छत्तीसगढ़ संवाद के नये भवन में मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी पर संगोष्ठी सम्पन्न
नया रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ संवाद के नवनिर्मित भवन में आज मीडिया संगोष्ठी के रूप में संवाद और जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों की राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। प्रथम सत्र में मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी विषय पर वरिष्ठ पत्रकार श्री सुनील कुमार ने तथा द्वितीय सत्र में “प्रिंट मीडिया में रिपोर्टिंग और समाचार लेखन” पर वरिष्ठ पत्रकार डॉ. हिमांशु द्विवेदी और श्री ज्ञानेश उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त किए।
तीसरा सत्र सोशल मीडिया का था, जिसमें अहमदाबाद से आए श्री हिमांशु भायानी, दुर्ग निवासी छत्तीसगढ़ी वेबसाइट ’गुरतुर गोठ’ के सम्पादक श्री संजीव तिवारी और अभनपुर निवासी ब्लॉगर श्री ललित शर्मा ने सोशल मीडिया के वर्तमान दौर में समाचार और विचार विषय पर अपनी बात रखी। संचालक जनसम्पर्क और छत्तीसगढ़ संवाद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री राजेश सुकुमार टोप्पो ने सभी वक्ताओं को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।
प्रथम सत्र में ’मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी’ विषय पर श्री सुनील कुमार ने कहा-पत्रकारिता के लिए पहले ’प्रेस’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता था और यह शब्द सम्पूर्ण पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व करता था, लेकिन पत्रकारिता के लिए महानगरों की शब्दावली अब इधर भी आ गई है। उन्होंने कहा-’मीडिया’ शब्द सिर्फ 10-15 वर्षों की देन है। इसके दायरे में समाचार पत्रों के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया भी आ गया है। श्री सुनील कुमार ने कहा-सोशल मीडिया परम्परागत मीडिया का विकल्प नहीं हो सकता, लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि वह पारम्परिक मीडिया को चुनौती देते हुए हमारे सामने खड़ा है। श्री सुनील कुमार ने कहा- मुझे अखबारों की सामाजिक जवाबदेही पर गर्व है। आज भी मीडिया के दूसरे हिस्सों के मुकाबले आज भी अधिकांश अखबार सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने मीडिया के साथ जनसम्पर्क अधिकारियों के अंतःसंबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि जनसम्पर्क अधिकारियों द्वारा शासकीय योजनाओं पर दिए जाने वाले सकारात्मक समाचारों को सभी अखबार जनहित की दृष्टि से प्रकाशित करते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार श्री हिमांशु द्विवेदी ने प्रिंट मीडिया में रिपोर्टिंग और समाचार लेखन पर अपने व्याख्यान में कहा-समाचार लेखन में कई तरह के दबाव और कई तरह की चुनौतियां भी होती है, लेकिन जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों पर सरकार के छवि निर्माण की बड़ी जिम्मेदारी है। उनका काम सिर्फ सूचना देने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि सरकारी सूचनाओं को समाचार के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए कि उनकी पठनीयता और विश्वसनीयता बनी रहे। हालांकि यह कार्य भी काफी चुनौतीपूर्ण है। समाचारों में केवल आंकड़ों का मायाजाल नहीं रहना चाहिए। उनमें तथ्यों के साथ लयात्मकता, रोचकता और मानवीय दृष्टिकोण भी होना चाहिए।
