छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: 2161 करोड़ के शराब घोटाले में 1500 करोड़ पार्टी फंड में भेजे जाने का दावा, EOW की जांच में कई नेताओं के नाम उजागर
छत्तीसगढ़ में सामने आए बहुचर्चित 2161 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में एक के बाद एक बड़े खुलासे हो रहे हैं। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) द्वारा दाखिल की गई पूरक चार्जशीट के अनुसार, इस पूरे रैकेट में कई रसूखदार राजनेताओं और अधिकारियों की गहरी मिलीभगत सामने आई है। दस्तावेजों के मुताबिक, पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा और एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता को हर माह दो बार 10-10 करोड़ रुपये की रकम नियमित रूप से पहुंचाई जाती थी।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस घोटाले से अर्जित की गई लगभग 1500 करोड़ रुपये की रकम कथित तौर पर एक राजनीतिक पार्टी के फंड में दी गई, हालांकि किस पार्टी को यह फंड मिला, इसका स्पष्ट उल्लेख चार्जशीट में नहीं है। इस बिंदु पर ईओडब्ल्यू अब गहन जांच कर रही है।
कैसे हुआ घोटाले का ताना-बाना तैयार?
जांच रिपोर्ट के अनुसार, यह संगठित भ्रष्टाचार फरवरी 2019 से शुरू हुआ। पहले कुछ महीनों में हर माह 800 पेटियों से भरे शराब के ट्रक अवैध तरीके से डिस्टलरी से बाहर भेजे जाते थे। इन पेटियों की कीमत शुरुआती दौर में 2840 रुपये प्रति पेटी थी, जो बाद में 3880 रुपये तक पहुंच गई। धीरे-धीरे यह संख्या हर महीने 400 ट्रकों तक पहुंच गई।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल भर में 60 लाख से अधिक पेटियों की गैरकानूनी बिक्री की गई।
15 जिलों में बंटा था अवैध शराब का जाल
राज्य को आठ अलग-अलग ज़ोन में बांटकर शराब की अवैध सप्लाई की गई, जिसमें 15 जिलों को चिन्हित किया गया था। इन जिलों की सरकारी दुकानों में पहले से ही फैक्ट्री से नकली होलोग्राम लगी हुई शराब भेजी जाती थी।
सिंडीकेट में शामिल प्रमुख नामों में अरविंद सिंह, उसका भतीजा अमित सिंह, अनुराग द्विवेदी, सत्येंद्र गर्ग और नवनीत गुप्ता शामिल थे। ये लोग बिना बिल और ओवर-बिलिंग के ज़रिए शराब की आपूर्ति करते थे। डुप्लीकेट होलोग्राम की सप्लाई के लिए अमित सिंह ने दीपक दुआरी और प्रकाश शर्मा के साथ मिलकर पूरा नेटवर्क तैयार किया था।
पैसा वसूली और हवाला के जरिए हुआ ट्रांजैक्शन
इस अवैध कारोबार से होने वाली आय की वसूली के लिए अलग से एक टीम बनाई गई थी, जिसमें विकास अग्रवाल उर्फ सुब्बू, सिद्धार्थ सिंघानिया और अन्य शामिल थे। एक साल बाद यह प्रक्रिया बदल दी गई और प्लेसमेंट कंपनियों के ज़रिए पैसे इकट्ठे किए जाने लगे। हवाला नेटवर्क के ज़रिए यह धन दिल्ली, मुंबई और कोलकाता तक भेजा गया। इसमें कारोबारी सुमित मालू और रवि बजाज की भूमिका भी सामने आई है, जिन्होंने पूछताछ में इस बात को स्वीकार किया।
पत्नियों के नाम पर कंपनी बनाकर किया कारोबार
इस घोटाले में शामिल कुछ अधिकारियों ने अपनी पत्नियों के नाम पर कंपनियां रजिस्टर कराई और अवैध रूप से शराब कारोबार को अंजाम दिया।
जैसे कि, आबकारी सचिव अरुणपति त्रिपाठी ने अपनी पत्नी मंजूलता त्रिपाठी के नाम पर “रतनप्रिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेड” नाम की कंपनी रजिस्टर कराई। इसी कंपनी ने डुप्लीकेट होलोग्राम बनाने वाली कंपनी को 50 लाख रुपये में सॉफ्टवेयर बेचा था।
वहीं, निलंबित बीएसपी कर्मचारी अरविंद सिंह ने अपनी पत्नी पिंकी सिंह के नाम पर “अदीप एम्पायर” और “माउंटेन व्यू इंटरप्राइजेज” नाम से कंपनियां बनाई, जिनके जरिए शराब का अवैध व्यापार किया गया। इसका संचालन अरविंद का भतीजा अमित सिंह कर रहा था।
टुटेजा और ढेबर परिवार की संदिग्ध भूमिका भी अब जांच एजेंसी के निशाने पर है। इन परिवारों से जुड़े निवेश और वित्तीय लेनदेन की जांच भी जारी है।