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विपक्षी विरोध के बीच देश में लागु हुआ वक्फ़ कानून : क्या है पूरा मामला?

नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025 – वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025, जिसे हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की मंजूरी मिलने के बाद कानून का दर्जा प्राप्त हुआ है  तथा 8 अप्रैल को केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इसे लागु करने की अधिसूचना जारी की है। सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के विरोध में अभी तक 15 याचिकाएं दायर की गई हैं, वहीं केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैवियट दायर की, और याचिकाओं पर कोई आदेश पारित करने से पहले सुनवाई का अनुरोध किया। ज्ञात हो कि  यह विधेयक, जो पिछले कई महीनों से राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र रहा, अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती का सामना कर रहा है। सरकार इसे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और सुधार का कदम बता रही है, जबकि विपक्ष और मुस्लिम संगठन इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दे रहे हैं।

वक्फ बिल का सफर

वक्फ (संशोधन) विधेयक पहली बार 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा पेश किया गया था। विपक्ष के भारी हंगामे और विरोध के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया। जेपीसी, जिसकी अध्यक्षता बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल ने की, ने 6 महीने तक इस पर चर्चा की और 14 संशोधनों को मंजूरी दी। 30 जनवरी 2025 को जेपीसी ने अपनी 655 पेज की रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपी। इसके बाद, बजट सत्र 2025 में यह बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ। लोकसभा में 288 सांसदों ने इसके पक्ष में और 232 ने विरोध में वोट दिया, जबकि राज्यसभा में 128 के मुकाबले 95 वोटों से यह पास हुआ। अंततः 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ यह कानून बन गया।

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वक्फ बिल में क्या है नया?

वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन करने वाला यह विधेयक कई बड़े बदलाव लेकर आया है। इसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

  1. गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य किया गया है।
  2. महिलाओं का प्रतिनिधित्व: बोर्ड में कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं की नियुक्ति का प्रावधान है, जिसे सरकार ने लैंगिक समानता की दिशा में कदम बताया है।
  3. कलेक्टर की भूमिका: वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और स्वामित्व निर्धारण का अधिकार अब जिला कलेक्टर को दिया गया है। सरकारी संपत्तियों को वक्फ से बाहर करने का भी प्रावधान है।
  4. दान की शर्त: अब केवल वही व्यक्ति वक्फ संपत्ति दान कर सकता है, जो कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो और संपत्ति का मालिक हो।
  5. अपील का अधिकार: वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अंतिम मानने का प्रावधान हटाकर हाई कोर्ट में अपील की सुविधा दी गई है।
  6. पारदर्शिता के लिए सत्यापन: वक्फ संपत्तियों के दावों के लिए अनिवार्य सत्यापन प्रक्रिया लागू की गई है।
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इसके अलावा, 1923 का मुस्लिम वक्फ अधिनियम निरस्त कर दिया गया है, और नए कानून का नाम “समेकित वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995” (UWMEED Act) रखा गया है।

सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार और बीजेपी का कहना है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के मैनेजमेंट में पारदर्शिता लाएगा और भ्रष्टाचार व अतिक्रमण जैसे मुद्दों को रोकेगा। गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा, “यह संसद का बनाया हुआ कानून है, इसे सभी को मानना होगा। अगर कांग्रेस ने 2013 में तुष्टीकरण के लिए वक्फ कानून को कठोर नहीं बनाया होता, तो आज यह संशोधन लाने की जरूरत नहीं पड़ती।” सरकार का यह भी दावा है कि इससे मुस्लिम महिलाओं और गरीबों को फायदा होगा। बीजेपी सांसद दिनेश शर्मा ने इसे “मुस्लिम समुदाय के गरीबों और महिलाओं के लिए वरदान” करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

कानून बनने के तुरंत बाद कांग्रेस, AIMIM, और आम आदमी पार्टी (AAP) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं। याचिकाओं में इसे समानता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी गई है। हालांकि, सरकार का तर्क है कि अनुच्छेद 15 के तहत महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार उसे है, और यह कानून मुस्लिम महिलाओं के हितों को संरक्षित करता है। अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की तारीख तय नहीं की है, लेकिन यह मामला आने वाले दिनों में और गरमा सकता है।

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