अनिल दीक्षित : घुमक्कड़ी हर हाल में खुश रहने की कला सिखाती है।
घुमक्कड़ जंक्शन पर आज हमारे साथ हैं पेशे से कैब संचालक अनिल दीक्षित। ये हिमालय क्षेत्र की कठिन यात्राएँ करते हैं, जिसके फ़लस्वरुप इन्हें उत्तराखंड एवं हिमाचल के पहाड़ी मार्गों की अच्छी जानकारी है एवं जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष कर इन्होंने घुमक्कड़ों की दुनिया में अपना एक मुकाम बनाया है। आइए भेंट करते हैं इनसे एवं जानते हैं घुमक्कड़ी के अनुभव……
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
@ प्रणाम गुरुदेव….. आपका इस मंच पर जगह देने के लिए आभार। मेरा जन्म करावल नगर दिल्ली मे हुआ है। मूल रुप से अलीगढ यूपी का रहने वाला हूँ। बचपन भी ठीक-ठाक बीता पर कब जवान हो गया ये पता नही चला। मैं 5 वर्ष का था तब पिताजी का स्वर्गवास हो गया तथा 2003 मे माताजी की मृत्यु के बाद परिवार (छोटे भाई-बहन) की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गयी थी जिस कारण पढाई पूरी नही पाया। बाद मे पत्राचार से दसवीं करी।
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?
@ अभी मे कैब चलाता हूँ जो गुड़गांव की एक मल्टिनेशनल कंपनी मे अटैच है। परिवार मे पत्नी एक बेटा, एक बेटी और छोटा भाई हैं।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
@ बचपन मे अखबार पढने का शौक था जिसमे यात्रा संस्मरण अच्छे लगते थे, जिन्हें पढ कर उन जगहों पर जाने के बारे मे सोचा करता था।
4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं?
@ जब मैने पहली ट्रैकिंग (गौमुख) करी तब पता नही था इसे ट्रैकिंग कहते हैं। फेसबुक के मित्रों के माध्यम से इसका पता चला। बीनू भाई के ब्लॉग को पढ़ कर दिसंबर मे तुंगनाथ गया जहां की भीड़ मे मन नही लगा। ज्यादातर ट्रैकिंग अपने मित्र नितिन और बड़े भाई समान संजय कौशिक जी के साथ हुई है। इसमें कौशिक जी के साथ ढाई दिन मे कल्पेश्वर रुद्रनाथ ट्रैक किया जिसका अनुभव कौशिक जी बता चुके हैं और नितिन के साथ गंगोत्री से केदारनाथ यात्रा बेलक, बूढ़ा केदार, घुत्तु, पंवाली, त्रियुगीनारायण होकर) करी जिसमें पूरे रास्ते जंगल मे हम दो ही थे। हालांकि कांवड़ का समय था पर हमने सबसे बाद मे चलना शुरु किया इसलिए पूरे रास्ते कोई नही मिला।
पहली बार केदारनाथ (2014) जाना भी बड़ी टेड़ी खीर रहा। एक दिन मे अप डाउन करने के चक्कर मे हालत खराब हो गयी थी। जाते समय एक किमी तक नेपाली की पीठ पर भी लदा और ऑक्सीजन भी लगवानी पड़ी। ये सब अति आत्मविश्वास के चक्कर मे हुआ क्योंकि इससे पहले एक दिन मे गौमुख ट्रैक कर चुका था। इस केदारनाथ यात्रा से सबक लेकर आगे कभी ऐसी गलती नही करी, अब अपनी चाल से चलता हूँ।
5. उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
@ पहली बार घूमने की जगह को लेकर थोड़ा संशय है फिर भी अपनी पहली यात्रा गंगोत्री (2011) को मानता हूँ इससे पहले डिप्रेशन का शिकार था। यहां जाकर जिस मानसिक तनाव मे घिरा रहता था उससे मुक्ति मिल गयी। मां गंगा का संस्मरण करके अपने मन के बुरे विचारों को वहीं बहा दिया। घुमक्कड़ी से अब हर हाल मे खुश रहने की कला सीख ली है।
6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
@ मेरी ज्यादातर घुमक्कड़ी धार्मिक स्थानों पर ही होती है जिससे परिवार की तरफ से कोई परेशानी नही होती। छुट्टियों की परेशानी रहती है इस कारण से ज्यादातर घुमक्कड़ी जल्दबाजी वाली होती है।
7– आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताइए?
