संगवारी परिचर्चा दंतेवाड़ा: मीडिया की नजर में बस्तर
बस्तर के दक्षिण में स्थित धुर नक्सली क्षेत्र के नाम से कुख्यात दंतेवाड़ा जिले में “मीडिया की नजर में बस्तर” विषय पर संगवारी समूह द्वारा परिचर्चा का आयोजन जिला पुस्तकालय में किया गया। दक्षिण बस्तर के भीतरी अंचल के पत्रकारों ने इस परिचर्चा में सक्रीय सहभागिता दर्ज की। परिचर्चा से ज्ञात हुआ कि जिन समाचारों को हम अखबारों में पढ़ते हैं या टीवी पर देखते हैं, उन्हें पाठकों एवं दर्शकों तक पहुंचाना कितना कठिन है। समाचार संकलन के दौरान जब किसी पत्रकार के साथ दुर्घटना हो जाती है। अखबार के मालिक अंशकालिक संवाददाता बताकर अपना हाथ झाड़ कर चुप्पी साध लेते हैं।
विज्ञापनों के लिए हद से बाहर जाने वाले बड़े मीडिया घरानों के लिए जो एक कालम का समाचार मात्र होता है, उस एक कालम के समाचार मात्र को जुटाने की जद्दोजहद में पत्रकारों को जान भी देनी पड़ी। पर मीडिया घराने उस समाचार की अहमियत और कीमत का मुल्यांकन नहीं कर सकते। परिचर्चा प्रारंभ होते ही बंदूकों के साए तले काम कर रहे पत्रकार साथियों का दर्द फ़ट पड़ा। दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, किरंदुल, बचेली, जगदलपुर आदि स्थानों से आए पत्रकारों ने संगवारी के मंच पर अपनी बात खुल कर रखी। उनके लिए यह प्रथम अवसर था, जब उन्हें अपनी बात कहने के लिए कोई मंच मिला।
“संगवारी समूह” के सूत्रधार गिरीश मिश्रा ने स्वागत भाषण से परिचर्चा आरंभ की। कांकेर के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला ने कहा कि मीडिया के लिए बस्तर एक बड़ा बाजार है। बीबीसी तक ने विज्ञापन दिखा कर अपना बाजार फ़ैलाया। मीडिया केवल बस्तर का एक पक्ष ही दिखाता है और वही समाचार दिखाता है जिसे “एस्क्लुसिव न्यूज” बना कर विज्ञापन बटोर सके। बस्तर के दर्द को कोई समझने को तैयार नहीं है। बस्तर को समझने एवं यहाँ की संस्कृति एवं परम्पराओं को सहेजने तथा शोध करने के लिए विश्वविद्यालयों को जोड़ा जाना चाहिए। तभी बस्तर का असली रुप जनमानस के सामने आएगा
बाहरी मीडिया बस्तर की गलत तस्वीर प्रस्तुत करता है। वह बाहर के देशों में फ़ैलते हुए आतंकवाद को माओवाद के लाल आतंक से जोड़ कर प्रसारित करता है और उसे कायम रखना चाहता है। वर्तमान में स्थिति पहले से बेहतर हुई है परन्तु बस्तर के आदिवासी नक्सली पीड़ा से गुजर कर मार खा रहे हैं और प्राण गंवा रहे हैं। संकट के समय पत्रकारों का उपयोग करने वाले प्रशासन का दोगलापन भी यहाँ सुनाई दिया।
बाप्पी राय ने कहा कि जब 4 पुलिसवालों को नक्सलियों ने बंधक बना लिया था तब उन्होंने जान जोखिम में डाल कर मध्यस्थ बन बंधक पुलिस वालों को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाया। इसके बाद प्रदेश से मुखिया से लेकर आला पुलिस अधिकारियों ने उन्हें फ़ोन पर बधाई दी। इसके बाद आज अगर कोई पत्रकार किसी निजी काम से भी जंगल में चला जाता है उसे संदेह की नजर से देखा जाता है। रंजन दास ने कहा कि जंगल से आने के बाद उन्हें थाने किसी अपराधी की तरह हाजरी देनी पड़ती है और पुलिसिया पूछताछ की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
