वर्षाजल का संचयन करें एवं भारत को जलसंकट से बचाएं
विश्व में मानव उपयोग के जल की भारी कमी होती दिखाई दे रही है, जो रिपोर्ट विभिन्न शोध संस्थानों से आ रही हैं वे भयानक हैं। आगामी 50 वर्षों में पेयजल एवं निस्तारी जल को लेकर भयानक समस्याएं खड़ी होने वाली हैं जिसका प्रभाव समस्त जीव जगत पर पड़ेगा। भारत में भी कमोबेश यही स्थिति बनी हुई है, यहाँ भी जल संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
भारत में वर्तमान में वर्षाकाल प्रारंभ हुआ, वर्षाजल की एक बड़ी मात्रा नदियों के रास्ते समुद्र में जाकर खारी हो जाती है, जो जीव जगत के उपयोग के काबिल नहीं है। इसलिए यह सही समय है जब का संरक्षण किया जा सकता है और भूमि जल का स्तर बढाया जा सकता है।
भारत के रेगिस्तानी क्षेत्रों वर्षा कम होती थी तब वहाँ वर्षा जल सरंक्षण के समुचित उपाय किये जाते थे। घर ऐसे बनाये जाते थे कि वर्षा का जल शुद्ध होकर पानी की टंकियों में भर जाए तथा उस जल का प्रयोग अगली वर्षा तक जीवन यापन के लिए किया जाता था। उन्होंने अपनी आवश्यकता को देखते हुए तकनीकि विकसित की थी कि वर्षा जल को बरसने के बाद किस तरह शुद्ध करके भूमिगत पानी की टंकियों में पहुचाया जाए, जहाँ वह वर्षों तक सुरक्षित रहे एवं मानव उपयोग के लिए सुरक्षित रहे।
जल संकट के कारणों पर चर्चा करें तो कई कारण प्रमुख रुप से सामने आते हैं। जिनमें सबसे बड़ा कारण जनसंख्या वृद्धि है। बेतहाशा बढती हुई जनसंख्या ने भारत को जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान पर खड़ा कर दिया है। आज देश की जनसंख्या लगभग 140 करोड़ बताई जाती है। इतनी बड़ी जनसंख्या के जल की आपूर्ति एक बड़ी समस्या है। इस समय दिल्ली में जिस तरह जल की कमी दिखाई दी वह आगामी संकट की एक झलक मात्र है। चेन्नई, बंगलुरु जैसे कई शहर गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं।
दूसरा बड़ा कारण है कि नगरों में कांक्रीट का उपयोग अधिक होने के कारण धरती में जल समाने की जगहें समाप्त हो गई है। घर बनाते हुए लोग अपने आंगन एवं आस पास को कांक्रीट से ढक देते हैं, जिससे वर्षाजल धरती में नहीं समाता और नालियों के माध्यम से गंदा होकर बह जाता है।
तीसरा कारण है कि हमारी कृषि वर्षाजल पर आधारित है, जहाँ वर्षाजल नहीं है वहाँ गहरे बोर करवा कर कृषि के लिए जल की आपूर्ति की जाती है। इस तरह जल का अत्यधिक दोहन भूमि जल स्तर को रसातल में ले जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरुप नगरों में मार्च से जल संकट दिखाई देने लगता है।
चौथा कारण है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की पद्धति में बदलाव देखा जा रहा है। जहाँ कभी सूखा पड़ता था वहाँ अब घनघोर बारिश होती हैं, जहाँ कभी घनघोर बारिश होती थी वहाँ सूखा पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है तथा मौसम चक्र भी अब विलंबित दिखाई देता है। जहाँ ज्येष्ठ माह में खेत जुताई के लायक वर्षा हो जाती थी, वहाँ यही कार्य आषाढ में हो रहा है। जिससे कृषि का काल भी एक महीने आगे बढता हुआ दिखाई दे रहा है।
पांचवी सबसे बड़ी समस्या है जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण की। विभिन्न तरह के औद्योगिक अपशिष्टों को नदियों के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिसका असर सारे इको सिस्टम पर ही दिखाई दे रहा है। यह औद्योगिक अपशिष्ट नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है, जिसका सीधा असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ता हूआ दिखाई दे रहा है, जो विभिन्न बीमारियों को जन्म दे रहा है। इस कारण यह जल मनुष्यों एवं अन्य प्राणियों के उपयोग के लायक नहीं रहा।
अब हम जल संकट की वैश्विक स्थिति पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि संसार की दो अरब आबादी पानी के कमी वाले क्षेत्रों में निवास करती है। विश्व बैंक का अनुमान है कि 2050 तक जल की कमी होने कारण कुछ देशों की आर्थिक वृद्धि में 6% की कमी हो सकती है। भारत, चीन, अफ़्रीका आदि कई देश इस जल संकट के प्रभावित होने वालों में प्रमुख हैं। जल संकट के कारण कृषि उत्पादकता, स्वास्थ्य और आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है और आगे भी स्थिति विकट होने की आशंका है। भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1951 में 5,177 क्यूबिक मीटर से घटकर 2011 में लगभग 1,545 क्यूबिक मीटर हो गई है। लगभग 70% सतही जल और एक महत्वपूर्ण प्रतिशत भूजल प्रदूषित है। कई नदियाँ, जैसे गंगा और यमुना, गंभीर प्रदूषण का सामना कर रही हैं। इस समस्या के निपटने का प्रयास शीघ्र ही होना चाहिए।
