सबको खुश रखिये, यही आत्मज्ञान है

कभी कभी सोचती हूँ खुशी क्या है? क्या खुशी परिवार तक ही सीमित होना चाहिये? बच्चे देखना, घर देखना, पति देखना, क्या बस इतने मे ही क्या वाकई शान्त मन चाही मिल पाती है। परिवार देखना परिवार के लोगों को खुश रखना ये तो बस मन की खुशी हूई, खुशी वो भी नही कि मोबाइल पर समय बिताया वो भी दो पल की ही खुशी।

खुशी तो सच्ची ईश्वर मे है। ईश्वर दिखते नही पर ईश्वर को देखा जा सकता है। आप अपने आस-पास देखिये कोई दुखी तो नहीं है। देखिये कहीं कोई मानसिक दुखों के कारण अपना जीवन बोझ समझ कर तो नही जी रहा। देखिये कोई भुखा तो नही है। कोई बच्चा भुख से रो तो नही रहा।

आज के समय कोरोना का है, कई लोग बेरोजगार हुये है। कई लोगों को कष्ट का सामना करना पड़ा है। ऐसे मे अगर आप किसी की परेशानी का सहारा बन कर देखिये, अगर कोई मानसिक रूप से दुखी है तो उसकी मुस्कान बन कर देखिये। अगर कोई बेरोजगार है तो उसकी काम दिलवाने की कोशिश कीजिये। अगर किसी के माता-पिता नही है तो उसके माता-पिता बनने की कोशिश कीजिये।

अगर सच्ची मे आपने किसी रोते हूये इंसान के चहेरे पर खुशी ला दी, उस दिन वाकई आपको ईश्वर की प्राप्ति हो जायेगी। ईर्ष्या की भावना को हमेशा के लिये खत्म कीजिये। अगर कोई ऊपर उठ रहा है तो उसे नीचे गिराने की मत सोचिये। अगर कोई ऊपर उठ रहा है तो उसको और ऊपर उठने मे मदद कीजिये, उससे ईर्ष्या की भावना ला कर उसे गिराने की मत सोचिये क्योकि सब यही मिलते है सबके कर्मो का हिसाब यही होता है।

ईर्ष्या अगर आपके दिल से खतम हो गई है तो समझो भगवान मिल गये आपको, जरा सोचिये किसी को गिरा कर आप कब तक उठोगे, वो कभी ना कभी तो गिरायेगा। जो ऊपर बैठा है, सब देख रहा है, फिर जब वो गिराता है तो उठने के काबिल भी नहीं छोड़ता।

इसलिये किसी का सहारा बनिये आत्मा को बहुत शांति मिलेगी। परिवार को खुश रखिये साथ में अपने आस-पास सभी को खुशी दीजिये, जीवन जिसने दिया है एक ना दिन वही जीवन वापस भी ले लेगा। क्या रहेगा यहां पर? यहा रहेगा आपका विचार, आपका स्वभाव, अपने विचार को पवित्र कीजिये।

ये दुनिया क्या है? किसने बनाई है? पेड़ पौधे जीव जन्तु कहाँ से आए? कोई तो शक्ति है जो पूरी रचना का कारण है। इंसान सब एक हैं बस स्वभाव अलग है। स्वभाव मे ही परिवर्तन लाना है। लोगों को ईश्वर शक्ति का अनुभव नहीं है, बस वही उनुभव एक मे जग गया तो समझो ईश्वर के दर्शन हो गये।

दुख-सुख जिन्दगी के दो पहलू हैं और हर स्थिति मे समान रहना चाहिये। जिन्दगी तो गणित है यहाँ जोड़ घटाना सब चलता रहता है। जिन्दगी मे सबको खुश रखिये, यही आत्मज्ञान है।

 

आलेख

श्रीमती ममता पाठक, नरसिंहपूर, मध्यप्रदेश

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