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छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी के दिन लट्ठमार होली

रंग पंचमी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जिसे होली के ठीक पाँच दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और अन्य कुछ राज्यों में अत्यधिक उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इसे रंगों का उत्सव कहा जाता है, जिसमें लोग एक-दूसरे पर गुलाल और रंग डालकर हर्षोल्लास प्रकट करते हैं। इस दिन का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व भी है, जो इसे केवल रंगों का खेल न बनाकर एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में स्थापित करता है।

रंग पंचमी का मूल उद्देश्य प्रकृति में व्याप्त सात्विकता और सकारात्मक ऊर्जा को जागृत करना है। हिंदू धर्म में इसे रज-तम (नकारात्मक शक्तियों) के विनाश और सतोगुण (सकारात्मक ऊर्जा) के उदय से जोड़ा जाता है। होली जहां सामाजिक समरसता और आनंद का प्रतीक है, वहीं रंग पंचमी को दैवीय शक्तियों के पूजन और उनकी कृपा प्राप्त करने का दिन माना जाता है।

छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी का त्योहार पारंपरिक उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार होली के पांच दिन बाद आता है और इसमें रंगों की धूम देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसे एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है, तथा इस दिन भी फ़ाग गाने एवं रंग खेलने की परम्परा दिखाई देती है।

छत्तीसगढ़ का जांजगीर-चांपा जिला अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां रंग पंचमी का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन पंतोरा गांव में इसे खासतौर पर एक अनोखे अंदाज में मनाने की परंपरा है। यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर कोरबा रोड पर स्थित है। यहां रंग पंचमी के अवसर पर हर साल लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में “डंगाही होली” कहा जाता है। यह परंपरा बरसों पुरानी है और इसे उत्तर भारत के प्रसिद्ध बरसाने की लट्ठमार होली की तर्ज पर मनाया जाता है।

पंतोरा गांव की डंगाही होली को लेकर ग्रामीणों में गहरी आस्था है। मान्यता के अनुसार, इस दिन कुंवारी कन्याएं विशेष रूप से अभिमंत्रित बांस की छड़ियों का प्रयोग कर लोगों पर प्रहार करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस छड़ी की मार खाने से व्यक्ति के रोग और बीमारियां दूर हो जाती हैं और वह स्वस्थ रहता है। यही कारण है कि यहां के लोग खुशी-खुशी इस मार को सहन करते हैं और इसे मां भवानी का आशीर्वाद मानते हैं।

रंग पंचमी के आयोजन से एक दिन पहले गांव के लोग मड़वारानी देवी के जंगल से विशेष प्रकार की बांस की छड़ी लाने की परंपरा निभाते हैं। इस छड़ी को केवल एक ही कुल्हाड़ी से काटा जाता है और इसे बेहद पवित्र माना जाता है। अगले दिन रंग पंचमी के अवसर पर गांव के बैगा समाज के पुजारी इस छड़ी की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं और फिर इसे मां भवानी के मंदिर में रखा जाता है। पूजा के उपरांत कुंवारी कन्याएं इस छड़ी को मां भवानी की प्रतिमा से पांच बार स्पर्श कराती हैं, जिससे यह देवी का आशीर्वाद प्राप्त कर लेती है। इसके बाद मंदिर परिसर में उपस्थित ग्रामीणों पर इस छड़ी से प्रहार किया जाता है, जिसे वे सहर्ष स्वीकार करते हैं। इस अनोखी परंपरा के चलते पंतोरा गांव की होली पूरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध हो चुकी है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

रंग पंचमी का एक और भव्य आयोजन पीथमपुर गांव में होता है, जो जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर की दूरी पर हंसदेव नदी के किनारे स्थित है। यहां बाबा कलेश्वरनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां रंग पंचमी के अवसर पर सात दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। रंग पंचमी के अवसर पर बाबा कलेश्वरनाथ की चांदी की पालकी में शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए पूरे छत्तीसगढ़ से भक्तगण उमड़ पड़ते हैं।

बाबा कलेश्वरनाथ की इस शोभायात्रा को “बाबा की बारात” के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें नागा और वैष्णव संप्रदाय के साधु विशेष रूप से शामिल होते हैं। इस अवसर पर बाबा कलेश्वरनाथ पंचमुखी स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। मान्यता है कि इस दिन बाबा के दर्शन मात्र से निसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और पेट संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है। इस मेले की खास बात यह भी है कि इसमें हर साल देशभर से नागा और वैष्णव साधु भाग लेने आते हैं, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि यह यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का अद्भुत संगम भी है। पंतोरा की डंगाही होली जहां शक्ति की उपासना और शारीरिक शुद्धिकरण का प्रतीक है, वहीं पीथमपुर का मेला बाबा कलेश्वरनाथ की भक्ति और चमत्कारी दर्शन का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। इन दोनों स्थानों पर हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और अपनी आस्था प्रकट करते हैं। छत्तीसगढ़ की यह विशेष रंग पंचमी पूरे राज्य में अपनी अनूठी पहचान बनाए हुए है, जो इसे एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्व के रूप में स्थापित करती है।

