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ऐसे जोगी जो सिर्फ़ संन्यासियों से ही दान लेते हैं

भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में कुंभ मेले का स्थान अनूठा है। इस भव्य आयोजन में देशभर से साधु-संत, तीर्थयात्री, और श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। इस मेले का एक विशेष आकर्षण एक विशेष जोगी होते हैं। अपने अनोखे अंदाज, अनूठी वेशभूषा, और विशेष वाद्य यंत्रों के साथ वे भगवान शिव की स्तुति में भजन और गीत गाते हुए कुंभ नगरी में विचरण करते हैं। इन जोगियों को मैं हमेशा कुंभ में देखता हूँ तथा अधिकतर हरियाणी में शिव स्तुति और भजन गाते है। इनके भजन ऊर्जा से भरे हुए होते हैं तथा सभी सन्यासी इनका सम्मान कर दक्षिणा देते हैं। तो इनके विषय में जानने की इच्छा हुई। ये जोगी अन्य किसी से दान नहीं लेते, सिर्फ़ सन्यासियों से दान लेते है।

जंगम जोगियों की उत्पत्ति

जंगम जोगी शैव संप्रदाय के साधु होते हैं, जिनकी उत्पत्ति से जुड़ी दो प्रमुख पौराणिक कथाएं हैं:

  1. शिव-पार्वती विवाह कथा: मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के समय, जब भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु को दक्षिणा देनी चाही, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। तब शिवजी ने अपनी जांघ से जंगम साधुओं को उत्पन्न किया। इन्हीं साधुओं ने विवाह की रस्में पूरी कीं और दक्षिणा स्वीकार की।
  2. गणेश उत्पत्ति कथा: एक अन्य कथा के अनुसार, माता पार्वती ने शिवजी से किसी देव की उत्पत्ति करने का अनुरोध किया। तब शिवजी ने अपनी जांघ से रक्त की बूंद गिराई, जो कुश नामक मूर्ति पर पड़ी और वह जीवित हो गई। यही जीवित मूर्ति जंगम साधुओं की उत्पत्ति का कारण बनी।

दान लेने की परंपरा

जंगम साधु विशिष्ट रूप से साधु-संतों से ही दान स्वीकार करते हैं। उनकी भिक्षा मांगने की शैली अनूठी होती है। वे सीधे हाथ से दान नहीं लेते, बल्कि अपने हाथ में पकड़ी हुई ‘टल्ली’ (एक विशेष घंटी) को उलटकर उसमें दान स्वीकार करते हैं। यह परंपरा भगवान शिव के आदेश से जुड़ी है, जिसमें उन्हें माया (धन-संपत्ति) को सीधे हाथ में न लेने का निर्देश मिला था।

जंगम साधुओं की वेशभूषा

जंगम साधुओं का भेष उनकी धार्मिक पहचान और परंपराओं का प्रतीक है।

  1. सिर पर मोरपंख: वे अपने सिर पर मोरपंख धारण करते हैं, जो विष्णु के मुकुट और कलगी का प्रतीक माना जाता है।
  2. शेष नाग की आकृति: उनके माथे या सिर पर शेष नाग की आकृति बनी होती है, जो शिवजी के गले में लिपटे नाग का प्रतीक है।
  3. टल्ली: उनके हाथ में एक विशेष प्रकार की घंटी होती है, जिसमें वे दान स्वीकार करते हैं। यह शिव के नंदी की घंटी का प्रतीक होती है।
  4. माता पार्वती के कुंडल: वे अपने कानों में पार्वती जी के कुंडल पहनते हैं।
  5. पांच देवताओं की निशानी: जंगम साधु पांच निशानियां धारण करते हैं, जो शिव, पार्वती, नंदी, शेष नाग और गणेश का प्रतीक हैं।

कुंभ मेले में विशेष भूमिका

कुंभ मेले में जंगम साधु न केवल अपनी उपस्थिति से बल्कि अपने गीतों और भजनों के माध्यम से भी श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करते हैं। वे अपने भजनों में शिव विवाह, कलयुग, और शिव पुराण की कथाओं का जिक्र करते हैं। जंगम साधु विशेष रूप से शैव संप्रदाय के सात प्रमुख अखाड़ों के सन्यासियों के शिविरों में जाते हैं। ये साधु नागा सन्यासियों से दक्षिणा प्राप्त करते हैं, लेकिन कभी हाथ नहीं फैलाते। वे जो कुछ स्वेच्छा से दिया जाता है, उसे ही उल्टे हाथ में पकड़ी घंटी में स्वीकार करते हैं। इनके वाद्य यंत्रों और भजनों की ध्वनि सुनकर नागा सन्यासी स्वयं शिविर से बाहर आकर इन्हें दान देते हैं।

परंपरा का संरक्षण

जंगम साधुओं की यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है। इस परंपरा का पालन केवल उनके वंशज ही कर सकते हैं। जंगम साधुओं के पुत्र ही इस परंपरा को आगे बढ़ाने के पात्र होते हैं। ये साधु केवल कुंभ और महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में दिखाई देते हैं। प्रत्येक पीढ़ी से कम से कम एक सदस्य जंगम साधु बनता है, जिससे इस परंपरा का आध्यात्मिक प्रभाव सदा बना रहता है।

जंगम साधु कुंभ मेले का एक अनिवार्य अंग हैं। उनकी अनूठी परंपराएं, भजन, और वेशभूषा भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की धरोहर हैं। उनका शिव भक्ति में लीन जीवन और समाज को दिया गया अध्यात्मिक संदेश आज भी प्रेरणादायक है। कुंभ मेले में उनकी उपस्थिति इसे और अधिक दिव्य और पवित्र बनाती है।

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