरी कार्य शुरू करने के बाद ली जा सकती थी।

न्यायमूर्ति ए. एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां की पीठ ने इस अधिसूचना के आधार पर 2021 में जारी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को भी रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार अब कोई भी ऐसा परिपत्र, आदेश या अधिसूचना जारी नहीं कर सकती, जो 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना के उल्लंघन करने वालों को वैधता प्रदान करे।

पहले से मिली मंजूरियों पर असर नहीं

हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 2017 और 2021 की अधिसूचनाओं के आधार पर अब तक जिन परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी मिल चुकी है, वे यथावत बनी रहेंगी।

2017 की अधिसूचना केवल उन परियोजनाओं पर लागू थी जो 14 मार्च 2017 तक बिना पूर्व पर्यावरण मंजूरी के शुरू हो चुकी थीं। इसके बाद की परियोजनाओं को इसमें शामिल करना न्यायालय ने “स्पष्ट उल्लंघन” माना।

सख्त टिप्पणी: “यह केवल गैरकानूनी नहीं, समाज के प्रति अपराध”

न्यायालय ने अपने फैसले में दो टूक शब्दों में कहा कि पर्यावरणीय मंजूरी के बिना कार्य शुरू करना न केवल एक गंभीर अवैधता है, बल्कि यह समाज के हितों के खिलाफ भी है। अदालत ने टिप्पणी की, “पर्यावरण से जुड़े मामलों में कानून का उल्लंघन करने वालों के साथ कठोरता से निपटना चाहिए। संविधानिक अदालतों का यह कर्तव्य है कि वे पर्यावरण की रक्षा करें।”

‘विकास की आड़ में पर्यावरण की बलि नहीं दी जा सकती’

2021 की एसओपी को खारिज करते हुए अदालत ने सवाल किया कि क्या ऐसा विकास उचित है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर हो? फैसले में कहा गया, “विकास की अवधारणा में पर्यावरण का संरक्षण और सुधार एक अनिवार्य तत्व है। जो कदम जानबूझकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों को संरक्षण देते हैं, उन्हें न्यायालयों द्वारा नकारा जाना चाहिए।”

दिल्ली की हवा पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

न्यायालय ने देश में वर्तमान प्रदूषण संकट का हवाला देते हुए कहा कि आज, वर्ष 2025 में, दिल्ली जैसे शहरों में लोग सांस तक नहीं ले पा रहे हैं। “प्रत्येक वर्ष दो महीने तक दिल्लीवासी दम घुटने वाली हवा में जीने को मजबूर होते हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। ऐसे में, पर्यावरणीय उल्लंघनों को वैध बनाने वाली नीति नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।”

वनशक्ति समेत कई याचिकाओं पर आया फैसला

यह निर्णय मुंबई आधारित एनजीओ ‘वनशक्ति’ सहित अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है, जिनमें पर्यावरणीय मंजूरी से जुड़ी अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी।