अंतर्राष्ट्रीय उड्डयन दिवस पर भारत की उड़ान व्यवस्था का सच और भविष्य

अंतर्राष्ट्रीय उड्डयन दिवस हर साल 7 दिसंबर को हमें वैश्विक सहयोग और सुरक्षित आकाश के महत्व की याद दिलाता है। 2025 यह दिवस और भी खास बना, क्योंकि इसी वर्ष शिकागो कन्वेंशन के 80 वर्ष पूरे हुए। इस मौके की थीम “सुरक्षित आकाश, सतत भविष्य: अगले 80 वर्षों के लिए एकजुट” दुनिया को यह सोचने पर मजबूर करती है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए उड्डयन कितना महत्वपूर्ण होगा। लेकिन भारत इस अवसर पर अपनी प्रगति का जश्न मनाने के बजाय एक बड़े संकट से जूझ रहा है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार होते हुए भी देश की हवाई यात्रा व्यवस्था पिछले कुछ दिनों में भारी अव्यवस्था और यात्रियों की परेशानी का कारण बनी है।
दिसंबर 2025 की शुरुआत भारत के लिए बेहद कठिन साबित हुई। इंडिगो, जो घरेलू उड़ानों का बड़ा हिस्सा संभालती है, अचानक इतनी बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द करने लगी कि हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी मच गई। 5 दिसंबर को एक ही दिन में एक हजार से ज्यादा उड़ानें रद्द हुईं और अगले ही दिन चार सौ से अधिक सेवाएं रुक गईं। दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों के टर्मिनल यात्रियों से भर गए, लोग फर्श पर सोते दिखे, और शिकायतों की बाढ़ सामाजिक मीडिया पर उमड़ पड़ी। कुछ यात्रियों ने यह तक कहा कि हवाई अड्डे तंबू की तरह लग रहे थे। इस दौरान देरी और रद्द करने की वजह से कई परिवारों की यात्राएं छूट गईं, व्यवसायिक यात्रियों की मीटिंग्स छूट गईं और आम नागरिकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।
इंडिगो ने इसकी वजह क्रू रोटेशन और नए थकान-रोधी नियमों को बताया, लेकिन यह दलील यात्रियों की उलझन दूर नहीं कर पाई। लोगों को सबसे ज्यादा तकलीफ़ तब हुई जब कुछ यात्रियों से रद्द उड़ानों का रिफंड काटकर दिया गया, जबकि कंपनी ने खुद घोषणा की थी कि 5 से 15 दिसंबर तक कोई शुल्क नहीं लगेगा। यह स्थिति सिर्फ एक एयरलाइन की समस्या नहीं रही। लंबे समय से परेशान स्पाइसजेट और गोफर्स्ट जैसे अन्य उपक्रमों की मुश्किलें भी इस वातावरण में खुलकर सामने आईं और इस संकट ने पूरे क्षेत्र की कमियों को उजागर किया।
ऐसे समय पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय पर भी सवाल उठे। आलोचकों ने इसे उदासीनता बताया और कहा कि मंत्रालय शुरुआत में लगभग चुप रहा, जब स्थिति काबू में लाई जा सकती थी। मंत्री की चेतावनी तब आई जब लाखों यात्री प्रभावित हो चुके थे। हालांकि मंत्रालय ने बाद में कीमतों पर सीमा लगाई और कुछ त्वरित उपाय किए, लेकिन लोगों का भरोसा कमजोर पड़ चुका था। नियामक एजेंसियों की धीमी प्रतिक्रिया और एयरलाइंस के एकाधिकार ने इस विश्वास को और कम कर दिया। कई विशेषज्ञ कहते हैं कि यह संकट अचानक नहीं आया, महीनों पहले से संकेत मिल रहे थे, जैसे पायलटों की कमी, थकान बढ़ने की शिकायतें और 16 प्रतिशत तक विमानों का ग्राउंडेड होना।
भारत की उड्डयन समस्या इतनी सरल नहीं कि इसे एक कारण में बाँधा जा सके। यह मानव संसाधन, तकनीक, बुनियादी ढांचा, अर्थव्यवस्था और नियमन आदि सभी मोर्चों पर फैली हुई है। पायलटों की कमी के कारण एयरलाइंस अपनी योजनाएं समय पर लागू नहीं कर पा रहीं। कई हवाई अड्डे बढ़ती भीड़ संभालने में सक्षम नहीं। तकनीकी खराबियों में भले कुछ कमी आई हो, लेकिन सप्लाई चेन और मेंटेनेंस की समस्याएं अब भी बनी हुई हैं। इन सबके बीच नियामक व्यवस्था की कमजोर पकड़ संकट को और गहरा कर देती है।
फिर भी समाधान असंभव नहीं है। जरूरत है त्वरित और दीर्घकालिक दोनों तरह के कदम उठाने की। एयरलाइंस को क्रू प्रबंधन के नए और आधुनिक तरीके अपनाने होंगे, जबकि मंत्रालय को रिफंड और शिकायत निपटान प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना होगा। यात्रियों के लिए एक भरोसेमंद हेल्पलाइन और डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली राहत दे सकती है। आगे बढ़ते हुए, भारत को पायलट प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार करना चाहिए और UDAN जैसी योजनाओं के माध्यम से हवाईअड्डों को अधिक सक्षम बनाना चाहिए। तकनीकी उन्नयन, जैसे AI आधारित क्रू शेड्यूलिंग और प्रेडिक्टिव मेंटेनेंस, दीर्घकाल में उद्योग को स्थिर और सुरक्षित बना सकते हैं।
सतत विकास भी भविष्य की जरूरत है। आने वाले वर्षों में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड विमानों का इस्तेमाल बढ़ेगा। सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल का उपयोग अनिवार्य कर उत्सर्जन कम किया जा सकता है। डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन यात्रियों के अनुभव को सहज और समस्या-मुक्त बना सकता है। भारत के लिए यह समय है कि वह एक ऐसी उड़ान व्यवस्था बनाए जो आरामदायक, सुरक्षित और विश्वसनीय हो।
2025 के इस संकट ने हमें एक कठोर सबक दिया है। यह दिखाता है कि देश की उड्डयन व्यवस्था कितनी महत्वपूर्ण और कितनी संवेदनशील है। अंतर्राष्ट्रीय उड्डयन दिवस का संदेश यही है कि मिलकर आगे बढ़ना ही सुरक्षित आकाश की ओर पहला कदम है। भारत को इस दिशा में ठोस बदलाव करने होंगे ताकि हर नागरिक बिना परेशानी के आकाश छू सके। भविष्य का आकाश तभी सुरक्षित होगा जब व्यवस्था मजबूत और यात्री-केंद्रित होगी। यही नई उड़ान की शुरुआत है।
