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भारत के पुनः जगद्गुरु बनने के पथ प्रदर्शक स्वामी विवेकानंद

शिकागो (अमेरिका) में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में पहुँचने से पूर्व स्वामीजी को अनगिनत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। तत्पश्चात ११ सितंबर १८९३ के पावन दिवस पर उनके मुख से गुरु रामकृष्ण प्रेरित ऐसी ओजस्वी वाणी गूंजी कि आज भी दुनिया याद करती है।

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विवेकानंद शिला स्मारक और माननीय एकनाथ रानाडे जी

माननीय एकनाथ रानाडे जी का व्यक्तित्व अविस्मरणीय है। स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की प्रासंगिकता वर्तमान समय में भी बरकरार रखने में एकनाथ जी का बड़ा योगदान रहा है। साहित्य से लेकर स्मारक तक, स्मारक से संगठन तक की स्थापना करने में एकनाथ जी ने अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया।

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राष्ट्रसेवा से ही सार्थक जीवन : स्वामी विवेकानन्द

स्वामीजी कहते हैं- ‘देशभक्त बनो, जिस राष्ट्र ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े-बड़े काम किए हैं, उसे प्राणों से भी प्यारा समझो।…. भारत तभी जगेगा, जब विशाल हृदयवाले सैंकड़ों स्त्री-पुरूष भोग-विलास और सुख की सभी इच्छाओं को विसर्जित कर मन, वचन और शरीर से उन करोड़ों भारतीयों के हित के लिए सचेष्ट होंगे जो दरिद्रता तथा मूर्खता के अगाध सागर में निरन्तर डूबते जा रहे हैं।’

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पूर्ण एकाग्रता से लक्ष्य साधो : स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द ने बिना कुछ कहे उस युवक के हाथ से बन्दूक ली और एक के बाद एक लगातार बारह छिलके पर सटीक निशाना लगाया। सारे युवक आश्चर्यचकित हो सोचने लगे कि स्वामी निश्चित ही वे कोई बड़े निशानेबाज हैं। स्वामी जी उनकी मनःस्थिति भाँपकर बोले – ” मैंने अपने जीवन में कभी भी गोली नहीं चलाई है बन्धु । आज ये जो निशाना ठीक लगा है उसकी सफलता का रहस्य है- पूर्ण एकाग्रता । “

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भागो मत, सामना करो स्वामी विवेकानंद

“यह सबके जीवन के लिए एक सबक है कि संकट का सामना करो, वीरता से सामना करो। बंदरो की तरह जीवन की कठिनाईयां भी पीछे हट जाएंगी, यदि हम उनसे दूर भागने की वजाय निडर होकर सामने खड़े हो जाएं । कायर कभी भी विजय हासिल नहीं कर सकता। हमें डर और कष्टों का सामना करना होगा, उनके स्वतः दूर चले जाने की आशा छोड़कर ।

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