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जीवन की दौड़ में जीत का मंत्र आंतरिक शक्ति और धैर्य

रेखा पाण्डेय (लिपि)

बचपन में खरगोश और कछुआ की दौड़ की कहानी सभी ने सुनी-पढ़ी है। यह कहानी सरल होने के बावजूद गहरे अर्थ लिए हुए है। इसमें खरगोश और कछुआ, दोनों के स्वभाव और व्यक्तित्व में भिन्नता है। खरगोश अपनी तीव्र गति के लिए प्रसिद्ध है, जबकि कछुआ धीरे-धीरे चलता है। कहानी में, खरगोश अपनी तेज गति पर घमंड और अतिविश्वास करता है कि उसे दौड़ में कोई हरा नहीं सकता। वहीं, कछुआ आत्मविश्वासी है और अपनी सीमाओं का ज्ञान रखते हुए भी निरंतर प्रयास करता है।

यह कहानी मनुष्यों के विभिन्न स्वभाव और व्यक्तित्व को भी दर्शाती है। कछुआ मानव समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जो अपनी कमजोरियों के बावजूद संघर्ष से पीछे नहीं हटता और चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहता है। कछुआ हमें यह संदेश देता है कि निरंतरता और धैर्य से प्रयास करते रहने पर सफलता अवश्य मिलती है। दूसरी ओर, खरगोश केवल अपनी बाहरी शक्ति पर निर्भर रहता है और परिस्थितियों के बदलने का आभास नहीं करता। उसने अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने और उसका उपयोग करने का प्रयास ही नहीं किया। यह दिखाता है कि किसी के बाहरी स्वरूप को देखकर उसकी शक्ति और क्षमता का अनुमान लगाना एक बड़ी भूल हो सकती है। खरगोश ने यही गलती की और दौड़ हार गया।

कछुआ बाहरी परिस्थितियों के साथ-साथ अपनी आंतरिक शक्ति का भी आकलन करता है। वह जल और थल दोनों में संतुलन स्थापित कर दीर्घायु होता है। उसका कठोर कवच उसे न केवल सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि आत्म-अवलोकन और मनन-चिंतन का अवसर भी देता है। कछुआ समय और परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यवहार को ढालता है। मुसीबतों का आभास होने पर वह अपने कवच में सिर छिपाकर स्वयं को बचाता है। इस प्रकार, वह बाहरी और आंतरिक दोनों दुनिया से जुड़कर अनुशासन के साथ अपने कार्यों को अंजाम देता है।

कछुआ यह जानता है कि वह तेज गति से नहीं दौड़ सकता, लेकिन निरंतरता से चलते रहने की क्षमता रखता है। यही आत्मविश्वास उसे विजेता बनाता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि संसार में सुरक्षित और सुखमय जीवन जीने के लिए संघर्ष करना आवश्यक है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए बाहरी शक्ति के साथ-साथ आंतरिक शक्ति, अर्थात मन की दृढ़ता और संयम की आवश्यकता होती है। दृढ़ मनोबल जीत का पहला चरण है। कछुआ शांतिपूर्ण ढंग से, ईमानदारी के साथ अपने कार्यों को करते रहने की प्रेरणा देता है। वह यह संदेश देता है कि धीमी गति से सही, लेकिन निरंतर प्रयास करते रहने पर सफलता अवश्य मिलती है।

अपनी क्षमताओं को जानने और पहचानने के लिए हमें बाहरी दुनिया से अलग होकर आत्मचिंतन करना पड़ता है। मन को एकाग्र करने और परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए ध्यान और योग का अभ्यास किया जाना चाहिए। आत्म-अवलोकन से हम अपनी कमजोरियों और ताकतों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।

कुछ मनुष्यों में खरगोश की भांति अतिविश्वास और आत्ममुग्धता की प्रवृत्ति होती है। ऐसे लोग अपनी क्षमताओं का आकलन नहीं करते और केवल अपनी बाहरी शक्ति पर निर्भर रहते हैं। यह स्मरण रखना चाहिए कि निरंतर तीव्र गति से आगे बढ़ा नहीं जा सकता, लेकिन धीरे-धीरे चलते हुए लक्ष्य तक अवश्य पहुंचा जा सकता है।

इस कहानी के दोनों पात्रों के व्यवहार से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में सफलता के लिए आत्मचिंतन और परिस्थितियों के प्रति सजगता आवश्यक है। कछुआ हमें सिखाता है कि अपनी अंतरात्मा से जुड़े रहकर और बाहरी परिस्थितियों का अवलोकन करते हुए कर्मपथ पर निरंतर चलते रहने से सफलता निश्चित है। खरगोश की तरह अतिविश्वास और लापरवाही से जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफलता पाना संभव नहीं है।

लेखिका व्याख्याता एवं साहित्यकार हैं।

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