पुस्तक समीक्षासाहित्य

“रतियावन की चेली” कहानी समूचे समाज को झिंझोड‌कर रख देती है : डॉ मीनाक्षी स्वामी

त्रैमासिक पत्रिका ‘वांङ्मय’ के थर्ड जेंडर विशेषांक में प्रकाशित ललित शर्मा जी की कहानी ‘रतियावन की चेली’ किन्नर जीवन की कड़वी सच्चाई ईमानदारी से बयान करती है। कहानी की सबसे बड़ी खासियत कि यह वास्तविक चरित्र की कहानी है।

ललित जी ने यह कथा किन्नर जीवन के संघर्ष का अति सूक्ष्म अवलोकन करने के बाद कागज पर उतारी है। कहानी पढ़ते हुए पाठक भी उसी गहराई को अनुभव करता चलता है।

कहानी का आरंभ अति मार्मिक है, जब मासूम बालिका अपनी शारीरिक, सामाजिक स्थिति से बेखबर है। माता‍ पिता द्वारा काका काकी के पास शहर में छोड़ा जाना तो उसे सहज लगता है। मगर वह समझ नहीं पाती है कि मोहल्ले की महिलाएं विभिन्न अवसरों पर उसे नए कपड़े, चूड़ी पाटला आदि क्यों देती हैं। कुछ समय बाद उसे ढूंढते हुए आने वाली रतियावन नाम की किन्नर उसकी वास्तविकता से अवगत कराती है। उसके न चाहते हुए भी अपने साथ ले जाती है।

See also  दिवंगत कवि श्रीराम साहू 'अकेला' की प्रथम पुण्यतिथि पर बसना में साहित्यकारों ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि

इसके साथ ही शुरु होती है किन्नर जीवन के संघर्ष की चुनौतीपूर्ण और मार्मिक यात्रा। इस यात्रा में किन्नर मन के संत्रास हैं, आर्थिक, सामाजिक परेशनियां हैं। किन्नर समुदाय के भीतरी संघर्ष और दाव पेंच हैं। समाज की उपेक्षा और सहानुभूति दोनों ही किसी भी किन्नर को किस तरह पीड़ा पहुंचाती हैं, यह जानकर पाठक का दिल दहल जाता है।

समय बीतता जाता है। अपने अच्छे व्यवहार के चलते रतियावन की यह चेली पार्वती, केवल किन्नर समाज ही नहीं अपितु दूसरे लोगों का भी दिल जीत लेती है। मगर इसके लिए उसे बहुत सी कुर्बानियां देना पड़ता है। नाच गाकर जीविकोपार्जन करने वाले इस समुदाय की वृध्दावस्था बहुत ही कष्टकर होती है। इसका अति मार्मिक चित्र खींचती है, यह कहानी़।

साथ ही समूचे समाज को झिंझोड‌कर रख देती है। समाज की चेतना पर प्रहार करते हुए किन्नरों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण के विकास की नींव तैयार करती है। यही नहीं किन्नर समुदाय को भी समाज में अपनी भूमिका और व्यवहार पर चिंतन हेतु प्रेरित करती है।

See also  दिवंगत कवि श्रीराम साहू 'अकेला' की प्रथम पुण्यतिथि पर बसना में साहित्यकारों ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि

किन्नरों पर लिखी जाने वाली अन्य कथाओं से हटकर यह कहानी किन्नर तथा मुख्य धारा के समाज के सकारात्मक ताल मेल का मार्ग प्रशस्त करती है। जहां मात्र किसी शारीरिक कमी के कारण उनका समुदाय अलग थलग न होकर समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित होकर अपनी सार्थकता को सिद्ध कर सकेगा। यही तथ्य इस कहानी को विशिष्ट ऊंचाई प्रदान करता है।

ललित शर्मा जी मूलतः एक यायावर हैं। बंद कमरे में कल्पना के सहारे रचना नहीं करते। वे घूम फिरकर जीवन की सच्चाईयों से रूबरू होकर, गहन चिंतन, मंथन, विश्लेषण के बाद ही शब्द चित्र खींचकर प्रामाणिक रचना पाठक के सामने रखते हैं। उनकी यह कहानी भी यथार्थ का मार्मिक चित्र दिखाती है।

ललित शर्मा जी तथा ‘वांङ्मय’ के सम्पादक डा. एम फीरोज़ अहमद जी का इतनी सशक्त कहानी पढ़वाने हेतु आभार। रतियावन की चेली यहाँ पढ़ सकते हैं।

.
मीनाक्षी स्वामी
 इंदौर

One thought on ““रतियावन की चेली” कहानी समूचे समाज को झिंझोड‌कर रख देती है : डॉ मीनाक्षी स्वामी

  • तरुण डी शुक्ल

    यायावर की लिखी कहानी इसलिए वास्तविक होती है,क्यों कि वह उसकी आँखों देखी हकीकत होती है । आम लेखक की कहानी उसके दिमाग की शोच का नतीजा होती है , जब कि यायावर अपनी खुद की आंखों से देखा हुआ वाकिया , अपना दिल लगाकर लिखते है । रतियावन
    की चेली भी उसी परंपरा की निपज है । जो कि सीधी दिल को छू जाती है । धन्यवाद ललित शर्माजी ।

Comments are closed.