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भगवान राम और माता सीता के दिव्य विवाह का पर्व : विवाह पंचमी

विवाह पंचमी हिंदू धर्म का एक पावन पर्व है, जो भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह के उपलक्ष्य में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास (अगहन) की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन धर्म, संस्कृति, और परंपराओं में रचा-बसा हुआ है, जो भारतीय समाज के पारिवारिक मूल्यों को समर्पण, प्रेम, और आदर्श जीवन के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करता है।

वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में भगवान राम और सीता के विवाह का विस्तृत वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया था, जिसमें यह शर्त रखी गई थी कि जो भी शिव धनुष को तोड़ सकेगा, वही सीता से विवाह करेगा। भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ और भाई लक्ष्मण के साथ उस स्वयंवर में भाग लिया। भगवान राम ने शिव धनुष को एक ही प्रयास में तोड़ दिया और माता सीता से विवाह संपन्न हुआ। वाल्मीकि रामायण में इसका वर्णन इस प्रकार है:

तं दृष्ट्वा जनको राजा विस्मितोऽभूत् सवत्सलः।
रामं च परया प्रीत्या धनुषोऽग्रे स मानयन्॥ (बालकांड, सर्ग 67)
इस कथा के अनुसार, भगवान राम और माता सीता का विवाह न केवल मानव समाज के लिए एक प्रेरणा है, बल्कि यह दांपत्य जीवन में समर्पण और सहयोग का प्रतीक भी है।
तुलसीदास कृत रामचरितमानस में विवाह प्रसंग (बालकांड) का अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण वर्णन मिलता है। भगवान राम और माता सीता के विवाह के समय के कुछ प्रसिद्ध दोहे और उनके अर्थ इस प्रकार हैं:

1-मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजर बिहारी। (बालकांड, 236.2)
अर्थ: हे मंगल के निवास भगवान श्रीराम! आप समस्त अमंगलों का नाश करने वाले हैं। महाराज दशरथ के पुत्र स्वरूप में आप अजर और अमर हैं। आप कृपा करके प्रकट होकर समस्त जगत का कल्याण करें। यह दोहा भगवान राम और सीता के विवाह की पृष्ठभूमि में उनके मंगलमय स्वरूप को दर्शाता है।

2- देखि जानकी मंगल मूर्ति, हरषित मन हिय सुधि लही।
निज कुल रीति नीतिनय जानी, चतुर अनुजहि सिख दीन्ह कही॥ (बालकांड, 287.2)
अर्थ: जनकपुर में मंगल मूर्ति श्रीराम को देखकर जनकनंदिनी सीता का मन हर्षित हो गया और उनका हृदय प्रेम से भर गया। श्रीराम ने अपने कुल की रीति और नीति को समझते हुए अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उचित शिक्षा और निर्देश दिए।

3- मोरि सुधारिहि सो कुलवन्ती, तासु हृदय बिचार।
मातु पिता गुरु कुलमनि जानी, सदा करहिं सत्कार॥ (बालकांड, 295.3)
अर्थ: श्रीराम माता सीता के हृदय की भावनाओं को भलीभांति समझते हैं। वे विचार करते हैं कि जो मेरी पतिव्रता और कुलवन्ती होगी, वह सदैव माता-पिता, गुरु, और कुल के सभी सदस्यों का आदर और सत्कार करेगी। यह दोहा श्रीराम के आदर्श वैवाहिक दृष्टिकोण को व्यक्त करता है।

4 – जाय भवनु जनु भूमि परि गिरी सिखर सरिस सुखदु।
सुरपति सभा सुमंगल मनि, भवन भरतहि बदि बुधु॥ (बालकांड, 294.3)
अर्थ: जनकपुर का महल मानो पृथ्वी पर स्थित स्वर्ग के समान प्रतीत हो रहा था। यह देवताओं की सभा के समान शोभायमान और सभी मंगलकारी घटनाओं से युक्त था। इस पवित्र स्थान पर श्रीराम और माता सीता का विवाह सम्पन्न हुआ।

5 – सीय राममय सब जग जानी। करहु प्रनाम जोरि जुग पानी॥ (बालकांड, 311.2)
अर्थ: इस संसार में सब कुछ सीता और राम से व्याप्त है। यह विचार कर भक्त दोनों हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करते हैं। इस दोहे में विवाह के अवसर पर भगवान राम और सीता की अखंड एकता को दर्शाया गया है, जो सृष्टि की मंगलमय स्थिति का प्रतीक है।

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के बालकांड में भगवान राम और माता सीता के विवाह को न केवल दिव्य प्रसंग के रूप में प्रस्तुत किया है, बल्कि इसे समाज और परिवार के आदर्श स्वरूप के रूप में भी दर्शाया है।

विवाह पंचमी केवल भगवान राम और माता सीता के विवाह का उत्सव नहीं है, बल्कि यह समाज में आदर्श वैवाहिक जीवन के महत्व को उजागर करता है। यह दिन भगवान राम और माता सीता के दिव्य विवाह की स्मृति में मनाया जाता है। इसे वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

इस पर्व पर राम और सीता की पूजा करके जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की कामना की जाती है। विवाह पंचमी को वैवाहिक जीवन में समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

जनकपुर, जिसे मिथिला नगरी के नाम से भी जाना जाता है, विवाह पंचमी का मुख्य केंद्र है। यहाँ भगवान राम और माता सीता के विवाह का उत्सव भव्य तरीके से मनाया जाता है। यह पर्व पाँच दिनों तक चलता है। भगवान राम की बारात अयोध्या से जनकपुर आती है, और विवाह का आयोजन यहाँ के राम-जानकी मंदिर में होता है। इस अवसर पर जनकपुर में विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, और अन्य पात्रों की झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं।

उत्तर भारत में विवाह पंचमी को भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में राम-सीता की प्रतिमाओं का प्रतीकात्मक विवाह संपन्न किया जाता है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रामायण के प्रसंगों का मंचन किया जाता है।

भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान राम और माता सीता की पूजा करते हैं। राम-सीता विवाह की झांकियां और कीर्तन का आयोजन होता है। कई लोग अपने वैवाहिक जीवन को शुभ बनाने के लिए इस दिन पूजा करते हैं।

विवाह पंचमी का मुख्य उद्देश्य भगवान राम और माता सीता के आदर्श दांपत्य जीवन को प्रस्तुत करना है। यह समाज को यह संदेश देता है कि वैवाहिक जीवन का आधार प्रेम, विश्वास, और आपसी सहयोग होना चाहिए। यह पर्व परिवार और समाज में सामंजस्य बनाए रखने के महत्व को भी रेखांकित करता है।

 

One thought on “भगवान राम और माता सीता के दिव्य विवाह का पर्व : विवाह पंचमी

  • December 6, 2024 at 12:45
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    जय जय सियाराम🙏🙏🙏

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