आत्मा की पुकार और अपने समय की खबर
किसानों और मजदूरों के दुःख-दर्द को वाणी दे कर ,भारत माता और छत्तीसगढ़ महतारी की पीड़ा को स्वर देकर, छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए हिन्दी और छत्तीसगढ़ी कविताओं के माध्यम से जन-चेतना की अलख जगाने वाले लोकप्रिय संत कवि पवन दीवान (स्वामी अमृतानंद सरस्वती ) का ताजा कविता संग्रह ‘ अम्बर का आशीष’ प्रकाशित हो गया है. सादगीपूर्ण समारोह में किताब का लोकार्पण उनके जन्म-दिन पर कल पहली जनवरी को महानदी के किनारे राजिम स्थित उनके ब्रम्हचर्य आश्रम और संस्कृत विद्यालय में संपन्न हुआ .एक लम्बे अंतराल , लगभग बीस वर्ष बाद संत कवि का यह नया काव्य-संकलन सामने आया है. यह एक सुखद संयोग है कि पहली जनवरी को नए कैलेण्डर वर्ष ईस्वी सन २०११ के आगाज के साथ सबने उनकी इस पुस्तक का भी आत्मीय स्वागत किया. इस अवसर पर उनके कवि-मित्र और प्रसिद्ध चिंतक कृष्णा रंजन (स्वामी शान्तानन्द ) ने इस महत्वपूर्ण कृति का लोकार्पण करते हुए कहा कि कविता आत्मा की पुकार और अपने समय की गवाह होती है. हर कवि में यह आंतरिक बेचैनी होती है कि उसकी आवाज़ पाठकों तक पहुंचे . यह कविता संग्रह भी आत्मा की पुकार और अपने समय की खबर है. पवन दीवान एक श्रेष्ठ कवि हैं.
लोकार्पण :अम्बर का आशीष
कृष्णा रंजन ने हिन्दी कविता की कम होती पाठक संख्या पर गहरी चिंता भी प्रकट की .उन्होंने कहा कि आज साहित्य-जगत में हिन्दी कविता की विचित्र स्थिति है. जितनी तेजी से हिन्दी कविता के पाठक घट रहे हैं, उतनी तेजी से युवा कवियों की संख्या बढ़ रही है. कवियों को एक से बढ़ कर एक पुरस्कार मिल रहे हैं, किताबें छप रही हैं, पर कविता को पाठक नहीं मिल रहे हैं .अगर सरकारी खरीदी न हो तो कविता की पुस्तकें दुकानों में यूं ही रखी रह जाएँ. छोटी साहित्यिक पत्रिकाएँ साधनहीनता का शिकार हैं. बड़े समाचार पत्रों में पहले पाठकों का स्वाद बदलने के लिए प्रत्येक रविवार को साहित्यिक परिशिष्ट होता था ,जिसमे कवितायेँ भी छपा करती थी.अब वह भी लगभग बंद है. कुछ कवि हास्य के नाम पर मंचों पर क्षणिक वाह-वाही लूटने और पैसा बटोरने में लगे हैं. ऐसे में कविता आखिर जाए तो जाए कहाँ ? कविता-पुस्तकों की कई प्रतियां सौजन्य-भेंट देने में निकल जाती हैं .जिनकी जेब में सामर्थ्य है, उनमे से खरीद कर पढ़ने की आदत बहुत कम लोगों में है. अगर लोग पुस्तकें खरीद कर पढ़ने लगें ,तो प्रकाशकों के साथ-साथ इससे कवियों और लेखकों को भी बल मिलेगा . कृष्णा रंजन ने लोकार्पण समारोह में मौजूद सभी लोगों से कविता संग्रह को खरीद कर पढ़ने की नयी परिपाटी शुरू करने का आव्हान किया,जिसका सकारात्मक असर तुरंत देखा गया . प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार ,धमतरी निवासी त्रिभुवन पाण्डेय ने पुस्तक-संस्कृति का विषय उठाते हुए कहा कि हमें केरल जैसे राज्य से सीखना चाहिए, जहाँ शादियों में नव-दंपत्ति को उपहार के रूप में पुस्तकें भी देने की परम्परा है.
