भारत की प्रगति रोकने अफवाहों, सायबर षड्यंत्र और भ्रामक तथ्यों का कुप्रचार

भ्रामक खबरों और सायवर षड्यंत्र से भारत के सामाजिक जीवन में अस्थिरता पैदा करके विकास गति को कम करने के नये षड्यंत्र के संकेत मिले हैं। इसे दिल्ली के विद्यालयों में धमकी भरे ईमेल और समय निकल जाने के बाद भी कोविड वैक्सीन के साइड इफेक्ट के प्रचार से समझा जा सकता है।भारत की अर्थ व्यवस्था दुनियाँ में पाँचवे स्थान पर है और विकास गति के चलते अनुमान किया जा रहा है कि भारत अगले बीस वर्षों में भारत दुनियाँ का सबसे समृद्ध राष्ट्र होगा। यह समृद्धि केवल आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु सामरिक, तकनीकि, विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी होगी। आर्थिक विकास से यदि विश्व की महाशक्तियाँ विचलित हैं तो सामरिक समृद्धि से भारत के दो पड़ोसी चीन और पाकिस्तान विचलित हैं।

भारत में घटने वाली सभी आतंकवादी घटनाओं और कूटरचित दुष्प्रचार के तार सदैव इन दोनों देशों तक गये हैं। यह तिथि किसी से छिपा नहीं है कि इस्लामिक आतंकवादियों का केन्द्र पाकिस्तान और माओवादी हिंसकों का केन्द्र चीन है। इन दोनों प्रकार की हिंसा ने भारत की प्रगति को सदैव बाधित किया है। लेकिन भारत की कुछ सरकारें इन गतिविधियों पर उतनी प्रभावी कार्यवाही नहीं कर सकीं जितनी होनी चाहिए थी।

अब भारत सरकार ने इन दोनों दिशाओं में सख्ती से कदम उठाये हैं और घटनाओं को नियंत्रित किया है। अब इसे केवल संयोग माना जाय या वर्तमान मोदी सरकार की इच्छा शक्ति कि मोदीराज में न केवल देश के भीतर घटने वाली आतंकवादी घटनाओं पर नियंत्रण हुआ और भारत का वैभव बढ़ा अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा भी बढ़ी।

भारत में इन दिनों अठारहवीं लोकसभा के लिये चुनाव प्रक्रिया चल रही है। विकास के ये मुद्दे चुनावी वातावरण में भी हैं। दो चरणों का मतदान हो चुका है। तीसरे चरण की तैयारी चल रही है। इसी बीच आये इन दोनों बड़े समाचारों ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। पहला समाचार दिल्ली एनसीआर क्षेत्र से आया। दिल्ली नोयडा आदि क्षेत्र के 130 स्कूलों मे धमकी भरा ईमेल आया। इसकी शब्द शैली इस्लामिक आतंकवादी संगठन आईएसआईएस की भाषा से मेल खाती है। इसे भेजने के लिये अपनाई गई सर्वर तकनीकि भी आधुनिक है।

दुनियाँ में भले इस्लामिक आतंकवादियों और माओवादियों की दिशाएँ अलग हों पर भारत में घटने वाली घटनाओं में ये दोनों विचार परस्पर पूरक दिखते हैं जिसे कुछ वर्ष पहले कुख्यात आतंकवादी अफजल को दी गई फाँसी की दिल्ली में मनाई गई बरसी से समझा जा सकता है। इसमें इन दोनों धाराओं के विचार तत्व थे। इसलिये यह संभावना प्रबल होती है कि दिल्ली के स्कूलों में आये इन ईमेल्स में ये दोनों तत्व शामिल हों। इन ईमेल्स में”अल्लाह के हुकुम से काफिरों को जलाने की बात लिखी है”।

ईमेल भेजने के लिये एक अस्थाई “ईमेल एड्रेस” बनाया गया और रसियन सर्वर का इस्तेमाल हुआ। मेल भेजकर ईमेल एड्रेस समाप्त भी कर दिया गया। मेल भेजने का काम बड़े सबेरे साढ़े तीन बजे से आरंभ हुआ और साढ़े नौ बजे तक चला। इससे पहले ऐसे धमकी भरे ईमेल दिल्ली और नोयडा के अस्पतालों को भी मिले थे। ऐसी भाषा का उपयोग कुख्यात आतंकवादी संगठन आईएसआईएस करता रहा है। इस आतंकवादी संगठन का गठजोड़ पाकिस्तानी की गुप्तचर संस्था आईएसआई से होने के समाचार भी अक्सर आते रहे हैं। ईमेल के लिये भले रसियन सर्वर का उपयोग हुआ है पर यह आवश्यक नहीं है कि ये मेल रूस से ही भेजे गये हों।

तकनीक विकास के चलते इस सर्वर का उपयोग दुनियाँ के किसी भी कोने से किया जासकता है। हो सकता है इसका उपयोग भारत के ही किसी कौने से हुआ हो। पुलिस और प्रशासन इन सभी विन्दुओं पर जांच कर रही है। लेकिन इस जांच में आगे कुछ निकलेगा इसकी संभावना कम है। चूँकि इस तरह की धमकी भरे ईमेल पहली बार नहीं आये है। पिछले एक साल में ऐसे ईमेल देश के विभिन्न प्रांतों में चुके हैं। जिनमें चैन्नई और कर्नाटक के स्कूल भी हैं।

