पूंजीगत खर्चों में वृद्धि एवं मध्यवर्गीय परिवारों को राहत प्रदान की जानी चाहिए बजट में
जुलाई 2024 माह में शीघ्र ही केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए पूर्णकालिक बजट पेश किया जाने वाला है। हाल ही में लोक सभा के लिए चुनाव भी सम्पन्न हुए हैं एवं भारतीय नागरिकों ने लगातार तीसरी बार एनडीए की अगुवाई में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को सत्ता की चाबी आगामी पांच वर्षों के लिए इस उम्मीद के साथ पुनः सौंप दी है कि आगे आने वाले पांच वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा देश में आर्थिक विकास को और अधिक गति देने के प्रयास जारी रखे जाएंगे। अब केंद्र सरकार में वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण शीघ्र ही केंद्रीय बजट पेश करने जा रही हैं।
पिछले लगातार दो वर्षों के बजट में पूंजीगत खर्चों की ओर इस सरकार का विशेष ध्यान रहा है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान पूंजीगत खर्चों के लिए किया गया था और वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस राशि में 33 प्रतिशत की राशि की भारी भरकम वृद्धि करते हुए 10 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान पूंजीगत खर्चों के लिए किया गया था।
हालांकि, वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए भी 11.11 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में केवल 11 प्रतिशत ही अधिक है। इस राशि को यदि 33 प्रतिशत तक नहीं बढ़ाया जा सकता है तो इसे कम से कम 25 प्रतिशत की वृद्धि के साथ आगे बढ़ाने के प्रयास होना चाहिए अर्थात वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपए की राशि के स्थान पर 12.5 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान पूंजीगत खर्चों के लिए किया जाना चाहिए।
किसी भी देश की आर्थिक प्रगति को गति देने के लिए पूंजीगत खर्चों में वृद्धि होना बहुत आवश्यक है और फिर भारत ने तो वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8 प्रतिशत से अधिक की आर्थिक विकास दर की रफ्तार को पकड़ा ही है। आर्थिक विकास की इस वृद्धि दर को बनाए रखने एवं इसे और अधिक आगे बढ़ाने के लिए पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करना ही चाहिए। आर्थिक विकास दर में तेजी के चलते देश में रोजगार के नए अवसर भी अधिक मात्रा में विकसित होते हैं। जिसकी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत को बहुत अधिक आवश्यकता भी है।
भारत में पिछले 10 वर्षों के दौरान विकास की दर को तेज करने के चलते ही लगभग 25 करोड़ नागरिक गरीबी रेखा के ऊपर उठ पाए हैं एवं करोड़ों नागरिक मध्यवर्ग की श्रेणी में शामिल हुए हैं। अब भारत में गरीबी की दर 8.5 प्रतिशत रह गई है जो वित्तीय वर्ष 2011-12 में 21.1 प्रतिशत थी। गरीबी की रेखा से बाहर आए इन नागरिकों एवं मध्यवर्गीय नागरिकों ने देश में उत्पादों की मांग में वृद्धि करने में अहम भूमिका निभाई है। साथ ही, कर संग्रहण में भी इस वर्ग ने महती भूमिका अदा की है।
आज प्रत्यक्ष कर संग्रहण लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करता हुआ दिखाई दे रहा है तथा वस्तु एवं सेवा कर भी अब औसतन लगभग 1.80 लाख करोड़ रुपए प्रतिमाह से अधिक की राशि के संग्रहण के साथ आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक ने भी वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 2 लाख करोड़ से अधिक की राशि का लाभांश केंद्र सरकार को उपलब्ध कराया है तो सरकारी क्षेत्र के बैकों/उपक्रमों ने 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि का लाभ अर्जित कर केंद्र सरकार को भारी भरकम राशि का लाभांश उपलब्ध कराया है, जबकि कुछ वर्ष पूर्व तक केंद्र सरकार को सरकारी क्षेत्र के बैंकों के घाटे की आपूर्ति हेतु इन बैकों को बजट में से भारी भरकम राशि उपलब्ध करानी होती थी।
