बस्तर का गाँधी कहलाने वाले ताऊ जी : पद्म श्री धर्मपाल सैनी

बस्तर के गांधी कहे जाने वाले धर्मपाल सैनी जी का जन्म 24 जून 1930 को मध्यप्रदेश के धार जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री दयाराम सैनी व माता का नाम श्रीमती तारा देवी है। वे एक सामान्य परिवार के सदस्य थे, जो कि अपने माली के काम में लिए प्रसिद्ध थे। अपने बाल्यावस्था में ही सैनी जी पिता की आज्ञा से कक्षा तीसरी से ही धार्मिक ग्रंथ गीता का नियमित अध्ययन प्रांरभ किया।

आपने शालेय शिक्षा के समय कक्षा आठवी से ही ब्रम्हाचार्य व्रत और देश सेवा का संकल्प लिया। स्वामी दंयानन्द, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द का आकर्षण पा कर अध्ययन करते रहें। 1951 में गांधी, विनोबा, विवेकानांद साहित्य का अध्ययन किया तथा मार्क्स, लेनीन विचारों तथा समाजवादी साहित्य का अवलोकन चिंतन किया। गाँव में सफाई एवं प्रार्थना सभाओं के लिये अपने प्रेरक श्री विद्यासागर पाण्डे के साथ सेवा कार्य प्रांरभ किया। उनके छोटे-छोटे कर्तव्य पालन में राष्ट्र के प्रति भक्ति व सम्मान था।

आपने शालेय शिक्षा समाप्त कर कामर्स विषय में स्नातक की पढ़ाई किया। आनन्द इंटर कॉलेज धार में 1952 मं एथलेटिक चैम्पियंनशिप प्राप्त किया था जब 1954-55 में होलकर महाविद्यालय इन्दौर, अगरा विश्वविद्यालय,(उत्तर प्रदेश ) में अध्ययनरत थे महाविद्यालयीन शिक्षा के समय ही पूर्ण ब्रम्हचर्य जीवन जीते हुऐ व देश सेवा के लिए जीवन जीने के संकल्प लिया।

विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से प्रभावित होकर स्वयं को उनके साथ भूदान आंदोलन में लगाया। धार-झाबूआ जैसे आदिवासी व पिछड़े गाँवों का प्रवास करते व सर्वोदय दल के सदस्य के रूप में जनसेवा करते। सैनी जी के भूदान आंदोलन व स्वच्छता अभियान, आदि समाज सेवा के कार्यो में तन्मयता से आचार्य विनोबा भावे प्रसन्न थे।

सन 1955 से 1960 तक ग्राम रूपाखेड़ा जिला रतलाम (म.प्र) में अदर्श ग्राम रचना के लिए बुनियादी शिक्षा विद्यालय संचालन किया। सन 1951 से 1969 तक भूदान, ग्राम दान की राज्य व राष्ट्रीय शिविरों व पद यात्राओं में भाग लिया। अस्पृश्यता निवारण व नशाबंदी के लिए उन्मूलन कार्यक्रमों में भाग लिया।

1960 में विनोबा जी के इंदौर आगमन पर विशेष रूप मैला ढोने के विरूद्ध आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। माचला (इंदौर) और तवलाई (धार) में कार्य किया। 1969 के गांधी शताब्दी वर्ष में महात्मा गांधी जन्म शताब्दी प्रशिक्षण विद्यालय के प्राचार्य के रूप में प्रमुख भूमिका रही।

इस बीच 60 के दशक में एक बार समाचार पत्र में सैनी जी जी ने पढ़ा कि ’’बस्तर में दशहरा पर्व में सहभागिता कर वापस लौअते हुए कुछ लड़कियों के साथ कुछ लड़के छेड़छाड़ कर रहे थे। प्रतिक्रिया स्वरूप लड़कियों ने लड़को के हाथ पैर काट कर उनकी हत्या कर दी थी इस खबर ने सैनी जी के मन मस्तिष्क को हिलाकर रख दिया तब वे मन बनाए कि लड़कियों के इस साहसिक ऊर्जा को यथोचित स्थान दिलाने प्रयत्न करेंगे व लड़कियों के प्रेरित करेंगे।