सभी ईमेल इतने “हाईटेक” थे कि कोई भी जांच किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची। बुधवार को दिल्ली एनसीआर के स्कूलों को मिले ईमेल भी हाईटेक हैं । फिर भी उम्मीद की जा रही है कि इस बार कुछ निष्कर्ष निकलेगा । भविष्य में जो भी निष्कर्ष निकले पर इस दिनों तो इन ईमेल्स ने पूरे देश एक प्रकार से एक तनाव का वातावरण पैदा किया और पूरे चुनावी वातावरण की हवा निकालने का प्रयास किया है ।

कोविड वैक्सीन के भ्रामक समाचार का राजनैतिक उपयोग

हाल ही दूसरा समाचार लंदन से आया। यह समाचार कोविड वैक्सीन के साइड इफेक्ट का भ्रम फैलाने से जुड़ा है। हालाँकि कोविड वैक्सीन के साइड इफेक्ट की अवधि केवल छै माह है। इस अवधि के निकल जाने के बाद एक याचिका दायर हुई जिसमें याचिका कर्ता ने कहा गया था कि कोविड वैक्सीन के साइड इफेक्ट से उसके खून के थक्के जमने लगे। इसके जवाब में इस दवा बनाने वाली ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश कोर्ट को उत्तर दिया कि उसकी कोविड वैक्सीन के साइड इफेक्ट की अवधि निकल चुकी है और जब कोर्ट ने साइड के बारे में पूछा तो कंपनी ने स्वीकार किया कि कोविशील्ड थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम का कारण बन सकती है, लेकिन यह बहुत रेयर होता है।

इसी फार्मूले पर भारत में कोविशील्ड वैक्सीन बनी थी जिसके 170 करोड़ डोज भारत में लगे और लगभग 63 लाख लोगों की जाॅन बची। भारत ने युद्ध स्तर पर इस वैक्सीन का निर्माण किया और विश्व के अन्य देशों को भी भेजे। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सराहना हुई और अनेक देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने आभार जताया। इस वैक्सीन के साइड इफेक्ट से भारत या दुनियाँ के किसी देश से कोई समाचार कभी सामने नहीं आया।

अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी ने भी इस वैक्सीन पर शोध किया था उनके पब्लिकेशन के अनुसार, वैक्सीन से साइड इफेक्ट का खतरा 10 लाख लोगों में अधिकतम केवल 13 लोगों को ही हो सकता है। इनमें भी दस लोग ठीक हो जाते हैं। इस तरह दस लाख लोगों में मौत की आशंका केवल एक की ही है। यह साइड इफेक्ट भी डोज लगने के छै माह के भीतर ही होनै की संभावना रहती है। इस वैक्सीन को लगे अब तो दो वर्ष निकल गये।

दुनियाँ के लगभग सभी चिकित्सा विशेषज्ञों ने दो वर्ष बाद आये इस समाचार को केवल भ्रामक बताया और कहा कि अब किसी को साइड इफेक्ट होनै की कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका द्वारा दिये गये उत्तर ने भारत में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया। इस समाचार पर उतनी चर्चा ब्रिटेन नहीं हुई जितनी भारत में हुई।

भारत के चिकित्सा विशेषज्ञों ने साइड इफेक्ट की संभावना को शून्य बताया लेकिन कुछ राज नेताओं ने समाचार को हाथों हाथ लिया और चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया। उन्हे यह समाचार मोदी सरकार पर राजनैतिक हमला बोलने का एक बहाना मिला। उन्होंने इसकी परवाह भी नहीं की कि ऐसे ब्यानों से भले उन्हे मीडिया में कुछ सुर्खी मिले पर जन सामान्य में कितना मानसिक भय उत्पन्न हो सकता है ।

वैक्सीन के मुद्दे का किसको कितना राजनैतिक लाभ मिलेगा और किसे नुकसान यह तो भविष्य में स्पष्ट हो सकेगा लेकिन वैक्सीन मुद्दे को हवा देकर जन सामान्य में एक नया दर्द जरूर दे दिया। राजनीति अपनी जगह है और राष्ट्रनीति अलग। स्कूलों को मिले धमकी भरे ईमेल और वैक्सीन दोनों मुद्दे राष्ट्रहित से संबंधित हैं।

धमकी भरे ईमेल का सीधा उद्देश्य भारत में तनाव और सामाजिक अस्थिरता पैदा करना है ताकि भारत की प्रगति रफ्तार कम हो सके और कोविड वैक्सीन के साइड इफेक्ट का भ्रामक प्रचार उस षड्यंत्र को और बल देगा । जिस कोविशील्ड से भारत में सबसे कम नुकसान हुआ, लाखों लोगों के प्राण बचे, पूरे विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी। उस वैक्सीन पर प्रश्न खड़े करना वह भी साइड इफेक्ट की अवधि निकल जाने के बाद, इसका क्या उद्देश्य है । इसे आसानी से समझा जा सकता है ।

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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