शैक्षणिक गुणवत्ता के नाम पर भयपूर्ण माहौल

छत्तीसगढ़ शासन ने वर्ष 2014-15 को शैक्षिक गुणवत्ता वर्ष घोषित किया है। इसके लिए बहुत से दिशा निर्देश जून माह के प्रारंभ में ही जारी कर दिए गए। इन निर्देशों के तहत शाला समय परिवर्तन, नियमित और व्यापक निरीक्षण, एक समान समय सारणी, ग्राम सुराज की तर्ज पर शालाओं में ग्राम सभा का आयोजन आदि उपायों का उल्लेख है। इन उपायों से कदाचित लक्ष्य को हासिल किया जा सकता था लेकिन इसके साथ-साथ शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की बात से शासन के गुणवत्ता हासिल करने के मंसूबे पर पानी फिरता नजर आ रहा है। युक्यिुक्तकरण के लिए पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में शिक्षकों को अतिशेष बताया जा रहा।

सबसे बड़ी विसंगति ये है कि इस युक्यिुक्तकरण की कोई स्पष्ट नीति नहीं है और रोज अतिशेष की नई-नई सूचियां जारी हो रही है। इसका सिलसिला कब जाकर थमेगा, कब तक फुल-एन-फायनल सूची बन पाएगी और इन अतिशेष शिक्षकों को कहां खपाया जाएगा इसे बताने के लिए कोई तैयार नहीं है। बी. टी. आई., डी. एड. प्रशिक्षित शिक्षक मिडिल स्तर के प्रायः सभी विषयों को पढ़ाने में सक्षम होते हैं। वषों से सफलतापूर्वक अध्यापन कर रहे ऐसे अनुभवी शिक्षकों पर अविष्वास कर और सत्र के प्रारंभ में ही उनके सिर पर स्थनांतरण की तलवार लटकाकर शिक्षा के स्तर में गुणवत्ता ले आने की बात सोचना बेहद हास्यास्पद है।

गुणवत्ता के नाम पर इतना भयपूर्ण माहौल तैयार किया जा रहा मानों बिना भय के इसे हासिल करना असंभव हो और भयभीत कर इसे साल भर में पा ही लिया जाएगा। कोई भी कार्य प्रेमपूर्वक जितने अच्छे ढंग से सम्पन्न कराया जा सकता है भय पैदा कर नहीं कराए जा सकते। इसके पीछे शासन-प्रशासन की सरकारी स्कूलों को पूरी तरह बदनाम करने और निजी स्कूलों की प्रतिष्ठा बढ़ाने की नीयत से इंकार नहीं किया जा सकता। सरकारी स्कूलों में अब तक गुणवत्ता लाने की दिशा में काम शुरू हो चुका होता पर आज पूरा शिक्षक समाज अपने भविष्य पर खतरे की आशंका से ग्रस्त है और स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई ठप्प है।

शैक्षिक गुणवत्ता वर्ष की घोषणा के बाद कम से कम इस वर्ष युक्यिुक्तकरण के जिन्न को बोतल से बाहर नहीं निकालना था और कहना था कि यदि इस साल गुणवत्ता नहीं बढ़ी तो युक्यिुक्तकरण का डंडा प्रशासन को चलाना ही पड़ेगा। तब किसी दावा-आपत्ति पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। पर सीधी बात प्रशासन के समझ में आती ही नहीं। कहा जा रहा है शासन के सभी विभागों के अधिकारी स्कूलों का निरीक्षण करेंगे। यहां तक कि पटवारी को निरीक्षण अधिकारी बनाया जा रहा है। शिक्षकों के प्रति यह अविश्वास की पराकाष्ठा है। सरकारी स्कूलों के शिक्षक किन परिस्थितियों में काम करते हैं इसे देखने वाला कोई नहीं है।

आज सबसे ज्यादा हिकारत का पात्र कोई सरकारी कर्मचारी है तो वो है सरकारी शिक्षक। उसकी ऐसी छवि बना दी गई है कि वे बहुत ज्यादा वेतन पाते हैं और काम कुछ नहीं करते मानों बाकी सारे विभाग के कर्मचारी बिना वेतन के काम करते हैं। हां यह भी सही है कुछ शिक्षक अपना काम ईमानदारी से नहीं करते, समय से आते-जाते नहीं पर इसके लिए अधिकारी दोषी है जो निरीक्षण के लिए समय नहीं निकाल पाते और अनियमितता पर रोक नहीं लग पाती। ऐसे कुछ शिक्षकों के कारण पूरे शिक्षक वर्ग पर अविश्वास जताना कहाँ तक उचित है? शासन को युक्यिुक्तकरण की योजना इस साल के लिए स्थगित कर देना चाहिए बाकी सारे उपायों पर अमल करना शासन का अधिकार है।

 दिनेश चैहान,

 छत्तीसगढ़ी ठीहा, नवापारा- राजिम,

 मो. 9826778806।

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