टिड्डी दल पहुंचा छत्तीसगढ़ कोरिया के जवारी टोला

चंद्रकांत पारगीर/कोरिया

कोरिया। पाकिस्तान से होकर राजस्थान, मध्यप्रदेश होते हुए छत्तीसगढ़ राज्य के सीमावर्ती कोरिया जिले के भरतपुर में टिडडी दल के पहुंचने को लेकर प्रशासन ने कमर कस ली है। मौके की नजाकत भांपते हुए नवपदस्थ कलेक्टर सत्यनारायण राठौर अलसुबह ही मौके पर पहुंच गए।

कोरिया जिले में पहली बार टिड्डियों का दल कल शाम को ही देखा गया, सुबह ये दल जवारीटोला और ग्राम पूंजी के बीच के जंगल में बड़ी मात्रा में इन्हें देख ग्रामीणों ने उन्हें आवाज करके भागने का प्रयास किया, इसके पहले कलेक्टर के निर्देश पर कृषि और उद्यान विभाग पहले से टिड्डियों की आने को लेकर सजग था, सुबह मनेन्द्रगढ़ से पहुँची फायर ब्रिगेड वाहन ने दवा का छोडकव करना शुरू किया, जिससे काफी संख्या में टिड्डियों के मारे जाने की बात सामने आई है, परंतु उनकी संख्या को देखते हुए लगातार छिड़काव किया जा रहा है।

घेरा बना कर भागने का प्रयास

टिड्डियों का दल कल शाम को ही ग्रामीणों के द्वारा लगाई सब्जी को चट करना शुरू कर दिया था, जिसके बाद ग्रामीणों ने बड़ा घेरा बनाकर उन्हें हांकने के रणनीति बनाई, वही फायर ब्रिगेड से दवा के छिड़काव से टिडडी दल को हटाने की कोशिश जारी है।

कलेक्टर पहुंचे अलसुबह

नवपदस्थ कलेक्टर सत्य नारायण राठौर अलसुबह बैकुंठपुर से 160 किमी दूर जनकपुर पहुंचे, वहां से काफी दूर स्थित सीधी बॉर्डर होते हुए जवारीटोला पहुंच कर टिड्डियों के नियंत्रण को लेकर वही रुके रहे, उनके साथ पूरा राजस्व अमला और मनेन्द्रगढ़ डीएफओ श्री झा और उनका पूरा अमला के साथ कृषि, उद्यान विभाग के अधिकारी कर्मचारी मौके पर उपस्थित रहे। बीते कई घण्टे से कलेक्टर सत्य नारायण राठौर वही डटे हुए है और ग्रामीणों का हौसला बढ़ा रहे है।

ऐसे पनपती हैं टिड्डियां

टिड्डियों के भारी संख्या में पनपने का मुख्य कारण वैश्विक तापवृद्धि के चलते मौसम में आ रहा बदलाव है। विशेषज्ञों ने बताया कि एक मादा टिड्डी तीन बार तक अंडे दे सकती है और एक बार में 95-158 अंडे तक दे सकती हैं। टिड्डियों के एक वर्ग मीटर में एक हजार अंडे हो सकते हैं। इनका जीवनकाल तीन से पांच महीनों का होता है। नर टिड्डे का आकार 60-75 एमएम और मादा का 70-90 एमएम तक हो सकता है।

नमी वाले क्षेत्रों में खतरा सबसे ज्यादा

बताया जा रहा है कि खतरनाक माने जाने वाले रेगिस्तानी टिड्डे रेत में अंडे देते हैं, लेकिन जब ये अंडों को फोड़कर बाहर निकलते हैं, तो भोजन की तलाश में नमी वाली जगहों की तरफ बढ़ते हैं। इससे नमी वाले इलाकों में टिड्डियों का खतरा ज्यादा होता है।

माड़ी सराई की ओर बढ़ता टिड्डी दल

कोरिया के भरतपुर के जवारीटोला के बाद अब ये दल माड़ीसरई की ओर बढ़ रहा है, यहां के ग्रामीणों ने दल के आने की जानकारी दी। जवारीटोला और पूंजी के जंगलों में अभी भी काफी मात्रा में टिड्डियों का डेरा बना हुआ है, जबकि धीरे धीरे उसके आसपास के गांवों में भी ये अपनी उपस्थिति बनाते जा रहे है।

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