श्री ज्ञानेश उपाध्याय ने इसी विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा-समाचार पत्रों और टी.व्ही. चैनलों से कुछ अलग जनसम्पर्क विभाग एक ऐसा मीडिया है, जो स्थिर भाव का मीडिया कहा जा सकता है। उन्होंने कहा-जनसम्पर्क अधिकारी भी पत्रकारिता का ही एक हिस्सा हैं, लेकिन उन पर मीडिया के माध्यम से शासन का पक्ष जनता तक पहुंचाने की अहम जिम्मेदारी होती है। श्री उपाध्याय ने पत्रकारिता की भाषा को लेकर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने समाचारों में क्वांटिटी, क्वालिटी और वेरायटी पर विशेष रूप से बल दिया। श्री ज्ञानेश उपाध्याय ने कहा-सरकार की विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं पर फीचर आलेख लिखने की परम्परा को उत्साह के साथ आगे बढ़ाना चाहिए। आलेखों के साथ अच्छे फोटोग्राफ भी जारी किए जाने चाहिए।
संगोष्ठी का तीसरा सत्र सोशल मीडिया के वर्तमान दौर में समाचार और विचार विषय पर केन्द्रित रहा। इसमें अहमदाबाद के श्री हिमांशु भायानी ने कहा-आज के दौर में वाट्सएप और फेसबुक जैसे नये माध्यमों के जरिए सूचनाओं और संदेशों की बमबारी हो रही है। एक आंकलन के अनुसार वाट्सएप में हर घण्टे लगभग 600 संदेश आते हैं। उनमें से सही और गलत की पहचान करना हम सबके विवेक पर निर्भर करता है। सोशल मीडिया के आने से जिस किसी के पास स्मार्ट फोन है, वह स्वयं को पत्रकार समझने लगता है, जबकि ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया का डिजिटल प्लेटफार्म खबरों के रोमांच को कम करता जा रहा है। श्री हिमांशु भायानी ने कहा-इसके बावजूद सरकार की बात आम जनता तक पहुंचाने में सोशल मीडिया के इन औजारों का उपयोग किया जाना चाहिए। राज्यों के जनसम्पर्क विभागों सहित भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालयों की प्रेस विज्ञप्तियों में जो सूचनाएं आती हैं, उनमें निश्चित रूप से विश्वसनीयता होती है।
छत्तीसगढ़ी वेब पोर्टल ’गुरतुर गोठ’ के सम्पादक श्री संजीव तिवारी ने कहा-जनता की भलाई के लिए सरकार की अनेक योजनाएं चल रही हैं। जनसम्पर्क अधिकारी अपने-अपने जिलों में इन योजनाओं के तहत हो रहे कार्यों को फोटो के साथ सहज-सरल शब्दों में और संक्षेप में ट्विटर के जरिए भी लोगों तक प्रेषित कर सकते हैं। इससे शासन की बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचेगी। श्री तिवारी ने कहा- छत्तीसगढ़ में भी निजी अथवा व्यक्तिगत वेबपोर्टलों की भरमार है, लेकिन यह खुशी की बात है कि उनकी तुलना में आज भी जनसम्पर्क विभाग की वेबसाइट को देखने और पढ़ने वालों की संख्या सबसे अधिक है और एलेक्सा रेंकिंग में भी जनसम्पर्क की वेबसाइट सबसे आगे है।
ब्लॉगर श्री ललित शर्मा ने कहा-अखबार, रेडियो और टेलीविजन के दौर से गुजरते हुए मीडिया अब सोशल मीडिया के रूप में हमारे सामने है। आज से लगभग 12 साल पहले जब सोशल मीडिया का दौर शुरू हुआ, तब लोगों को इसकी ताकत का अंदाजा नहीं था। अब सोशल मीडिया का एक ऐसा दौर आ गया है, जो आगे चलकर खतरनाक भी हो सकता है। सिर्फ 150 शब्दों का एक ट्विटर संदेश दुनिया के किसी भी बड़े भू-भाग को प्रभावित कर सकता है। उसके तथ्य अगर सकारात्मक हुए तो प्रभाव भी सकारात्मक होगा, लेकिन यदि तथ्य नकारात्मक हुए तो असर भी नकारात्मक होगा। श्री शर्मा ने कहा-सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता पर निर्भर है कि वह इसका उपयोग किस दृष्टिकोण से और किस उद्देश्य से कर रहा है ? उन्होंने कहा कि शासकीय प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कल्पनाशीलता के साथ किया जा सकता है।