पत्रकारों के सामने कई तरह की चुनौतियाँ है, सबसे बड़ी चुनौती सही तथ्य प्रस्तुत करने की है। जिसके कारण नक्सली एवं सरकार दोनों पक्षों की बुराई सिर पर लेनी होती है। रमाशंकर साहु कहते हैं कि विदेशी तथा दिल्ली के कोई भी पत्रकार दंतेवाड़ा आते है और भीतर जंगलों में जाकर स्टोरी करके चले जाते हैं, उनसे कोई पूछतात नहीं होती, बल्कि उनको प्रशासन का सहयोग ही मिलता है। भले ही जाकर वे गलत-स्टोरी प्रकाशित या प्रसारित कर दें। परन्तु स्थानीय पत्रकारों को सब झेलना पड़ता है।
नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र में सड़कें, बिजली, पानी, दवाई जैसी मूलभूत जीवनोपयोगी सुविधाएं भी नहीं है। देख कर लगता है कि सरकार यहाँ हैंग हो गई है। बस्तर के लेखक राजीव रंजन प्रसाद कहते हैं कि बस्तर की 50 खबरों में से सिर्फ़ दो ही खबरें दिल्ली के अखबारों की सुर्खियां बनती है। बाकी अड़तालिस खबरें यहीं आस-पास गुम हो जाती हैं। वे कहते हैं कि बस्तर के पत्रकार तटस्थ हैं, वे अपनी जिम्मेदारी को बखुबी समझते हैं, परन्तु दिल्ली के पत्रकार बायस्ड हैं। उनकी खबर सिर्फ़ टीआरपी के लिए होती है। बस्तर की माटी के दर्द से उन्हें कोई लेना देना नहीं। बस्तर की माटी का दर्द उसका बेटा ही समझता है, जिसे अपनी धरती अगाध प्रेम है। जिला जज नीलमचंद सांखला ने अपनी कविताओं के माध्यम से बस्तर की बात कही।
इसके साथ ही मंच से विनोद सिंग, शैलेन्द्र ठाकुर, रमाकांत, युकेश चन्द्राकर, सुधीर तंबोली “आजाद” आदि ने दमदारी से अपनी बात रखी। इस कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज ने कहा कि पत्रकार का धर्म है कि वह तटस्थ होकर नकारात्मक एवं सकारात्म सभी खबरों को सामने लेकर आए। अगर सरकार ने कोई जनकल्याण का अच्छा कार्य किया है तो उसे भी सामने लाना चाहिए। सुभाष मिश्र ने परम्परागत मीडिया के सामने सोशल मीडिया के बढते हुए प्रभाव को एवं उसकी महत्ता पर अपनी बात कही।
द्वितीय सत्र का प्रांरंभ नवीन तिवारी अमर्यादित ने किया। इस अवसर उन्होने बस्तर के मोगली चेंदरू को याद किया। जिनकी अभावों से संघर्ष करते हुए मृत्यू हुई। ललित शर्मा ने कहा कि दिल्ली में बैठे पत्रकार सिर्फ़ बस्तर पर एक स्टोरी करना चाहते हैं और दो बार बस्तर आने के बाद वे दिल्ली में बस्तर मामलों के विशेषज्ञ हो जाते हैं। बस्तर की पीड़ा को वही समझ सकता है जो बस्तर की माटी से बना है और जिसे बस्तर में माटी होना है। साहित्यकार जय नारायण बस्तरिया ने सार गर्भित वक्तव्य से बस्तर के पक्ष को सामने रखा।
फ़ेसबुक के संगवारी समूह के माडरेटर गिरीश मिश्रा की पहल पर यह अभिनव कार्यक्रम दंतेवाड़ा में हुआ, पत्रकार प्रभात सिंह की इस कार्यक्रम के आयोजन में अपने साथियों के साथ मुख्य भूमिका निभाई। संगवारी समूह द्वारा उत्कृष्ट लेखन के लिए किशोर दिवसे, डॉ संजयदानी, संत आर थवाईत का अभिनंदन किया गय। आभार प्रदर्शन द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने किया।