मल्हार की प्राचीन प्रतिमाएँ
संग्रहालय |
आस-पास कुछ लोग नल के पानी से स्नान कर रहे थे। प्रांगण में प्रतिमाएं बिखरी हुई हैं। संग्रहालय के द्वार पर चौकीदार से भेंट हुई, हमें देख कर चौकीदार ने भवन के द्वार उन्मुक्त किए एवं भीतर के हॉल में रोशनी की। सिर्फ़ एक ही ट्यूब लाईट का प्रकाश दिखाई दिया। अन्य ट्यूब लाईटें झपकी भी नहीं, मौन रह गई। भगवान जाने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी शासन द्वारा भरपूर बजट मिलने के बाद भी प्रमुख आवश्यकताओं की पूर्ती करने में भी क्यों कोताही बरतते हैं। मद्धम मद्धम रोशनी में प्रतिमाओं का अवलोकन प्रारंभ हुआ। अवलोकन करने के लिए एक सिरा ही पकड़ना ठीक था।
शेष नारायण |
दरवाजे के सामने ही शेषशायी विष्णु की चतुर्भुजी प्रतिमा दिखाई देती है। अपने आयुधों के साथ बांया पैर दाएं जंघा पर रखा हुआ है, नाभी से निकले हुए कमल पर ब्रह्मा विराजे हैं। चरणों की तरफ़ लक्ष्मी विराजमान हैं। प्रतिमा थोड़ी घिसी हुई है, आँखे और नाक स्पष्ट नहीं है।
कुबेर |
आगे बढने पर कुबेर की एक प्रतिमा दिखाई देते हैं। किरीट मुकुटधारी कुबेर ने दांए हाथ में गोला(पृथ्वी) थाम रखा है और बांए हाथ में धन की थैली। अगर धन न हो तो फ़िर कैसा कुबेर? इसलिए शिल्पकार कुबेर का पेट गणेश सदृश्य बड़ा बनाते हैं और हाथ में धन की थैली थमाते हैं।
वीरभद्र |
वीरभद्र की सुंदर प्रतिमा भी संग्रह में रखी हुई है। शिवालयों में वीरभ्रद की प्रतिमा भी अनिवार्य रुप से बनाई जाती थी। वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण था जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया. देवसंहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ नामक गण उत्पन्न किया. महादेवजी के श्वसुर राजा दक्ष ने यज्ञ रचा और अन्य प्रायः सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो महादेवजी को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री सती को ही निमंत्रित किया।
विष्णु |
पिता का यज्ञ समझ कर सती बिना बुलाए ही पहुँच गयी, किंतु जब उसने वहां देखा कि न तो उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया इसलिए उसने वहीं प्राणांत कर दिए. महादेवजी को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने दक्ष और उसके सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ नामक गण उत्पन्न किया। वीरभद्र ने अपने अन्य साथी गणों के साथ आकर दक्ष का सर काट लिया और उसके साथियों को भी पूरा दंड दिया।
स्कंद माता |
स्कंधमाता की भी स्थानक प्रतिमा हैं। पौराणिक गाथाओं में भगवान शंकर के एक पुत्र कार्तिकेय भी हैं, वे भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
शिव पार्वती |
एक प्रतिमा नंदी आरुढ शिव पार्वती की है, जिसमें नंदी वेग से आगे बढे जा रहे हैं, उनके दोनो अगले पैर हवा में दिखाए गए हैं। नंदी की लगाम पार्वती ने अपने हाथ से थाम रखी है। इस प्रतिमा में शिव का चेहरा भग्न है, किसी ने प्रतिमा को खंडित कर दिया है।
विष्णू |
इसके साथ ही एक अद्भुत प्रतिमा भी इस संग्रह में है। जिसे अध्येता विष्णु की प्रतिमा बताते हैं। जिसके एक हाथ से सीधी तलवार दबाई हुई है, शीष पर टोपी और कानों में कुंडल के शीष के बगल में चक्र दिखाई देता है। पोषाक बख्तरबंद जैसी है तथा पैरों में लम्बे जूते हैं। इस प्रतिमा के नाम निर्धारण पर गत संगोष्ठी में विवाद की स्थिति उत्पन्न थी, कुछ इसे विष्णु प्रतिमा मानते हैं , कुछ नहीं। यह प्रतिमा किसी युनानी योद्धा जैसे दिखाई देती है।