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किसने कहा था? मनकही

रेखा पाण्डेय (लिपि)

किसने कहा था? यह प्रश्नोत्तरी का प्रश्न नहीं जिसका कोई उत्तर देना पड़े। यह कथन है उन लोगों के मुख से सदैव ही सुनने मिलता है जो स्वयं तो किसी कार्य को नहीं करते यदि कोई करता है तो उल्टा एक पंक्ति में उत्तर देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं ‘किसने कहा था’ ऐसा करने को।

यह कथन अपने आप में अत्यधिक शक्तिशाली है जो मन-मस्तिष्क को हिला देता है। बिजली सी कौंध जाती है। ऐसे व्यक्तियों पर नाम बड़े बड़े दर्शन छोटे वाली कहावत चरितार्थ होती है। इनकी दृष्टि में सभी मूर्ख हैं, केवल वही बुद्धिजीवी, सच्चे हैं। ये लोग किसी भी प्रकार के उत्तरदायित्व का वहन नहीं करते परन्तु सामने कार्य करने वाले व्यक्ति से पूर्णरूपेण आश्वस्त रहते हैं कि यह कार्य तो इसे ही करना पड़ेगा आज नहीं तो कल।

किसने कहा था? कहने वालों को व्यवस्था-अव्यवस्था से कोई सरोकार नहीं होता।अपने तक ही सीमित रहते हैं इनका काम निकल गया बाकि आप समझते रहिए कि आपने किन-किन परेशानियों का सामना कर कार्य को पूर्ण किया है। ऐसे स्वभाव के व्यक्ति सदैव लापरवाह और जिम्मदारियों से बचने का अवसर तलाशते रहते हैं।

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यदि कर्मठ व्यक्ति किसी कार्य का बेड़ा उठाएगा तो उसे पार भी लगायेगा क्योंकि वह कर्मवीर है उसे बहुजन हिताय में निःस्वार्थ भाव से कार्य करना हैं। इसे कहते हैं ‘बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा’। ‘किसने कहा था’ यह कथन व्यंग्योक्ति के समान चुभती है, पर इससे काम बैठे-बिठाये हो जाता है, ‘हर्रा लगे ना फिटकरी रंग चोखा।’ अकर्मण्य दूसरों की मेहनत, समय और धन को महत्व नहीं देता, लेकिन कर्मण्य इनके महत्व को समझते हुए कभी पराश्रित नहीं रहते।

अपने कर्तव्यों के प्रति शून्य व्यक्ति से किसी भी प्रकार के कार्यों की अपेक्षा रखना, कर्मण्य व्यक्ति की सबसे बड़ी भूल होती है। परिस्थितिवश कभी कार्य करने को कहा जाए तो एक उत्तर शीघ्र मिलता है पड़े रहने दो, मत करो। परन्तु सारी सुख-सुविधाओं के यही सच्चे अधिकारी हैं।’

किसी के किये कार्यों के प्रति कृतज्ञता प्रस्तुत करना इनके स्वभाव में नहीं होता। भगवान आपका भला करे, यदि आपने मेरी सहायता नहीं कि होती तो मेरा बहुत नुकसान हो जाता, आपका बहुत- बहुत धन्यवाद। ऐसे शब्दों से इनका कोई संबंध नहीं होता।

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इनसे किसी प्रकार की आशा नही रखी जा सकती कि समय आने पर अपनी जिम्मेदारियों को निभा पाएंगे। इसके विपरीत ‘सौ सुनार की एक लोहार की’ कहावत की भांति ‘किसने कहा था’ बोलकर स्वयं तो चैन से खाते और सोते हैं और एक से सौ तक सीढियां चढकर कार्य को पूर्ण करने वाला व्यक्ति की प्रसन्नता एक ही क्षण में छीन कर उन्हें दुःखी कर देते हैं।

यदि आपको कार्य नहीं करना तो किसने कहा था, इस वाक्य को बोल दीजिए, जो आग में घी का काम करेगा। परिश्रमी व्यक्ति उसे चुनौती के रूप में स्वीकार कर कार्य को अंतिम परिणीति तक पहुंचा कर ही दम लेगा।

जो मनुष्य सच्चा, ईमानदार होता है उसे अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का पूरा ज्ञान होता है कि इस धरा पर ईश्वर ने इसी कार्य के निमित्त भेजा है। बड़े सौभाग्य से मानव तन प्राप्त होता है, उसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। ईश्वर ने उन्हें बुद्धि के साथ विवेक भी प्रदान किया है ताकि उचित निर्णय ले किसी कार्य को कुशलता से सम्पन्न कर सकें।

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किसी भी परिवार, समाज और राष्ट्र का कल्याण कर्मण्य मनुष्यों के द्वारा ही हो सकता है। इनके कार्य ही आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श बन कर्मवीर बनने का आदर्श स्थापित करते हैं। अतः प्रत्येक इंसान को कर्मशील रहना चाहिए। महाभारत में श्री कृष्ण ने कहा है ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते।’

लेखिका साहित्यकार हैं एवं समसामयिक विषयों पर निरंतर लेखनी चलाती हैं।