@ मुझे यात्रा संस्मरण और ब्लॉग जो जंगलों, पहाड़ों,निर्जन स्थानों, पुरातत्व व धार्मिक स्थानों के बारे मे लिखे हों उन्हें पढने मे आनंद की अनुभति होती है।
8-– घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?
@ घुमक्कड़ी मनुष्य के लिए आवश्यक है, जीवन का जो व्यावहारिक ज्ञान किताबों में नहीं है, वह घुमक्कड़ी सिखाती है एवं यही ज्ञान एवं अनुभव आगे चलकर जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
9-आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ मेरी सभी यात्रायें कम समय मे होने के कारण रोमांचक रही हैं। जिनमें कांवड़ यात्रा के समय बरसाती नाले को पार करते समय बहने से बचना, टिहरी मे बादल फटने से आये पानी और मलबे को पार करना, 12 जुलाई 2017 को हाई अलर्ट के बावजूद यमुनोत्री पहुंचना जिसे देख कर सभी हैरान थे।
मेरी ज्यादातर घुमक्कड़ी उत्तराखंड के गढवाल मे ही हुई है लगभग पूरा गढवाल घूम चुका हूँ। इसके अलावा राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जम्मू, यूपी के कुछ स्थानों पर घूम चुका हूँ जिनमें ज्यादातर पैसा कमाने के उद्देश्य से गया तो उसे अपनी घुमक्कड़ी नही मानता।
मैं केवल उसे ही अपनी घुमक्कड़ी मानता हूँ जहां जाकर मानसिक शांति का अनुभव हो। सभी यात्राओं से कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है। जैसे अब मैं बोलने के लहजे से लोगों के मूल निवास का पता लगाना सीख गया (या सीख) रहा हूँ।
10-घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ मैं किसी को क्या संदेश दूंगा, अभी तो स्वयं ही घुमक्कड़ी के स्कूल का विद्यार्थी हूँ। घुमक्कड़ों की दुनिया मे मुझसे सीनियर लोग बैठे हैं संदेश देने के लिए।
बहुत अच्छा अनिल भाई आपके हर पहलू जानने मिला
धन्यवाद विनोद भाई…
बहुत बढ़िया अनिल भाई ! इस साक्षात्कार से आपके बारे में काफी कुछ जानने को मिला है ! पढ़कर आनंद आया, आगे भी अपनी घुमक्कड़ी ऐसे ही जारी रखिये !
धन्यवाद सर…
बहुत बढ़िया अनिल भाई । आशा करता हूँ जीवन मे जितने दुख थे तुम सब झेल चुके हो और आगे भोले बाबा तुम्हे खुशियां ही खुशियां दें ।
बस अब क्या लिखूं….☺
बहुत बढ़िया अनिल भाई ! भोले बाबा आप पर स्नेह बनायें रखें .
ललित जी का धन्यवाद .
धन्यवाद सहगल साहब…..जय भोले की।
बिंदास भाई बिंदास ..।
छोटे छोटे जवाब …
आईने की तरह साफ …
मेरा मानना है …ghumkkdi किसी की बपौती नही ….
जिसका ….!जीता जगाता उदाहरण आप हो ….।।
ललित दा का शुक्रिया हर बार की तरह ….
ghummkkd junction का प्रोत्साहन ही अलग हैं …
जहाँ सबके सब बड़े बड़े घुम्क्क्ड दबाने में लगे हैं …
ललित दा चुन चुन के ऊपर उठाने में ।
धन्यवाद मिश्रा जी
कठिनाइयों पर विजय पाना ही एक अच्छे घुमक्कड़ की पहचान है।और जो कुछ तुमने खोया है उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना है कि उससे अधिक ही तुमको दे।
घुमक्कड़ी करो और ऐश में रहो ।परेशानियां तो लगी ही रहती है ।फुल टू इंजॉय ???
धन्यवाद बुआ जी
वाह अनिल भाई आपके बारे में जानकर अच्छा लगा
धन्यवाद सर
अनिल जी आपको व आपकी घुमक्कड़ी को सादर प्रणाम
धन्यवाद त्यागी जी
लव यू अनिल ?
