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विश्व राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका एवं प्रभाव

प्रहलाद सबनानी

वर्तमान वैश्विक राजनीति, विशेष रूप से रणनीतिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र में तेजी से बदलाव देख रही है। एक ओर जहां जी-7, जी-20 और नाटो जैसे पारंपरिक गठबंधनों की शक्ति में थोड़ी कमी आई है, वहीं ब्रिक्स जैसे समूह अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्ज कर रहे हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों का वर्चस्व लंबे समय से इन वैश्विक संगठनों के माध्यम से कायम रहा है, जिनमें संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), नाटो, और अन्य प्रमुख संगठन शामिल हैं। लेकिन अब वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ), विशेष रूप से अफ्रीकी महाद्वीप, मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के देशों ने इन संगठनों में सुधार की मांग उठाई है, ताकि विकासशील देशों को भी निर्णय प्रक्रिया में अधिक हिस्सेदारी मिल सके।

भारत का वैश्विक मंच पर बढ़ता महत्व

भारत सदैव से शांतिप्रिय राष्ट्र रहा है और “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना में विश्वास रखता आया है। इसकी नीति का प्रभाव है कि आज विश्व के अधिकतर देशों के साथ भारत के मधुर संबंध हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों पक्षों ने भारत की मध्यस्थता की आवश्यकता महसूस की है, वहीं इज़राइल-हमास संघर्ष के संदर्भ में भी कई देश युद्ध की समाप्ति के लिए भारत की मदद चाहते हैं। ब्रिक्स समूह की हालिया बैठक में रूस, भारत और चीन के बीच उभरते सहयोग का संकेत भी मिला है। यदि ये तीनों राष्ट्र आर्थिक और रणनीतिक सहयोग में मजबूती बनाए रखते हैं, तो इसके दूरगामी प्रभाव वैश्विक राजनीति पर पड़ सकते हैं। साथ ही, भारत का विदेशी व्यापार भी इन संबंधों के माध्यम से और अधिक सुदृढ़ हो सकता है।

भारत की अर्थव्यवस्था में भी तेजी से बदलाव हो रहे हैं। पारंपरिक रूप से भारत का व्यापार यूरोपीय और अमेरिकी देशों पर निर्भर था, लेकिन अब इसमें विविधता आ रही है। कोविड-19 महामारी के बाद, रूस से तेल आयात में वृद्धि देखी गई है, जो दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने का कारक बन रहा है। वहीं, चीन के साथ हालिया समझौतों से भी दोनों देशों के संबंधों में शांति और सहयोग की दिशा में प्रगति हो रही है। यह स्थिति पश्चिमी देशों के विश्व स्तर पर प्रभाव को कम कर सकती है, विशेषकर यदि भारत, रूस और चीन का त्रिकोणीय सहयोग बना रहता है।

वैश्विक दक्षिण और भारत का आर्थिक नेतृत्व

भारत की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति ने उसे एक शक्तिशाली वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर दिया है। आज भारत में विदेशी निवेश बढ़ रहा है क्योंकि विश्वभर के देश इसे एक महत्वपूर्ण बाजार और विश्वसनीय भागीदार के रूप में देख रहे हैं। इसके अलावा, भारत में कुशल युवाओं की संख्या और स्थिर लोकतंत्र इसे एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाते हैं। चीन की विस्तारवादी नीति और कोविड-19 के दौरान उसकी व्यापारिक नीतियों ने कई देशों को उससे दूर किया है, जिससे “चीन+1” नीति के तहत भारत को एक नया विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

भारत ने हाल ही में जी-20 की अध्यक्षता करते हुए अफ्रीकी देशों को शामिल करने का कदम उठाया, जिससे इस महाद्वीप पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। भारत न केवल जी-7 और ब्रिक्स जैसे संगठनों में एक सेतु की भूमिका निभा रहा है, बल्कि रूस-यूक्रेन और इजराइल-ईरान संघर्ष में भी मध्यस्थता की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। ऐसे में भारत को अपनी विदेश नीति और व्यापार नीति को साथ में लेकर चलने की आवश्यकता है, ताकि इसका लाभ देश के विकास में दिख सके।

भारत वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत स्थिति बनाते हुए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों और देशों के साथ अपने संबंधों को गहरा कर रहा है। चीन और पश्चिमी देशों के बीच संतुलनकारी भूमिका निभाते हुए, भारत वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभर रहा है।

लेखक सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी एवं आर्थिक मामलों के जानकार हैं।

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