इस बात की चर्चा करते हुए सैनी जी ने आचार्य बिनोवा भावे से बस्तर आने की बात कही। पहली बार तो विनोबा भावे उन्हें मना कर दिया परंतु सैनी जी के जिद पर सर्शत मान गए और 5 रू का नोट देते हुए कहा कि ’’धर्मपाल तुम्हे बस्तर में कम से कम 10 वर्ष रहकर सेवाकार्य करना होगा’’। 1976 में सैनी जी बस्तर आ गए।

बस्तर आकर जगदलपुर के समीप डिमरापाल गॉव में अपना निवास बनाया। सेवाकार्य करते लोगो से जुड़ते हुए, गाँव के लोगो से बातचित करते जन सहयोग से बालिकाओं के लिए शिक्षण की व्यवस्था की। धीरे-धीरे एक बालिका आश्रम बनाया जिसे वे आचार्य विनोबा भावे की माता श्री के 100 वें जयंती अवसर पर वर्ष 1976-77 में माता के नाम पर स्थापित किया। आज माता रूक्मिणी सेवा आश्रम डिमरापाल बस्तर की पहचान है, जिसके 37 शाखाऐं समूचे बस्तर में कार्यरत है।

माता रूक्मिणी आश्रम में रह-रहे बच्चियों को सर्वप्रथम पढ़ना-लिखना, कपड़ा पहना, स्वच्छ रहना जैसे नैतिक व पुस्तकीय पाठ के साथ ही साथ खेल की विशेष शिक्षा देना प्रांरभ किया। सैनी जी कहते है कि बस्तर के बच्चियों में अन्य क्षेत्र के आदिवासी बच्चियों की तरह अच्छी शारीरिक क्षमता है जब वे अच्छा खेलती है तो शारीरिक के साथ ही साथ मानसिक विकास भी अच्छा कर लेती है।

मै जब शुरू-शुरू बस्तर आया तो पाया कि 15-20 किलोमीटर पैदल चलना सामान्य बात है इसी कारण मैने अपने छात्रजीवन की अच्छे एथलिट की प्रतिभा को इन बच्चियों पर प्रयोग किया और निःसंदेह इसका सफल परिणाम भी मिला। वर्ष 1985 में पहली बार अपने आश्रम की छात्राओं को खेल प्रतियोगिता में सम्मीलित करने का निर्णय किया और अब परिणाम स्वरूप दो हजार से अधिक खिलाड़ी तैयार कर चुके है।

धरमपाल सैनी जी बस्तर की बच्चियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे लाने स्वयं का विशेष तरीका अपनाया इसके लिए सैनी जी ने जीवन में खेल के महत्व को विशिष्टता प्रदान करते हुए मस्तिष्क को विकसित करने व शिक्षा में सकारात्मक पहल करने का समन्वयात्मक विचार बनाया जहॉ उनके अनुसार जब वे बस्तर आए थे तब साक्षरता लगभग 10 प्रतिशत थी जो अब 50 प्रतिशत से ऊपर है।

सैनी जी की शिक्षा में मैने एक विशिष्ट बात यह पाया कि उनके साथ उनके कई आश्रम गया। मेरे क्षेत्र भ्रमण के दौरान उनकी कई शिक्षिकाओं से मिला। बहुत ही बेहतरीन आत्मनिर्भरता का विशिष्ट गुण उत्पन्न कर देना सैनी जी की शिक्षा पद्धति की विशिष्टता है। और आज परिणाम स्वरूप कई छात्राएं न सिर्फ उच्च प्रशासनिक पदों पर कार्य कर रही हैं बल्कि समूचे बस्तर के माता रूक्मिणी आश्रम की सैनी जी द्वारा तैयार की हुई छात्राएं आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़कर स्वरोजगार के क्षेत्र में भी अग्रणी है।