इसके अतिरिक्त रंग पंचमी को पूरे देश में विभिन्न प्रकार के समारोहों का आयोजन किया जाता है। विशेष रूप से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के इंदौर में इसे अत्यधिक भव्यता के साथ मनाया जाता है। इंदौर में आयोजित होने वाली पलटन की गेर विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं और शहर की सड़कों पर रंगों की धूम मचती है। ढोल-नगाड़ों की धुन पर लोग थिरकते हैं और आसमान में रंगों की वर्षा होती है। इस आयोजन में पारंपरिक तरीके से रंगों का खेल खेला जाता है, जिसमें उत्सव का आनंद कई गुना बढ़ जाता है।

राजस्थान में भी रंग पंचमी उत्साह के साथ मनाई जाती है। राजस्थान के जैसलमेर के महल के मंदिर में भव्य उत्सव का आयोजन होता है और लोकनृत्य का आयोजन होता है। सभी दिशाओं में रंग-गुलाल उड़ाए जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में इस दिन मेला लगता है। पुष्कर में रंग पंचमी पर किसी एक व्यक्ति को वहां के राजा का रूप प्रदान कर, सवारी भी निकाली जाती है।

वहीं मेवाड़ के प्रसिद्ध कृष्णधाम चारभुजानाथ मंदिर में रंग पंचमी पर ठाकुरजी को चांदी की पिचकारी से स्वर्ण-रजत के कलश में रंग भरकर होली खेलते हुए सजाया जाता है। इस दिन ठाकुरजी को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं और मंदिर के शिखर पर नी ध्वजा चढ़ाई जाती है।

इसके बाद मध्याह्न में स्वर्ण कलश में जल लाकर ठाकुरजी को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद गर्भगृह से ठाकुरजी का बाल विग्रह मंदिर परिसर में लाया जाता है। पुजारियों द्वारा हरजस गायन किया जाता है और आनंद से रंगोत्सव मनाया जाता है।

गोवा कोंकण में रंग पंचमी पर शिमगो उत्सव मनाया जाता है। । इसे शिमगा, शिग्मो, शिशिरोत्सव या शिमगोत्सव भी कहा जाता है। इस दिन पंजिम में भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। साहित्यिक, सांस्कृतिक और पौराणिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस अवसर पर मिठाई के साथ-साथ शगोटी नामक मांसाहारी व्यंजन बनाया जाता है।

मथुरा वृंदावन में रंग पंचमी के दिन ही मंदिरों में आयोजित होने वाली पांच दिवसीय होली उत्सव का समापन होता है। इस दिन यहां देवालयों में श्री राधा-कृष्ण को गुलाल अर्पित करने के बाद भक्तों पर अबीर-गुलाल उड़ाया जाता है। रंग पंचमी पर वृंदावन के श्री रंग नाथ मंदिर में गुलाल की होली का आयोजन होता है और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें हाथी पर सवार होकर मंदिर के सेवायतगण पूरे वृंदावन में गुलाल उड़ाते हुए निकलते हैं।

महाराष्ट्र में इसे धूलिवंदन के नाम से भी जाना जाता है, जहां लोग रंगों के माध्यम से खुशी मनाते हैं और आपसी भाईचारे को मजबूत करते हैं। गांवों और छोटे कस्बों में यह पर्व पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, जिसमें लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर रंग लगाते हैं और आनंद का अनुभव करते हैं।

इंदौर, भोपाल और मालवा क्षेत्र में गेर उत्सव मनाया जाता है। नगर निगम की ओर से होली उत्सव मनाया जाता है, शोभायात्रा निकाली जाती है और सड़कों पर निकले हुरियारों पर रंग डाला जाता है। नृत्य संगीत नाटिका का आयोजन होता है। महाकाल मंदिर में टेसू के फूलों, चंदर, केसर से निर्मित सुगंधित रंग से बाबा महाकाल के साथ इस दिन होली खेली जाती है। इसके लिए महाकाल की पूजा-अर्चना के बाद हाथी, घोड़े, ऊंट, रथ, चांदी के ध्वज और विजय पताका के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें शस्त्र कलाओं का प्रदर्शन भी किया जाता है।

रंग पंचमी का उत्सव केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे सभी समुदायों के लोग समान रूप से मनाते हैं। इस पर्व का संदेश यही है कि जीवन में प्रेम, सौहार्द और भाईचारा बनाए रखना चाहिए। रंग पंचमी हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में हर रंग का अपना महत्व होता है और हमें हर परिस्थिति को स्वीकार करते हुए आनंदमयी जीवन जीना चाहिए। इस प्रकार, रंग पंचमी केवल एक साधारण पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह दिन हमें रंगों की खुशी के साथ-साथ जीवन में सकारात्मकता को अपनाने का संदेश भी देता है।

One thought on “छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी के दिन लट्ठमार होली

  • March 19, 2025 at 09:59
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    बहुत सुंदर वर्णन 💐💐💐💐💐

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