पुरातत्व पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन
छत्तीसगढ़ के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा प्राचीन अभिलेख, पुरालिपि, मुद्राशास्त्र एवं प्रतिमाशास्त्र विषय पर महंत घासीदास संग्रहालय के प्रेक्षागृह में 8 से 10 मार्च तक आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का आज तीसरा एवं अंतिम दिवस था। आज की कार्यशाला प्रतिमा शास्त्र पर केन्द्रित थी, जिसमें विद्वानों के व्याख्यान संबंधित विषय पर हुए।
कार्यशाला का शुभारंभ खैरागढ़ विश्व विद्यालय के प्रतिमा शास्त्री प्रोफ़ेसर आर एन विश्वकर्मा के व्याख्यान से हुआ। प्रोफ़ेसर आर एन विश्वकर्मा ने छत्तीसगढ़ से प्राप्त शैव प्रतिमाओं पर अपना व्याख्यान केन्द्रित किया तथा शिव प्रतिमाओं के विभिन्न रुपों की पहचान के साथ उनके पौराणिक संदर्भ भी बताए तथा कहा कि प्रतिमा विज्ञान एवं प्रतिमा शास्त्र दोनों अलग हैं। शिल्पकार को प्रतिमा विज्ञान छूट देता है प्रतिमा के निर्माण में तथा शास्त्र पर आधारिक लक्षणों एवं परिमाणो पर बनाई गई प्रतिमा में शिल्पकार निर्देशों से बंधा हुआ होता है।
भोपाल से आए हुए पुराविद श्री डॉ व्ही पी नगायच ने प्रतिमाओं की पहचान पर विस्तार से प्रकाश डाला। हिन्दू, जैन, बौद्ध प्रतिमाओं को उनके लांछनों के आधार पर किस तरह से पहचाना जाए इस सार्थक प्रशिक्षण दिया। इसके साथ प्रतिमाओं के लांछनों पर विस्तार से चर्चा की। चित्रों के प्रदर्शन के साथ पहचान चिन्हों को विस्तार से समझाने के कारण इसका लाभ अवश्य ही उपस्थित जन ने उठाया।
इस कार्यशाला को सभी लोगों ने मन से सराहा तथा अपने विचार भी प्रकट किए। सरगुजा सूरजपुर से आए हुए श्री मोहन साहू ने चर्चा करते हुए कहा कि पुरातत्व के प्रति लोगों में जागरुकता लाने की दृष्टि से कार्यशालाओं का आयोजन होना चाहिए। महासमुंद से आई हुई श्रीमती रीता पान्डेय ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि इस तरह की कार्यशाला का आयोजन प्रतिवर्ष होगा, जिससे विद्यार्थियों को पुरातत्व के विषय की शिक्षा सहज ही प्राप्त हो सकेगी तथा वे अपनी धरोहरों के प्रति सजग हो सकेगें। उपस्थित जनों संस्कृति विभाग को कार्यशाला के आयोजन पर साधुवाद दिया।
इसके पश्चात उपस्थित अतिथियों का संस्कृति विभाग के अधिकारियों द्वारा शाल श्री फ़ल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। इस अवसर छत्तीसगढ़ सरकार के पुरातत्व सलाहकार पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा, प्रोफ़ेसर एस एल निगम, श्री जी एल रायकवार, प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर गुप्ता, प्रोफ़ेसर ए एल श्रीवस्तव, इंडोलॉजिस्ट श्री ललित शर्मा, डॉ शम्भूनाथ यादव, संग्रहालयाध्यक्ष डॉ प्रताप पारख, डॉ वृषोत्तम साहू, श्रीमती रीता पान्डेय महासमुंद सहित पुरातत्व प्रेमी एवं विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के छात्र उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन श्री प्रभात सिंह ने किया तथा डॉ कामता प्रसाद वर्मा ने उपस्थित जनों का आभार प्रदर्शन किया।