धर्मपाल सैनी के लिए एक महत्वपूर्ण बात कि बस्तर में आकर बस्तर के हो जाने वाले धर्मपाल सैनी को आश्रम की छात्राओं ने उनके पितातुल्य स्नेह पाकर स्वतः ’ताऊ जी’ बुलाना शुरू कर दिया और आज समूचा बस्तर ’ताऊ जी’ के नाम से जानता है। बालिका शिक्षा के विशिष्ट योगदान के भारत शासन द्वारा तत्कालिन राष्ट्रपति वेंकटरमणके हाथों वर्ष 1983 में पदमश्री सम्मान से सम्मानित हुए। वर्ष 2012 में ’द वीक’ पत्रिका ने ’मैन ऑफ द इयर’ चयनित किया। अनन्य सम्मान ’ताऊ जी’ के झोली में आते रहे है।

धर्मपाल सैनी जी कवि हृदय है वे अनेक रचनाएं रच चुके है । बस्तरपाति साहित्यीक पत्रिका ने इन पर एक विशेषांक भी निकाला अनेक साहित्यीक सम्मानो से समान प्राप्त हैं।

प्रकृति प्रेमी धर्मपाल सैनी का प्रकृति प्रेम ’इंद्रावती बचाओ’ मुहीम से स्पष्ट होता है। वे वे 91 वर्ष के होने पर भी इंद्रावती बचाओं अभियान के सदस्यों के साथ पदयात्रा करते हैं। जनजागरण का कार्य बड़े तन्मयता से करते है। वृक्षारोपण आदि कार्यां में भी सहर्ष सहभागिता करना उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

पदमश्री धर्मपाल सैनी को यूं ही ’बस्तर के गांधी’ नही कहा जाता। उनके सूझ-बूझ व शांति पूर्ण कार्यशीलता उनकी व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा है। बीजापुर में 03 अप्रैल 2021 को नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच हुए मुठभेड में सुरक्षाबल के 22 जवान शहीद हुए थे। इसके साथ ही सी.आर.पी.एफ के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मनहास लापता थे। अगले दे दिनो बाद पता चला कि वे नक्सलियों के कब्जे में है। शासन स्तर पर उनकी रिहाई की बात चल रही थी पर मामला सुलझ नही रहा था।

इस समय स्वतंत्रता सेनानी श्री धर्मपाल सैनी जी ने अपने सूझ-बूझ से मध्यस्था कर नक्सलियों से शांतिपूर्ण वार्ता किया व कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मनहास को नक्सलियों से मुक्त करवाए। जिसके लिए मुख्यमंत्री व छ.ग.शासन ने आभार मानकर श्री सैनी जी को सम्मान किया इस तरह समय-समय पर अन्य मामलो में भी शांतिपूर्ण मध्यस्थता कर मामलों को सुलझाना भी ताऊजी करते रहे हैं।

धर्मपाल सैनी जी के बस्तर आकर बस जाना बालिका शिक्षा को विकास के पायदान पर पहुंचा कर पद्मश्री सम्मान प्राप्त करना, बस्तर के बेटियों के सच्चे पालक बनकर ’ताऊ जी’ नाम से पुकारा जाना, शांतिवर्ता में मध्यस्थता कर मानवता को सम्मानित होने के कारण ’बस्तर के गांधी नाम से जाने जाना । यह सब एक आदर्श व्यक्तित्व से ही संभव हैं। मैने जब से उनको देखा, सुना, पढ़ा, मिलने-जुलने की आवृत्ति बढ़ी । उनका सानिध्य लाभ व आशिर्वाद मुझे मिलता रहा है। उनके इस समस्त अनुकरणीय पहल के लिए में समस्त बस्तर वासी व राष्ट्र की ओर से परमआदरणीय ताऊ जी पदमश्री धर्मपाल सैनी जी को उनके 92वें जन्मदिन पर स्वस्थ, सुखी व वैसे ही ऊर्जा वान बने रहने की शुभकामना प्रेषित करता हूँ।

आलेख

डॉ.रूपेन्द्र कवि
सम्प्रति-उपसंचालक
आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, क्षे.ई.जगदलपुर व साहित्कार

 

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