छत्तीसगढ

पुत्रियों ने दी पिता की चिता को मुखाग्नि

कोसीर/ समय के साथ समाज में बदलाव आ रहा है। नारी भी समाज में अपना स्थान निश्चित कर जागरुकता की ओर बढ़ रही है। वह दिन लद गए जब उसे लाचार, कमजोर और बेबस समझा जाता था। आज की नारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर समाज को नई दिशा देकर पुरुषों से हर जगह कंधे से कंधा मिला कर अग्रसर हो रही है। पुत्र न होने पर ग्रामीण अंचल में पिता के अंतिम संस्कार करने का अनुकरणीय कार्य पुत्रियों के द्वारा करना नारियों का अपने अधिकारों के प्रति सजग होने का संकेत है।

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समाज में परिजनों की मृत्यू के उपरांत दाह संस्कार का अधिकार सिर्फ़ पुरुषों का ही था।परन्तु वर्तमान में ग्रामीण अंचल की नारियाँ वर्चस्व तोड़ कर आगे बढ रही है। इसकी झलक गत 5 जुलाई को जांजगीर जिले के ग्रम पथर्रा में हसदेव नदी किनारे स्थिति मुक्तिधाम में देखने मिली। जहाँ बेटियों ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। यह कार्य समाज में नई क्रांति का संकेत है।

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भागिरथी कुर्रे आत्मज हेतराम कुर्रे 70 वर्ष का कैंसर की बिमारी से देहावसान हो गया। मृतक का कोई पुत्र नहीं था। इनकी मात्र 2 पुत्रियाँ ही हैं, अंतिम संस्कार के वक्त मुखाग्नि देने वाला कोई नहीं था। परिजनों ने अंतिम संस्कार के लिए बेटियों को बुलाया था उनके आने की प्रतीक्षा 4 बजे तक करते रहे। जब मृतक की पुत्रियाँ पूजा लहरे एवं वैजंती लहरे मुक्तिधाम पहुंची और उन्होने पुत्र की जिम्मेदारी निभाते हुए पिता की चिता को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार का कार्य सम्पन्न किया। शहरों इस तरह की घटनाएं गाहे-बगाहे सुनाई देती हैं, परन्तु सुदूर ग्रामीण अंचल के लिए यह चौंकाने वाली बड़ी बात थी। यह कार्य समाज में विस्तारित हो रही स्त्री चेतना के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

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लक्ष्मी नारायण लहरे

पत्रकार/कोसीर (सारंगढ़)