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लोकभाषा से लोकमन तक लाला जगदलपुरी की बाल रचनाओं की जीवंतता

र्तमान पीढ़ी के बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि अपनी 93 साल की जीवन यात्रा के लगभग सात दशक साहित्य साधना में लगा देने वाले साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी ने बड़ों के लिखने के साथ -साथ बच्चों के लिए भी ख़ूब लिखा।

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समकाल की आवाज़ : पुस्तक चर्चा

समकालीन हिन्दी कविता के सशक्त और महत्वपूर्ण रचनाकार,  रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक विजय सिंह छत्तीसगढ़ के जगदलपुर (जिला -बस्तर) के निवासी हैं। उनकी 73 अतुकांत कविताओं का संग्रह ‘समकाल की आवाज़ ‘ सीरिज की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में सामने आया है।उनकी चयनित कविताओं की यह किताब नई दिल्ली के न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा वर्ष 2023 में प्रकाशित की गई है। पुस्तक 132 पेज की है।

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मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को राह दिखाने वाली पुस्तक : बोल -बत्तीसा

‘बोल -बत्तीसा’ में उनके स्वयं के दोहों और मुक्तकों सहित अन्य कवियों की काव्य पंक्तियों का भी समावेश है. ये छोटी -छोटी रचनाएँ ‘गागर में सागर’ जैसी हैं. पुस्तक के मुख पृष्ठ में यह बताने का प्रयास किया गया है कि मानव जीवन में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए.

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अतीत से वर्तमान तक एक शहर की निरंतर जारी यात्रा

लेखक आशीष सिंह ने ‘रायपुर ‘ शीर्षक से प्रकाशित 194 पेज की किताब में रायपुर शहर के इतिहास को अपनी धारा प्रवाह लेखन शैली में बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस शहर के वर्ष 1867-68 के नक्शे और यहाँ के वरिष्ठ गीतकार रामेश्वर शर्मा  की कविता ‘रायपुर महिमा ‘ से की है।

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नारनौल के डॉ निखिल यादव ने महात्मा गांधी पर श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद के प्रभाव पर लिखी पुस्तक

महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल तहसील के छोटे से गांव ढाणी चुड़ेली ( फैज़ाबाद ) में जन्मे निखिल यादव सुपुत्र सुरेश कुमार यादव एवं अनीता यादव ने ” महात्मा गांधी पर श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का प्रभाव” विषय पर पुस्तक लिख कर अपने गांव का नाम सम्पूर्ण भारत में रोशन किया है।

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अपने – अपने देवधर : एक समग्र आकलन : पुस्तक समीक्षा

बुक्स क्लिनिक द्वारा सद्य: प्रकाशित ग्रंथ ‘अपने -अपने देवधर ‘ हिंदी और छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवधर महंत के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का तटस्थ भाव से किया गया एक सार्थक मूल्यांकन है। डा.देवधर महंत की रचनाधर्मिता की विस्तृत रूप से पड़ताल करने वाली इस महत्वपूर्ण कृति की प्रस्तुति का श्रेय संपादक बसंत राघव को जाता है। बसंत राघव एक अच्छे लेखक भी हैं जिन्हें लेखन की कला अपने पिता प्रसिद्ध साहित्यकार डा.बलदेव से विरासत में मिली है।

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