हरिलाल गांधी ने सतना के फ़ैज होटल में गुजारे थे कुछ वर्ष
थोड़ा सतना के विषय में जानते हैं तो लक्ष्मीबाई महाविद्यालय पर सुतना नाम का शिलालेख लगा दिखाई देता है। कहने का मतलब यह है कि पहले इस शहर का नाम सुतना था जो कालांतर में सतना हो गया। रींवा राज की दो जमींदारियां यहां पर थी, राज खत्म होने पर अंग्रेजों की रीजेंसी यहाँ आई और अन्य काम धाम शुरु हुए और वर्तमान सुतना से सतना बनने तक का सफ़र प्रारंभ हुआ। यहां आस पास में लाईम स्टोन की प्रचुरता होने के कारण कई सीमेंट फ़ैक्टरियां है। सीमेंट से पहले चूना बनाने के कारखाने थे। पन्नी लाल चौक के विषय में निरंजन शर्मा जी कहते हैं कि अंग्रेजों के समय में यहाँ पन्नी लाल प्रमुख व्यवसायी होते थे। उनकी दुकान में अंग्रेजों के मतलब के सभी सामान मिलते थे और मेडमें यहाँ उनकी दुकान पर सामान लेने आती थी। प्रमुख व्यवसायी होने के कारण इस चौक का नाम पन्नी लाल चौक पड़ पड़ गया।
हां तो चलते हैं गांधी जी के ज्येष्ठ पुत्र हरिलाल की कथा पर। गांधी जी एवं हरिलाल में उम्र का अधिक फ़ासला नहीं था। जब गांधी जी 15 वर्ष के थे तब हरिलाल पैदा हो गए। इसलिए बाप बेटे के विचारों में सदा मतभेद रहा। कई वर्षों तक तो इन्होंने आपस में बात नहीं की। कुछ वर्षों पूर्व गांधी जी के पत्रों की नीलामी के बाद कुछ अन्य तथ्य भी खुलकर सामने आए। बाप बेटे के बीच विरोध इतना बढ़ गया कि हरिलाल मुसलमान हो गए। यह उनके निजी जीवन का एक दुखद पहलु था। दुखी कस्तुरबा गांधी ने 27 सितम्बर 1936 को हरिलाल के मुसलमान दोस्तों को पत्र भी लिखा। उन्होंने हैरानी जताई कि उसने अपना प्राचीन धर्म बदल लिया और मांस खाना भी शुरु कर दिया।
अपने पिता के विशाल व्यक्तित्व के विपरीत जिन्दगी भर तमाम उठा पटक झेलने वाले और भिखारियों सा जीवन व्यतीत करने वाले हरिलाल के बारे में कस्तुरबा को लगता था कि उसके मुसलमान दोस्तों ने उसे मुसलमान बनने के लिए प्रेरित किया। बा को कहीं न कहीं उम्मीद थी कि धर्मांतरण से पुत्र का भला होगा। लेकिन परिस्थितियां विपरीत हो गई थी। कुछ तो इस हद तक चले गए थे कि उसे मौलवी का खिताब दे दिया जाए। उन्होंने हरिलाल के मुस्लिम दोस्तों को समझाते हुए लिखा कि तुम जो कर रहे हो, वह कतई उसके हित में नहीं है। अगर तुम्हारी इच्छा मुख्य रुप से हमारी हँसी उड़वाना है तो मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना।
जानकार बताते हैं कि एक बार गांधी जी एवं कस्तुरबा सतना से रेलगाड़ी से गुजरे तो हरिलाल उनसे मिलने गए, गांधी जी ने हरिलाल की तरफ़ देखा भी नहीं। लेकिन बा ने उसे एक सेब दिया और गाड़ी चल पड़ी। इस तरह श्री निरंजन शर्मा एवं लाल प्रमोद सिंह के साथ मुझे अल्पावधि में ही सतना के इतिहास में झांकने का अवसर मिला साथ ही उस इतिहास से रुबरु हुआ जिसका संबंध गांधी जी से जुड़ा हुआ है। यात्रांए बहुत कुछ जानने, समझने एवं सीखने का माध्यम होती हैं, न जाने कब कहाँ किससे मुलाकात हो जाए। सतना यात्रा के बहाने गांधी जी के ज्येष्ठ पुत्र हरिलाल के जीवन में झांकने का मौका मिला,