लोकार्पण समारोह को संबोधित करते पवन दीवान
संत कवि पवन दीवान ने अपने कविता-संग्रह के संदर्भ में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ पहले मध्यप्रदेश का अंग हुआ करता यहाँ के लोग बहुत शोषित प्रतीत होते थे और यह सच्चाई भी थी. प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण इस अमीर धरती के लोग गरीब क्यों रहें ? यह साहित्यकारों ,पत्रकारों औरअन्य प्रबुद्ध जनों के लिए भी चिंता का विषय रहा है . साहित्य में यही सब विषय वर्णित होते हैं. सभी लोगों के लम्बे संघर्षों के बाद छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया. अब हम सब अपने संसाधनों से और केन्द्र से मिलने वाली राशि से राज्य को विकास की ओर ले जाएंगे. पवन दीवान ने कहा -यह छत्तीसगढ़ उन मेहनतकश गरीब मजदूरों और किसानों का है ,जिन्होंने इसे धान का कटोरा बनाया. भारत एक है. छत्तीसगढ़ भी भारत है. फिर सब कुछ होते हुए भी छत्तीसगढ़ क्यों शोषित रहे ? उन्होंने कहा कि लेखन की सार्थकता तभी प्रमाणित होगी ,जब यहाँ शोषण पूरी तरह समाप्त होगा . लोकार्पण समारोह में क्षेत्रीय विधायक अमितेश शुक्ल ने कहा कि पवन दीवान भले ही विधायक ,मंत्री और सांसद रह चुके हैं, राजनीतिज्ञ भी हैं , लेकिन उनका वास्तविक स्वरुप एक संवेदनशील कवि का है.
राजिम के पंडित धर्मदत्त शास्त्री ने कहा कि राजनीति ने हमसे हमारे लोकप्रिय कवि को छीनने का ही काम किया है. संत कवि के कॉलेज के दिनों के सहपाठी रहे रायपुर के सुपरिचित साहित्यकार सुखदेव राम साहू ‘सरस’ ने कहा कि कविता की अभिव्यंजना ह्रदय को प्रभावित करती है. उन्होंने दीवान जी के साथ के अपने कॉलेज -जीवन का एक रोचक संस्मरण भी सुनाया . छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर के सुशील यदु ने भी अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम का संचालन किया भिलाई नगर से आए राजिम के मूल-निवासी साहित्यकार रवि श्रीवास्तव ने . पुस्तक के प्रकाशक छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय कवि और पवन दीवान के शिष्य लक्ष्मण मस्तुरिया ने स्वागत भाषण दिया ,जबकि आभार प्रदर्शन उनके अनुज मोहन गोस्वामी ने किया. राजिम तो पवन दीवान की कर्म-भूमि है. इस नाते समारोह में राजिम के लोगों का बड़ी संख्या में आना स्वाभाविक ही था. उनके पड़ोसी कस्बे अभनपुर से देश-विदेश के सुपरिचित हिन्दी ब्लॉगर भाई ललित शर्मा भी मेरे साथ वहां मौजूद थे . लोकार्पण समारोह में संत कवि पवन दीवान ने राजिम नगर की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अगर रायपुर राजधानी है और बिलासपुर न्यायधानी , तो पंडित सुंदर लाल शर्मा जैसे आज़ादी के आंदोलन के महान नेता और साहित्यकार की जन्म-भूमि और कर्म-भूमि राजिम को छत्तीसगढ़ की साहित्य धानी कहा जा सकता है. मुझे लगा कि दीवान जी के इस विचार में निश्चित रूप से काफी वजन है. राजिम ने छत्तीसगढ़ को अनेक जाने-माने साहित्यिक रत्न दिए हैं.
