भागो मत, सामना करो स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानन्द अपने पारिव्राजक काल में वाराणसी में रूके थे। वहाँ एक दिन जब वे माँ दुर्गा के मंदिर के दर्शन करके लौट रहे थे, तभी बंदरों का एक झुण्ड उनके पीछे लपका। स्वयं को बचाने के लिए विवेकानन्द तेजी से दौड़ने लगे, किन्तु बंदरों ने पीछा नहीं छोड़ा। वे जितना तेज दौड़ते बंदर और भी क्रोधित होकर उनके पीछे दौड़ते। यह दृश्य देख रहे एक वृद्ध संन्यासी ने चिल्लाकर उनसे कहा- “भागो मत, सामना करो।” स्वामी विवेकानन्द यह सुनकर रूके और पलटकर बंदरो के सामने डटकर खड़े हो गए। तब बंदर भी ठिठककर रूक गए और गुर्राना बंद कर पीछे हट गए ।
इस छोटी सी घटना से स्वामी विवेकानन्द ने एक बड़ा सबक सीख लिया- ‘भागो मत, सामना करो। ” जब भी कोई संकट या कठिनाई जा जाये तो उससे डरकर भागना नहीं है, बल्कि डटकर वीरता से सामना करना है। इस घटना को सुनाते हुए स्वामी विवेकानन्द ने न्यूयार्क में दिये अपने भाषण में कहा था – “यह सबके जीवन के लिए एक सबक है कि संकट का सामना करो, वीरता से सामना करो। बंदरो की तरह जीवन की कठिनाईयां भी पीछे हट जाएंगी, यदि हम उनसे दूर भागने की वजाय निडर होकर सामने खड़े हो जाएं । कायर कभी भी विजय हासिल नहीं कर सकता। हमें डर और कष्टों का सामना करना होगा, उनके स्वतः दूर चले जाने की आशा छोड़कर ।
यही है जीवन की सफलता का अचूक सूत्र – ” कष्ट – कठिनाईयों से डरकर भागो मत, डटकर सामना करो, तभी सफलता मिलेगी ।” जीवन है तो संघर्ष है। संघर्षों के बिना जीवन ही निरर्थक है। इसलिए जीवन में आगे बढ़ना है, लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो मार्ग में आने वाली अनेकानेक बाधाओं, समस्याओं से डरकर भागना नहीं है, उनका वीरता के साथ मुकाबला करना है । जीवन है तो केवल सुख ही नहीं होंगे, पग-पग पर अनेक दुख भी आएंगे, तब उन दुखों से घबराकर निराश नहीं होना है, उनका भी सामना हिम्मत के साथ करना है। बस फिर देखना, बाधाओं, कठिनाईयों और दुखों को हराकर अन्ततः हम विजय प्राप्त कर ही लेंगे ।
एक व्यक्ति समुद्र में नहाने के लिए जाता है, किन्तु समुंद्र में उठती ऊँची-ऊँची लहरों को देखकर रूक जाता है। किनारे पर बैठकर सोचता है कि लहरों को शांत होने दो फिर आराम से नहा लेगे । जरा सोचिये, वह व्यक्ति क्या कभी भी समुद्र में नहा पाएगा? ‘नहीं’। यदि समुद्र में नहाना है तो ऊँची लहरों का सामना करना ही होगा। ठीक इसी तरह जीवन में लक्ष्य को यदि प्राप्त करना ही है तो फिर मार्ग में आने वाली बाधाओं से डरकर किनारे बैठने के बजाय डटकर सामना करते हुए आगे बढ़ते रहना होगा ।
स्वामी विवेकानन्द ने स्वामी ब्रह्मानन्द (राखाल ) को लिखे एक पत्र में कहा था- “ओ राष्ट्रयोद्धा, जागो और स्वप्न देखना बंद करो। मुत्यु तुम्हें भी पकड़ ही लेगी… ..तब तक डरो मत। रणक्षेत्र से दूर भागना यह मैंने कभी नहीं किया है, तो क्या अब ऐसा होगा ? क्या हारने के डर से मैं मुकाबला छोड़ दूंगा ?”.. “जब मैं मुकाबला करता हूँ तो सिंह की तरह, कमर कसकर । मैं समझता हूँ कि वही व्यक्ति हीरो है, वरन् भगवान है जो यह कहता है- ‘परवाह मत करो, निडर बनो । हे वीर, मैं तुम्हारे साथ हूँ ।’ ऐसे ईश्वरीय पुरूष को मैं हजारों बार प्रणाम करता हूँ। उनकी उपस्थिति ही संसार को पवित्र बनाती है। वे ही संसार के रक्षक हैं। दूसरी ओर जो लोग सदैव यही विलाप करते हैं . ‘आगे मत जाओ, वहाँ यह खतरा है, वहाँ वो खतरा है।’ वे हमेशा डर से कांपते रहते हैं । ऐसे लोग कृपा के पात्र हैं। वे कभी भी कुछ हासिल नहीं कर सकते ।”
लेखक साहित्यसाधक एवं संस्कृतिकर्मी हैं।
सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू दोनों पर विवेकानंद की छाप आई है कुछ कम कुछ अधिक ।
दोनों ने अपने लेखन में इसे खुले तौर पर स्वीकार किया है।