पंचमहाल के पथ पर पथिक, पावागढ़, चम्पानेर : तरुण शुक्ला
हालोल के पास पावागढ़ पर्वत है, जिसकी तलहटी में चाम्पानेर बसा हुआ है। जो अब छोटा सा गांव है। चाम्पानेर छोटे से कालखंड के लिए सुल्तानों के समय गुजरात की राजधानी बना था। यहाँ शैव, जैन और मुस्लिम स्थापत्य है। इसी से उसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया है।
चाम्पानेर में सुल्तानों ने काफी निर्माण करवाये, उसमें से आज कुछ मस्जिदे बची हुई है। जोकि बड़ी अच्छी हालत में गांव में और आसपास जंगल मे बिखरी हुई है। इस इलाके में आज भी तेंदुए सरीखे जानवर काफी तादाद में है। पावागढ़ पर्वत के ऊपर की मौलिया टूक पर तालाब किनारे सोलंकी युग का पंचमहल का सब से पुराना नौंवी सदी का लकुलीश मंदिर है।
पंचमहाल के पथ पर पथिक : तरुण शुक्ला
जो है तो छोटा लेकिन उसकी दीवारों पर बेनमुन मुर्तिया उकेरी गयीं है। प्रवेशद्वार के ललाट बिम्ब पर लकुलीश की मूर्ति है। मंदिर की बाह्य दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु,महेश, वीरेश्वर, नटराज, योगासन स्थित शिवजी, कल्याणसुन्दर, दक्षिणामूर्ति, गजेंद्र मोक्ष, इंद्र, अम्बिका, सुरसुन्दरी इत्यादि शिल्प है।
यहाँ का षड्भुज शिल्प अर्क (सूर्य ) प्रमुख त्रिदेव का ब्रह्मेशनार्क दर्शनीय है। जिसका एक हाथ खंडित हैं। बाकी के हाथों में त्रिशूल, स्त्रुक, पद्म और सर्प है। मूर्ति के पांव के पास हंस, अश्व और नंदी वाहन है। मंदिर स्थानीय पत्थर से बना है। भगवान लकुलीश शिवमार्गियो के पाशुपत सम्प्रदाय के स्थापक थे, जो कि ईसा की दूसरी शताब्दी में वडोदरा के पास कायावरोहन में जन्मे थे। वह भगवान शिव का अवतार माने जाते है।
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यहाँ स्वेताम्बर और दिगंबर दोनों के जैन मंदिर है, जोकि तेरहवीं शताब्दी के है। कालिका माता की ओर जाते रास्ते की दोनों ओर दिवारों में पुरानी मूर्तियाँ जड़ी हुई है। तलहटी से पहाड़ ऊपर जाने के लिये आधे पहाड़ तक मोटरकार जा सके ऐसा पक्का रास्ता है। बाद में चाहे तो उड़नखटोला से या फिर पगथिया (सोपान )से महाकाली माता के मंदिर तक जा सकते है।
शक्ति पीठ कालिका माता मंदिर में यंत्र की पूजा होती है , यहाँ कोई मूर्ति नही है । कालिका मन्दिर के ऊपर सदन शाह पीर की दरगाह है। पावागढ़ का किला और उसकी बहुस्तरीय रचना उसे अभेद्य बनाती थी। फिर भी माताजी के श्राप से या आपसी फूट से या मुस्लिम आक्रांताओं के बेहतर हथियारों की वजह से चौहान राजा हारे और उन्हें दूर छोटा उदैपुर के जंगल मे जाकर बसना पड़ा । पावागढ़ में चैत्री और आसो नवरात्र में मेला लगता है। अब तो यहाँ राज्य सरकार पावागढ़ महोत्सव भी आयोजित करती है।
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पावागढ़ से कुछ दूरी पर जंगल मे जंड हनुमान का मंदिर है, हनुमान जी की मूर्ति अट्ठारह फिट ऊंची है। यहाँ भी आसपास काफी सारी मूर्तियाँ और शिल्प बिखरा पड़ा है। पास के जम्बुघोड़ा में वन विभाग के गेस्ट हाउस और प्राइवेट रिसोर्ट है। जहाँ आकर लोग रुकते हैं और वन्यजीवन का मज़ा लेते है।
यहाँ पर पंच महाल का एकमात्र हथनी माता धोध (water fall) है । पास के शिवराजपुर में मेंगेनिज धातु की खदानें है, जिसमे से अंग्रेजो ने काफी धातु निकाली थी, करीब करीब खाली होने के बाद अब खदानें बंद कर दी गयी है।
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पंचमहाल जिला वक़्त के गुजरने का साथ साथ आज़ादी की खुली हवा में अब तो विकास की दौड़ में सामिल हो गया है। यहाँ माता सरस्वती की ऐसी कृपा हुई कि आज पूरे गुजरात मे पंचमहाल के शिक्षक शिक्षा का प्रसार करते हुए फैले है। जबकि कडाना डेम, पानम डेम, माछण नाला डेम और अन्य छोटे डेम बने और बारह महीने पानी मिलने लगा, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ गया।
साथ मे पशु पालन भी एक व्यवसाय के रूप में स्वीकारा गया तो यहां की पंचमहाल डेरी के दूध आधारित उत्पादन गुजरात के साथ दिल्ली, कोलकाता आदि जगहों पर जाने लगे। इण्डस्ट्रियल पार्क बने और विविध वस्तुए यहाँ उत्पादित होने लगी है। हाँ, गोधरा जैसा कि सब जानते है, 2002 के हादसे से जग कुख्यात हो गया। जो नही होना चाहिए था।
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पवित्र भूमि भारत का एक जिला अगर इतनी सारी पुरानी धरोहर और कुदरती संपदा से भरपूर है, तो अगर ध्यान से देखा जाय तो हमारे देश का कोना-कोना विपुल आकर्षण का केंद्र है या बन सकता है। आओ हम हमारी विरासत देखे, सराहे और आने वाली पीढ़ी के लिए उसे सम्हाले।