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नारनौल के डॉ निखिल यादव ने महात्मा गांधी पर श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद के प्रभाव पर लिखी पुस्तक

महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल तहसील के छोटे से गांव ढाणी चुड़ेली ( फैज़ाबाद ) में जन्मे निखिल यादव सुपुत्र सुरेश कुमार यादव एवं अनीता यादव ने ” महात्मा गांधी पर श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का प्रभाव” विषय पर पुस्तक लिख कर अपने गांव का नाम सम्पूर्ण भारत में रोशन किया है।

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अपने – अपने देवधर : एक समग्र आकलन : पुस्तक समीक्षा

बुक्स क्लिनिक द्वारा सद्य: प्रकाशित ग्रंथ ‘अपने -अपने देवधर ‘ हिंदी और छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवधर महंत के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का तटस्थ भाव से किया गया एक सार्थक मूल्यांकन है। डा.देवधर महंत की रचनाधर्मिता की विस्तृत रूप से पड़ताल करने वाली इस महत्वपूर्ण कृति की प्रस्तुति का श्रेय संपादक बसंत राघव को जाता है। बसंत राघव एक अच्छे लेखक भी हैं जिन्हें लेखन की कला अपने पिता प्रसिद्ध साहित्यकार डा.बलदेव से विरासत में मिली है।

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आत्मगौरव और भाषा की श्रेष्ठता का उत्सव : हिंदी दिवस

भारत के अधिकांश भागों में हिंदी ही प्रचलित थी, इसलिए इसे राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के महत्व को उजागर करने और हिंदी को हर क्षेत्र में जन-जन तक पहुंचाने के लिए 1953 से पूरे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की आधिकारिक घोषणा की गई।

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हिन्दी से लोक भाषाओं तथा बोलियों का अंतरसंबंध : हिन्दी दिवस विशेष

हिन्दी, भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ व्यापक रूप से उपयोग में आने वाली भाषा है। इसके साथ ही, विभिन्न क्षेत्रीय भाषाएँ और बोलियाँ भी अस्तित्व में हैं जो भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध करती हैं। हिन्दी और इन लोक भाषाओं और बोलियों का आपसी संबंध अत्यंत गहरा और पुराना है।

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पुस्तक -चर्चा आँसू ल पी थे महतारी ; एकांत श्रीवास्तव का कविता -संग्रह ‘अँजोर

छत्तीसगढ़ी नई कविताओं के हिंदी अनुवाद सहित एकांत श्रीवास्तव का नया कविता संग्रह ‘अँजोर’ कविता की दुनिया में नई रौशनी लेकर आया है। इस संग्रह में 42 छत्तीसगढ़ी कविताओं के साथ उनके हिंदी अनुवाद भी दिए गए हैं। कविताओं में छत्तीसगढ़ के गाँवों और लोकजीवन की सोंधी महक महसूस की जा सकती है। संग्रह को कवि ने त्रिलोचन की कृति ‘अमोला’, छत्तीसगढ़ की मिट्टी कन्हार, और कोरोना काल में खोए प्रियजनों को समर्पित किया है। संग्रह में ‘पियास’ जैसी कविताएँ जीवन और समाज के गहरे मर्म को छूती हैं, जो अपनी माटी से जुड़ी भावुकता और संवेदनशीलता का परिचय देती हैं।

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रायगढ़ की साहित्यिक समृद्धि के सूत्रधार : डॉ. बल्देवप्रसाद मिश्र

छत्तीसगढ़ का पूर्वी सीमान्त आदिवासी बाहुल्य जिला रायगढ़ केवल सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी सम्पनन रहा है।

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