नदियाँ अपने जल-प्रवाह के साथ-साथ सांस्कृतिक धाराओं को भी मानव-समाज में प्रवाहितऔर प्रसारित करती हैं. हमारी भारतीय संस्कृति में धर्म, अध्यात्म और साहित्य ,कला और संस्कृति की अनेक धाराएं नदियों के ही किनारे प्रवाहित होकर जन-जीवन को दिल की गहराइयों तक प्रभावित करती चली आयी हैं . छत्तीसगढ़ की जीवन-रेखा महानदी भी ऐसी ही एक पवित्र नदी है, जो हमारे पौराणिक इतिहास में चित्रोत्पला के नाम से भी प्रसिद्ध है. इसी महानदी के साथ पैरी और सोंढूर नदियों के पवित्र संगम पर है भारतीय संस्कृति का प्रसिद्ध आस्था केन्द्र राजिम,जहाँ भगवान राजीव लोचन और कुलेश्वर महादेव के ऐतिहासिक मंदिर राजिम को एक पावन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं. राजिम छत्तीसगढ़ में आध्यात्मिक चेतना के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में राष्ट्रीय चेतना का भी प्रमुख केन्द्र रहा है.
साहित्य मनीषी पंडित सुंदर लाल शर्मा का जन्म इसी राजिम की पावन धरा पर २१ दिसम्बर १८८१ को हुआ था, जिन्होंने सिर्फ सत्रह साल की किशोर आयु में वहाँ ‘कवि-समाज’ की स्थापना की और आंचलिक कवियों को साथ लेकर साहित्यिक वातावरण बनाया. पंडित सुंदर लाल शर्मा द्वारा कृष्ण-भक्ति पर आधारित खंड-काव्य ‘छत्तीसगढ़ी दान-लीला’ की रचना की गयी ,जो १० मार्च १९०६ को प्रकाशित हुआ था. यह उनकी अनेक प्रसिद्ध रचनाओं में सर्वाधिक चर्चित कृति है. वे एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे और उन्होंने आज़ादी के आंदोलन को अस्पृश्यता निवारण अभियान से जोड़ कर उसे और भी सशक्त बनाया.उनके आमंत्रण पर राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी २१ दिसम्बर १९२० को पहली बार छत्तीसगढ़ प्रवास पर आए और यहाँ अछूतोद्धार के उनके कार्यों को देख कर रायपुर के किसान सम्मेलन में दिए गए भाषण में अस्पृश्यता निवारण के सामाजिक आंदोलन में शर्मा जी को अपना ‘गुरु’ कह कर सम्मानित किया. बीसवीं सदी में छत्तीसगढ़ राज्य की कल्पना भी सबसे पहले पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने की थी , यह सन १९१८ के उनके एक हस्त लिखित दस्तावेज से पता चलता है. भारत सरकार ने २८ सितम्बर १९९० को पंडित सुंदर लाल शर्मा के सम्मान में एक डाक-टिकट भी जारी किया था.
अपने ऐतिहासिक मंदिरों के कारण राजिम जहाँ आम जनता के लिए एक धार्मिक-तीर्थ है ,वहीं यह अपने अनेक लोकप्रिय कवियों और लेखकों की वजह से छत्तीसगढ़ का साहित्यिक तीर्थ भी है, जहाँ पंडित सुंदर लाल शर्मा की साहित्यिक-सांस्कृतिक और सामाजिक परम्पराओं को आगे बढ़ाने वाले वर्तमान पीढ़ी के प्रसिद्ध कवि पवन दीवान (स्वामी अमृतानंद सरस्वती )और कृष्णा रंजन (स्वामी शान्तानन्द ) जैसे विद्वानों की आध्यात्मिक और साहित्यिक साधना आज भी अनवरत चल रही है. आज़ादी के आंदोलन के दिनों में पंडित सुंदर लाल शर्मा को ‘छत्तीसगढ़ का गांधी ‘ कहा जाता था, देश की आज़ादी के लगभग दो-तीन दशक बाद छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के जन- आंदोलन को गति देने उसके लिए जन-जागरण में अग्रणी भूमिका निभाने की वजह से पवन दीवान को भी जनता ने ‘पवन नहीं ये आंधी है – छत्तीसगढ़ का गांधी है’ जैसे नारे से भरपूर प्यार और सम्मान दिया पवन दीवान एक तपस्वी साधक हैं . उनकी साधना जितनी आध्यात्मिक है ,उतनी ही साहित्यिक भी . उन्हें छत्तीसगढ़ के लोग ‘संत कवि’ के नाम से भी प्यार और सम्मान देते हैं. उन्होंने वर्ष १९७२ के गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय समारोह में नयी दिल्ली में लाल किले के प्राचीर पर आयोजित कवि सम्मेलन में काव्य-पाठ किया. छत्तीसगढ़ के गाँवों में उन्हें श्रीमद भागवत प्रवचन के लिए सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जाता है. हिन्दी और छत्तीसगढी, दोनों ही भाषाओं के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं दीवान जी. सामाजिक सरोकारों से जुड़े जन-आंदोलनों को गति और ऊर्जा देने में बिहार में जैसी रचनात्मक भूमिका हमारे समय के महाकवि नागार्जुन की मानी जाती है, वैसी ही भूमिका में छत्तीसगढ़ में हमारे पवन दीवान भी रहे हैं. क्या हम साहित्यिक धरातल पर उन्हें छत्तीसगढ़ का ‘नागार्जुन’ नहीं कह सकते ?
