स्वदेशी आंदोलन

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20 मई 1932 सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी विपिन चंद्र पाल का निधन

स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता विपिन चंद्र पाल न केवल एक क्रांतिकारी चिंतक थे, बल्कि उन्होंने आंदोलन को वैचारिक आधार देने के साथ-साथ देशभर में जनजागरण की लहर भी चलाई। “लाल, बाल, पाल” की त्रिमूर्ति में एक प्रमुख स्तंभ रहे पाल ने बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी हुकूमत को खुली चुनौती दी और स्वदेशी आंदोलन की आधारशिला रखी।

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futuredधर्म-अध्यात्म

विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए हिंदुओं को एक करने का प्रयास करता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

वैश्विक अशांति के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारत में समरस और संगठित हिंदू समाज निर्माण का प्रस्ताव पास किया है। इस प्रस्ताव में भारत की प्राचीन संस्कृति के महत्व और राष्ट्र के विकास के लिए सनातन संस्कारों के पालन पर जोर दिया गया है। संघ के प्रयासों से सामाजिक समरसता, पर्यावरणीय जागरूकता और नागरिक कर्तव्यों की भावना बढ़ रही है।

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futuredइतिहासविविध

भारतवर्ष के अमृतकाल मे वंदे मातरम की प्रासंगिकता

विश्व इतिहास मे नारों का अपना इतिहास रहा हैं, कभी कभी तो एक नारा पूरे आंदोलन को बदल के रख देता हैं। इतिहास मे ऐसे कई उदाहरण हैं, जैसे स्वराज मेरा जन्मसिद्धह अधिकार हैं, गरीबी हटाओ आदि आदि। वर्तमान के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मे भी हमने देखा होगा की कैसे कुछ नारे “एक हैं तो सेफ हैं” या “बटेंगे तो कटेंगे” पूरे चुनाव मे हावी रहा

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स्वतंत्रता संग्राम के दार्शनिक योद्धा : महर्षि अरविंद

महर्षि अरविंद का वास्तविक नाम अरविंद घोष था उनका जन्म 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। पिता डॉक्टर कृष्ण धन घोष एक प्रतिष्ठित चिकित्सक और प्रभावशाली व्यक्ति थे

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स्वदेशी आंदोलन के आर्य नायक पंजाब केसरी लाला लाजपतराय

आर्य समाज से संबंधित होने के कारण वे अपनी बात को तथ्य और तर्क के साथ रखना उनके स्वभाव में आ गया था। घर में आध्यात्मिक और धार्मिक पुस्तकों का मानों भंडार था। इनके अध्ययन के साथ उन्होंने वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और रोहतक तथा हिसार आदि नगरों में वकालत करने लगे थे।

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पुरुषोत्तम दास टंडन का भारत विभाजन का विरोध और राजभाषा हिन्दी के लिए संघर्ष

सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन एक ऐसे राजनेता थे जिन्होंने राजनैतिक सक्रियता के साथ भारत राष्ट्र के

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