जब हमने जल संकट से उत्पन्न होने वाले कारकों पर गंभीरता से विचार किया है तो उसके संभावित निदान पर भी चर्चा करनी चाहिए। सर्वप्रथम हमको वर्षाजल का संचयन करना चाहिए, पक्के घर की छतों से बहने वाले वाले पानी को टैंक में एकत्रित करनी की प्रणाली बनानी चाहिए, जिसका उपयोग अगर पेयजल के रुप में न कर सकें तो धरेलू कार्यों, बागवानी एवं भूजल वृद्धि के लिए किया जा सकता है।
नगरीय निकायों को चाहिए कि घर बनाने की अनुमति देने से पूर्व वर्षाजल संरक्षण के लिए वर्षाजल को भूजल तक पहुंचाने के लिए रिचार्ज पिट बनाना अनिवार्य किया जाए तथा पक्के मकानों की छतों में वर्षाजल एकत्रित करने के लिए पाइप लगा कर टैंक तक पहुंचाने की प्रणाली बनाना चाहिए। जिससे वर्षा जल का संचयन हो सकेगा एवं घरेलू कार्यो में प्रयुक्त किया जा सकेगा।
गाँव गाँव में नल जल योजना के तहत हर घर तक टंकी से नलों के माध्यम से जल पहुंचाया जा रहा है, जिसके कारण पुराने जल स्रोतों यथा तालाब, कुंआ, बावड़ी इत्यादि का उपयोग न होने कारण ये खराब हो गई हैं तथा इनमें कचरा डाला जा रहा है। इन जल स्रोतों की सफ़ाई करके इन्हें पुनर्जीवित किया जा सकता है, जिससे से ये जल स्रोत फ़िर से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका में आ सकते है। वर्षा के पूर्व जल स्रोतों की सफ़ाई की जानी चाहिए।
गाँव में तालाबों का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे वर्षाजल संरक्षित हो सके। जो पुराने तालाब हैं, उनको गहरा किया जाना चाहिए जिससे अधिक वर्षाजल संग्रहित हो सके। छोटी नदियों और नालों पर चेक डैम बनाएं। ये पानी के प्रवाह को धीमा करते हैं और भूजल पुनर्भरण में मदद करते हैं।
पार्किंग स्थलों और फुटपाथों के लिए पर्मएबल सामग्री का उपयोग करें। यह पानी को जमीन में रिसने देता है, जिससे भूजल पुनर्भरण होता है। इमारतों की छतों पर बागवानी करें जो वर्षा जल को अवशोषित करे। वर्षा उद्यान बनाएं जो अतिरिक्त पानी को फिल्टर करें और धीरे-धीरे जमीन में उतारें।
डिप इरिगेशन का उपयोग किया जाना चाहि जो पौधों की जड़ों के पास सीधे पानी पहुंचाता है। स्प्रिंकलर सिस्टम पानी को छोटी बूंदों में छिड़कता है, जिससे वाष्पीकरण कम होता है। कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें उगाएं। फसल चक्र का पालन करें जो मिट्टी की नमी को संरक्षित करे।
घरेलू कार्यों में पानी की बचत की जानी चाहिए, पानी बचाने वाले उपकरण लगाए जाने चाहिए। कम प्रवाह वाले नल और शावरहेड लगाएं तथा डुअल-फ्लश टॉयलेट का उपयोग करें। साथ ही पानी का पुन: उपयोग करना चाहिए जिसमें ग्रे वाटर (बेसिन, शावर का पानी) को फिल्टर करके बागवानी में उपयोग करें। वाशिंग मशीन का पानी फ्लशिंग के लिए इस्तेमाल करें।
औद्योगिक जल संरक्षण का भी संरक्षण किया जाना चाहिए, उत्पादन प्रक्रियाओं को इस तरह डिजाइन करें कि कम पानी का उपयोग हो। पानी के बंद लूप सिस्टम का उपयोग करें जहां पानी को शुद्ध करके फिर से उपयोग किया जा सके। उद्योगों में उत्पन्न अपशिष्ट जल का उपचार करके उसे पुन: उपयोग करें।
इसके साथ ही जागरूकता और शिक्षा कार्यक्रम चलाना चाहिए, सामुदायिक विकास एवं जानकारी के लिए जल संरक्षण पर कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित करना तथा स्थानीय जल संरक्षण परियोजनाओं में समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिए। स्कूल शिक्षा पाठ्यक्रम में जल संरक्षण को शामिल करके छात्रों को व्यावहारिक जल संरक्षण गतिविधियों में शामिल करना चाहिए।
इसके साथ नीतिगत उपाय भी करने चाहिए। जल संरक्षण को अनिवार्य बनाने वाले कानून और नियमों को लागु करना चाहिए। जिससे जल के दुरुपयोग से बचा जा सकता है। जल संरक्षण प्रयासों के लिए कर छूट या अन्य प्रोत्साहन प्रदान करनी चाहिए तथा जल संरक्षण करने वाले उपकरणों पर सब्सिडी देनी चाहिए।
नियम कानून प्रोत्साहन करने की योजना भले ही बाद में बने क्योंकि नीतिगत कानून एवं नियम बनाने में सरकार को समय लगता है, परन्तु वर्षा का काल हैं इसलिए जल संरक्षण के उपाय तुरंत लागु करने चाहिए तथा नागरिकों को जल संरक्षण के उपायो के लिए प्रेरणा लेनी चाहिए तथा अन्यों को भी प्रेरित करना चाहिए क्योंकि जल संरक्षण सतत प्रक्रिया है इसके लगातार की प्रयास की आवश्यकता है। तो फ़िर चलें इस वर्षा में जल संचयन का उपाय करने, जिससे भारत न केवल जल संकट से निपट सकता है, बल्कि एक स्थायी जल-सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ सकता है।
लेखक इण्डोलॉजिस्ट एवं न्यूज एक्सप्रेस के प्रधान सम्पादक हैं।