आपने संघर्ष करके अपना मुकाम बनाया है, वो प्रेरक है।
आगामी जीवन के लिये बहुत बहुत शुभकामनाएं ?
धन्यवाद सर
अनिल से मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत प्रभावित रहा हूँ लेकिन कभी कभी मुझे लगता है ये हर यात्रा को जल्दी में निपटाने का प्रयास करते हैं !! पहाड़ी रास्तों के बेहद जानकार अनिल भाई के विषय में जानकर अच्छा लगा ! धन्यवाद ललित जी
धन्यवाद योगी जी….समय की कमी भागदौड़ का मुख्य कारण है
जिंदादिल इंसान बहुत अच्छे अनिल भाई
धन्यवाद भाईसाहब
बहुत अच्छा लगा यह कड़ी पढकर अागे से भी एेसे ही यारी रखना इस कड़ी को
धन्यवाद ललित सर एक अौर घुमक्कड़ी से मिलवाने के लिए
धन्यवाद सर
Anil भाई बहुत जबरदस्त, आपके जज्बे को सलाम है.. जीवन की आपा धापी के मध्य अपने लिए समय निकालना आजकल असम्भव सा है, परन्तु वहां भी आप अपने लिए समय निकाल पाये.. आपके यात्रा संस्मरण हृदय में उमंग जगाने वाले है.. आपका अनुभव सुनकर बहुत अच्छा लगा।
धन्यवाद भूतेश्वर
बहुत बढ़िया अनिल भाई…. अभी तक आपके बारे में बहुत ही कम जानते थे … इस कमी को आपके साक्षात्कार पूरी कर दी…
धन्यवाद ..ललित जी का इस परिचय के लिए
धन्यवाद भाईसाहब
बहुत बढ़िया अनिल भाई ??ऐसे ही शानदार घुमक्कड़ी करते रहो ???
धन्यवाद भाईसाहब ??
लभ जु अनिल।
लभ जू टू?
अनिल भाई, आपकी मैराथन घुमक्कड़ी अच्छे अच्छे घुमक्कड़ लोगो के कान काटे हुए है । गढ़वाल घूमते घूमते आपकी शक्ल भी गढ़वालियों जैसी हो गयी है । भाषा और सीख लीजिये । मजा आया आपको पढ़कर । ललित जी को चिर आभार
हहहह….प्रभु आपका आदेश सर आंखों पर कोशिश करुंगा गढ़वाली सीखने की।
आपकी जीवटता और अदम्य साहस को प्रणाम। प्रभु आपके राह के कांटे कम करे ऐसी प्रार्थना है. ह्रदय से शुभकामनाएं।
धन्यवाद जी
धन्यवाद पांडेय जी….जय भोलेनाथ
धन्यवाद सिन्हा साहब…. ये सब अति आत्मविश्वास के कारण हुआ।
प्रभु इस चक्कर मे मत फसाइये…
बहुत सुंदर अनिल भाई, आपका जीवन संघर्ष दे भरा रहा है। विपरीत परिस्थितियों में भी आपने अपनी मेहनत के बल लक्ष्यों को प्राप्त किया है।एवं समय निकाल कर घुमक्कड़ी भी की है। आपके जज्बे को नमन करता हु । एवं ललित जी का आभार आपकी जिंदगी से रूबरू कराने के लिए।
बहुत अच्छे अनिल भाई ,आज आपको करीब से जानने का मौका मिला । और सबक भी की आप इतनी विषम परिस्थितियों में भी अपनी घुमक्कड़ी कर सकते हो तो हर कोई कर सकता है। और इससे सच में तनाव दूर होता है भाई ये तो हमनें भी जाना है। आप उन लोगो के लिए पेरणा स्रोत हो जो घर परिवार जॉब व्यवसाय की आड़ लेकर अपने सपनो से समझौता कर अपने अरमानो का गला घोंट लेते है।
बधाई हो भाई आपको और उम्मीद है आपके साथ जल्द ही कोई ट्रेकिंग हो जाये।
वाह भाई..
नयी जानकारी आपके बारे में…
काफी रोचक और प्रेरक जानकारी….