कहानी का किन्नर समाज के प्रति बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा : मुकेश पाण्डेय “चंदन”
किन्नर, हिजड़ा , वृहन्नला , खसुआ आदि संबोधन आज भी भारतीय समाज में बहुत ही सम्मानित नहीं माने जाते परंतु ललित शर्मा जी ने अपनी कहानी ‘रतियावन की चेली’ मैं समाज के एक अछूते वर्ग को केंद्रित कर कर लिखा है, यह एक बहुत ही अनूठा प्रयास है।
इस कहानी से किन्नर समाज के प्रति लोगों में जो भ्रांतियां फैली हुई है, उनको दूर करने में बहुत कुछ मदद मिलेगी। क्योंकि आज भी हमारा समाज किन्नरों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखता अक्सर उन्हें खुशी के अवसर पर लूटने वाला वर्ग माना जाता है।
जबकि अगर हम उनके जीवन पर दृष्टि डालें तो बिना किसी अपराध के उन्हें एक दयनीय जीवन जीना पड़ता है। समाज में वह है उपेक्षित वर्ग की तरह रहते हैं और उनके स्वयं के क्रियाकलाप या रीति-रिवाज भी रहस्यमयी या गोपनीय तरीके के होते हैं जिससे समाज उन्हें और अधिक संता भरी दृष्टि से देखता है।
ललित जी ने अपनी कहानी में रतियावन की चेली के माध्यम से इस समाज का एक उजला पक्ष भी रखा है कि सारे किन्नर ही लुटेरे नहीं होते हैं उनमें भी मानवीयता होती है ,वह भी समाज के रीति-रिवाज और परंपराओं का पालन करते हैं।
रतियावन की चेली अपनी तमाम मुश्किलों और परेशानियों के बावजूद समाज के लोगों के लिए हर समय अच्छा ही सोचती है उसके मन से सदा उनके लिए दुआएं और आशीर्वाद ही निकलता है और अक्सर किन्नर समाज के अधिकांश लोग इसी प्रवृत्ति के होते हैं।
“रतियावन की चेली” कहानी समूचे समाज को झिंझोडकर रख देती है
ललित जी की इस कहानी का समाज पर किन्नर समाज के प्रति बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और लोगों के द्वारा जो शंका पूर्ण दृष्टि से किन्नरों को देखा जाता है उसमें कहीं ना कहीं कमी आएगी समाज की सोच बदलेगी और इस समाज को भी समाज अपने में स्वीकारने में तैयार होगा।
समाज की उपेक्षा से हमारे देश में एक बहुत बड़ा वर्ग किन्नर समाज के रुप में समाज की मुख्यधारा से अलग थलग पड़ा है और यह समाज के साथ-साथ राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियों से भी दूर है यदि इन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ा जा सके तो न केवल सामाजिक ताने-बाने में यह हमारे साथ शामिल होंगे बल्कि समाज की और देश की आर्थिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर भागीदार होंगे।
हाल ही में कई देशों के द्वारा किन्नर समाज को तीसरे वर्ग के रूप में न केवल मान्यता दी गई है, बल्कि शासकीय सेवाओं में भी उन्हें पूरी तरह स्वीकार किया जा रहा है।
इस तरह उन देशों में इस तीसरे वर्ग को मुख्यधारा में जोड़ा गया है जिसकी जरूरत हमें अपने देश में भी बहुत ज्यादा है। ललित जी की इस कहानी से इस उपेक्षित तीसरे वर्ग को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने में कहीं न कहीं मदद अवश्य मिलेगी।
.
सामान्य रूप में किन्नर समाज एक उपेक्षित समाज है । उनकी भी भावना और दुख दर्द है , उनको उजागर करने के लिए ललित शर्माजी को धन्यवाद । लोग उनकी तकलीफे समजेंगे, उनसे सहानुभूति रखकर , अच्छे से पेश आएंगे, तो इस कहानी लिखना सार्थक होगा ।