राज्य निर्माण आंदोलन में दीवान जी ने कविताओं के साथ-साथ जन-आन्दोलनों के ज़रिए भी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया. आंध्रप्रदेश में हुए तेलांगना राज्य निर्माण आंदोलन का असर छत्तीसगढ़ पर भी हुआ था. उन दिनों पवन दीवान की एक कविता ‘छत्तीसगढ़ बन जाएगा तेलांगना ‘ बहुत लोकप्रिय हुई थी . तेलांगना राज्य तो नहीं बना , लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य का सपना दस साल पहले साकार हो गया, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने तीन नए राज्यों — छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड का निर्माण किया. दीवान जी कोई तीन दशक पहले तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ के राजिम से विधायक निर्वाचित हुए और १९७७ से १९७९ तक जेल-मंत्री भी रहे. वर्ष १९९१ से १९९६ तक वे महासमुंद से लोक सभा सांसद रहे . . छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद प्रदेश सरकार ने उन्हें राज्य गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया.
इस आलेख के लेखक का भी संत कवि से वर्षों पुराना आत्मीय संबंध रहा है . जब मै अपने गाँव में हाई -स्कूल का छात्र था , उन दिनों दीवान जी मेरे अध्यापक और अपने कॉलेज जीवन के सहपाठी शंकर चन्द्राकर जी के घर कवि-गोष्ठियों में आया करते थे और चन्द्राकर जी के आदेश पर मैं घूम-घूम कर लोगों को गोष्ठियों का न्यौता दिया करता था.उन गोष्ठियों में उन्हें सुनने का भी सौभाग्य मिला. चंद्राकर जी ने ‘चितन साहित्य समिति’ का गठन किया था. दीवान जी और कृष्णा रंजन जी ने मेरे गाँव के सार्वजनिक कवि सम्मेलनों में भी कई बार काव्य पाठ किया है. विनम्रता से कहना चाहूँगा कि मुझमें साहित्य -प्रेम का अंकुरण इन्हीं मनीषियों के कभी प्रत्यक्ष और कभी अप्रत्यक्ष सत्संग की वजह से हुआ . निश्चित रूप से पवन दीवान छत्तीसगढ़ के लाखों -लाख लोगों के चहेते भागवत प्रवचनकार और चहेते कवि है. उन्हें छत्तीसगढ़ के साहित्य-गगन का चमकीला सितारा कहा जाए ,तो गलत नहीं होगा . उनके ताज़ा कविता संग्रह के लोकार्पण समारोह में शामिल होने का और वर्षों बाद उनसे मिलने और पुरानी यादों को ताजा करने का अवसर मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी . पहली जनवरी को दीवान जी के जन्म दिन पर प्रकाशित उनके नए काव्य-संग्रह ‘अम्बर का आशीष’ के लिए उन्हें हार्दिक बधाई और जन्म दिन की अनेकानेक शुभकामनाएं. अम्बर का आशीष तो उनके साथ है ही, उनका आशीष हम सब पर बना रहे , भगवान राजीव लोचन से यही प्रार्थना है.
स्वराज्य करुण