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समाज के पथ प्रदर्शक हैं गोस्वामी तुलसीदास : तुलसी जयंती विशेष

उमेश चौरसिया

गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सदैव ही समाज को सार्थक दिशा दिखायी है । श्रीराम के प्रति दासत्व भाव से रचित सर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य रामचरितमानस में उन्होंने धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, राजनीतिक और महत्वपूर्ण जीवनमूल्यों का निरूपण किया है। प्रसिद्ध विद्वान युगेश्वर ने कहा है कि राष्ट्र की भावनात्मक एकता के लिए जिस उदात्त चरित्र की आज आवश्यकता है वह रामकथा में है।

भारतीय साधना और ज्ञान परम्परा दर्शाते हुए जीवन के कष्टों का कारण और निवारण बताने वाला मानस विश्वभर के मानव का मार्गदर्शन कर रहा है । तुलसीदास की सगुण भक्ति में लोकहित की प्रमुखता रही है। उन्होंने मानस को स्वांतसुखाय कहा हो किन्तु आज वह सर्वजनहिताय ग्रंथ बन गया है।

नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने ब्रज और अवधि भाषा में महाकवि तुलसीदास रचित 23 ग्रंथों का उल्लेख किया है। इनमें प्रथमकृति रामलला नहक्षू लोकगीत की सोहर शैली में रचा गयी है । कवितावली में सात खंडों में श्रीराम चरित्र का वर्णन है और विनयपत्रिका में श्रीराम से कलयुग की विपत्तियों के विरूद्ध प्रार्थना की गयी है। इनमें बाह्य समाज में व्याप्त लोभ, ईर्ष्या, शोषण, भूख, बेकारी, रोग, अराजकता, अज्ञानता, सांस्कृतिक अपदूषण, सामंती और कट्टरपंथी विचार से बचने की राह दिखाई है।

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वैराग्य संदीपनी में मंगलाचरण, संतमहिमा और शांतिभाव का वर्णन है । जानकी मंगल में राम जानकी विवाह और पार्वती मंगल में शिव पार्वती विवाह का गेय पदों में सुंदर चित्रण है । दोहावली से नीति और भक्ति को जीवन में अपनाने की तथा श्रीकृष्णगीतावली में समाज में व्याप्त कुप्रवृत्तियों से सावचेत रहकर प्रेम, सौहार्द और सर्वहितकारी समाज निर्माण की प्रेरणा मिलती है। तुलसी के काव्य में भावपक्ष और कलापक्ष दोनों की झलक दिखती है ।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने तुलसीदास को ज्ञान व भक्ति, शील व शक्ति, सगुण व निर्गुण, व्यक्ति व समाज, धर्म व संस्कृति, राजा व प्रजा, वेद व व्यवहार, विचार व संस्कार में समन्वय करने वाला लोकनायक बताया है। तुलसी रामचरित्र के द्वारा समाज में भेदभाव को दूर करते हुए अखंड समाज निर्माण का आदर्श प्रस्तुत करते हैं । वे साहित्य और समाज के मध्य सामंजस्य का भी अप्रतिम उदाहरण हैं । मनुष्यत्व से शिवत्व की ओर अग्रसर होने के लिए जीवन में तप और त्याग का महत्व भी स्पष्ट करते हैं ।

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मैनेजर पाण्डेय ने मानस को लोकजीवन के व्यापक अनुभव व चिंतन का शास्त्र कहा है । सर्वकालिक जीवनमूल्य की सीख देते हुए तुलसी कहते हैं – ‘तुलसी एहि संसार में भांति भांति के लोग, सबसों हिल मिल चालिए नदी नाव संजोग ।’ अर्थात इस संसार में स्वाभाव, आचरण और व्यवहार से भिन्न भिन्न लोग होते हैं, लेकिन नदी और नाव के समन्वय की तरह हमें सबसे प्रेम और सद्भाव से मिलकर चलना चाहिए।

उमेश कुमार चौरसिया, सहित्यकार, अजमेंर