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भारतीय संस्कृति में है पक्षी प्रेम की प्राचीन परम्परा

उमेश चौरसिया

इन दिनों उत्तर भारत की अनेक झीलों में विचरण करते विविध प्रकार के प्रवासी पक्षी आमजन को लुभा रहे हैं । पक्षी प्रेम और संरक्षण की बहुत ही सशक्त परम्परा भारतीय समाज में प्राचीन काल से रही है। चरक संहिता, संगीत रत्नाकर और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में पक्षियों की चारित्रिक विशेषताओं का सुन्दर चित्रण किया गया है। मनुस्मृति व पाराशरस्मृति आदि में पक्षियों के शिकार का निषेध किया गया है।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी पक्षियों के संरक्षण हेतु समुचित निर्देश मिलते हैं। रामायण, महाभारत सहित अनेक पुराणों और साहित्य में भी पक्षियों के प्रति प्रेम दिखाया गया है । प्रेमालाप करते क्रौंच पक्षी के वध को देखकर आदिकवि वाल्मिकी के मुख से प्रथम काव्यानुभूति विश्व प्रेरक है । चातक, चकोर, पपीहा, तोता, मैना, हंस, कबूतर इत्यादि पर कई काव्य, गीत रचनाएं और कहावतें आज भी लोक साहित्य में प्रचलित हैं ।

हमारी संस्कृति में पक्षियों को देववाहन के रूप में विशेष सम्मान दिया गया है। विष्णु का वाहन गरूड, ब्रह्मा और सरस्वती का वाहन हंस, कामदेव का तोता, कार्त्तिकेय का मयूर, लक्ष्मी का वाहन उल्लू, इन्द्र व अग्नि का अरूण कुंच जिसे हम फ्लैमिंगों के नाम से जानते हैं तथा वरूण का चकवाक जिसे शैलडक कहा जाता है। प्राचीन वेदों में भी पक्षियों का उल्लेख मिलता है।

ऋग्वेद के मंत्र में वृक्ष पर बैठे दो सुपर्णों के रूपक से जीव और आत्मा का अंतर समझाया गया है। अथर्ववेद के मंत्र में नवदंपत्ति को चकवा के जोड़े के समान निष्ठावान रहने का आशीष दिया गया है । यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता का तो नाम ही तित्तिर पक्षी के नाम पर है। इस प्रकार ऋग्वेद में 20, यजुर्वेद में 60 पक्षियों का विशेष उल्लेख है ।

प्यार और शुचिता के प्रतीक हंस के जोड़े में से एक की मृत्यु हो जाने पर दूसरा अपना शेष जीवन अकेले ही गुजारता है । राष्ट्रीय पक्षी मोर के मोहक पंख श्रीकृष्ण के प्रिय रहे हैं। अतिथि आगमन का सूचक और पितृ आत्मा का आश्रय माना जाने वाला कौआ एक सामाजिक पक्षी है। किसी कौए की मृत्यु पर अन्य कौए भूखे रहते हैं, ये सदैव समूह में ही मिल – बाँटकर खाते हैं ।

वाल्मिकी रामायण में निशाचर उल्लू को मूर्ख के स्थान पर चतुर कहा गया है, इसे घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। पक्षियों में श्रेष्ठ बुद्धिमान गरूड़ के नाम पर ही गरूड़ पुराण है, यह श्रीराम को मेघनाथ के मोहपाश से मुक्त कराने वाला महत्वपूर्ण पात्र भी है। शिव नाम के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को देखने मात्र से भाग्योदय हो जाता है ।

अनेक जातक व पौराणिक कथाओं में कुशल पंडित माना जाने वाले तोते के चित्र का वास्तुशास्त्र में बड़ा महत्व है। शांति के प्रतीक कबूतर को प्रेम का संदेशवाहक भी माना गया है। पंचतन्त्र की कथाओं में लोकप्रिय बगुला ध्यान, धैर्य और एकाग्रता का प्रतीक है। गोरैया को घर में सुख-शांति का द्योतक माना गया है। संगीत की प्रतीक कोयल की कूक सभी का मन हर्षाती है ।

One thought on “भारतीय संस्कृति में है पक्षी प्रेम की प्राचीन परम्परा

  • February 14, 2025 at 12:16
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    बहुत सुंदर आलेख बधाई भईया
    💐💐💐💐💐💐💐💐

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