कुल मिलाकर इस आमूल चूल परिवर्तन से केंद्र सरकार के बजटीय घाटे में भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है। केंद्र सरकार का बजटीय घाटा कोविड महामारी के दौरान 8 प्रतिशत से अधिक हो गया था जो अब वित्तीय वर्ष 2024-25 में घटकर 5.1 प्रतिशत तक नीचे आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार, अब यह सिद्ध हो रहा है कि केंद्र सरकार ने न केवल अपने वित्तीय संसाधनों में वृद्धि करने में सफलता अर्जित की है बल्कि अपने खर्चों को भी नियंत्रित करने में सफलता पाई है।
पूंजीगत खर्चों में वृद्धि के साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा अपने बजट में मध्यवर्गीय नागरिकों को आय कर की राशि में छूट देने का प्रयास भी वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में किया जाना चाहिए। क्योंकि, प्रत्यक्ष कर संग्रहण में हो रही भारी भरकम 25 प्रतिशत की वृद्धि इसी वर्ग के प्रयासों के चलते सम्भव हो पा रही है। वैसे, भारतीय आर्थिक दर्शन के अनुसार भी नागरिकों/करदाताओं पर करों का बोझ केवल उतना ही होना चाहिए जितना एक मधुमक्खी किसी फूल से शहद लेती है। मध्यवर्गीय नागरिकों के हाथों में अधिक राशि पहुंचने का सीधा सीधा फायदा अर्थव्यवस्था को ही होता है।
मध्यवर्गीय नागरिकों के हाथों में यदि खर्च करने के लिए अधिक राशि पहुंचती है तो वह विभिन्न उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देता है इससे इन उत्पादों की मांग में वृद्धि दर्ज होती है और इन उत्पादों का उत्पादन बढ़ता है। उत्पादन बढ़ने से रोजगार के नए अवसर अर्थव्यवस्था में निर्मित होते हैं एवं कम्पनियों द्वारा विनिर्माण इकाईयों का विस्तार किया जाता है तथा निजी क्षेत्र में भी पूंजीगत निवेश बढ़ता है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के चक्र को बढ़ावा मिलता है जो अंततः देश के कर संग्रहण में भी वृद्धि करने में सहायक होता है। मध्यवर्गीय परिवार के आय कर में कमी करने से बहुत सम्भव है कि भारत में औपचारिक अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिले। क्योंकि कई देशों में यह सिद्ध हो चुका है कि कर की राशि को कम रखने से औपचारिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है इससे कर की दर को कम करने के उपरांत भी कर संग्रहण में वृद्धि होते हुए देखी गई है।
ऐसा कहा जाता है कि भारत में अभी भी अनऔपचारिक अर्थव्यवस्था औपचारिक अर्थव्यवस्था के करीब करीब बराबरी पर ही चलती हुए दिखाई देती है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में आर्थिक व्यवहारों के भारी मात्रा में डिजिटलीकरण करने के उपरांत भारत की अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में बहुत मदद मिली है और इसी के चलते ही वस्तु एवं सेवा कर का संग्रहण लगभग 1.80 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्रतिमाह के स्तर पर पहुंच सका है। अतः कुल मिलाकर देश में मध्यवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी तेज गति से आगे बढ़ेगी देश का आर्थिक विकास भी उतनी ही तेज गति से आगे बढ़ता हुआ दिखाई देगा।
दरअसल, देश में कर संग्रहण में आकर्षक वृद्धि के बाद ही गरीब वर्ग की सहायता के लिए भी विभिन्न योजनाएं सफलता पूर्वक चलाई जा सकेंगी। अतः वित्तीय वर्ष 2024-25 का बजट मध्यवर्गीय परिवारों की संख्या में वृद्धि को ध्यान में रखकर ही बनाया जाना चाहिए। ऐसा कहा भी जाता है कि मध्यवर्गीय परिवार गरीब परिवारों को सहायता उपलब्ध कराने में सदैव आगे रहा है।
लेखक सेवानिवृत बैंक अधिकारी एवं आर्थिक मामलों के जानकार हैं।
निश्चय ही आयकर में मध्यम वर्ग को छूट मिलनी ही चाहिए.
इस सुझाव का हम सभी स्वागत करते हैं.