futuredखबर राज्यों से

न्यायपालिका पर ‘हस्तक्षेप’ के आरोपों के बीच सुप्रीम कोर्ट में मुर्शिदाबाद हिंसा पर याचिका पर सुनवाई

हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल और वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद न्यायपालिका पर संसद और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप के आरोपों की चर्चा देशभर में हो रही है। इसी संदर्भ में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बहस फिर से सामने आई।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्र सरकार को अनुच्छेद 355 और 356 के तहत हस्तक्षेप करने की मांग की गई थी। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन ने कुछ नए दस्तावेज़ों को रिकॉर्ड पर लाने की अनुमति मांगी, जिस पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “आप चाहते हैं कि हम केंद्र को आदेश दें? वैसे भी हम पर पहले से ही संसद और कार्यपालिका के काम में दखल देने का आरोप लगाया जा रहा है।”

See also  मलेरिया मुक्त छत्तीसगढ़ अभियान का 12वां चरण प्रभावी, 2027 तक शून्य मलेरिया लक्ष्य

गौरतलब है कि इसी महीने 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास आरक्षित करने के फैसले को “ग़लत और असंवैधानिक” करार दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विधानसभा द्वारा पुनः पारित विधेयकों को राज्यपाल रोक नहीं सकते और ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिए समयसीमा भी निर्धारित की।


ALSO READ:गश्त के दौरान IED विस्फोट, CAF का बहादुर जवान शहीद

इस फैसले के बाद कुछ राजनीतिक बयान सामने आए, जिनमें बीजेपी सांसद दिनेश शर्मा ने कहा कि “भारत के संविधान के अनुसार लोकसभा, राज्यसभा या राष्ट्रपति को कोई निर्देश नहीं दे सकता। राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं और उनके निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती।”

इसके अलावा, नए वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जताई गई चिंता के बाद एक अन्य बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने भी मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर तीखी टिप्पणी की, जिसे लेकर पार्टी ने बाद में खुद को उनके बयान से अलग कर लिया।

See also  बरसात में सांपों का खतरा और जानिए नागलोक को

इस बीच, मुर्शिदाबाद हिंसा को लेकर दायर याचिका में यह मांग की गई कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 355 और 356 के अंतर्गत कार्रवाई करे, क्योंकि राज्य की स्थिति देश की एकता और संप्रभुता के लिए खतरा पैदा कर रही है। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया कि एक उच्चस्तरीय जांच समिति गठित की जाए, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करें, साथ में दो सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी हों। यह समिति 2022 से अप्रैल 2025 के बीच राज्य में हुई हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की जांच करे।

उल्लेखनीय है कि इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को फिर से सुनवाई होनी है।

ALSO READ : छत्तीसगढ़ की ताजा खबरे

ALSO READ : उत्तर प्रदेश की खबरे

ALSO READ : राजस्थान की खबरें

ALSO READ : उत्तराखंड की खबरें

ALSO READ : घुमक्कड़ी लेख 

ALSO READ : लोक संस्कृति लेख 

ALSO READ : धर्म एवं अध्यात्म लेख 

See also  छत्तीसगढ़ में व्यापारियों को बड़ी राहत: जीएसटी संशोधन और पुरानी वैट देनदारियाँ माफ करने की पहल