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वैदिक काल से राष्ट्रीय जनचेतना तक की यात्रा : गणेशोत्सव विशेष

आदिकाल से गणेश की स्तुति के अलग अलग प्रमाण मिले हैं। इनकी कथा भिन्न-भिन्न है। सतयुग में सिंहासन आरूढ़ विनायक के स्वरूप में पूजा गया जिनकी दस भुजा थी परन्तु मुख तो हाथी का ही था। त्रेतायुग में गणेश मयूरारूढ़, मयूरेश्वर के नाम से विख्यात थे जिनकी छह भुजा थी। द्वापर में इनका वाहन भूषकराज था तब इनकी चार भुजाएं थी। कलि के अंत में ये धुम्रकेत के नाम से अश्व में सवार होंगे इनका वर्ण भी धुम्र होगा।

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आर्यावर्त का द्वार द्वारका और श्रीकृष्ण मिथकीय नहीं

द्वारका 3102 ईसा पूर्व समुद्र के डूब में आ गई। द्वापर युग का अंत और कलियुग का प्रारंभ हुआ इस दौरान यह प्राकृतिक घटना घटी। श्रीमद्भागवत पुराण व अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार कलियुग 18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व की मध्य रात्रि से शुरू हुआ। द्वापरयुग से कलियुग में पृथ्वी में प्रवेश किया

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परंपरा और संस्कृति से सराबोर हरेली तिहार

सावन मास की अमावस्या, जब वसुंधरा हरित परिधान ओढ़ लेती है। गाँव- गाँव के खेत खलिहान, नदी, तालाब जल से

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घिर घिर आये काले कजरारे मेघ : मनकही

मानसून आने का उल्लास आस बांधे उन किसानों की आखों से प्रगट होता है जो जेठ की तपती हुई धरती

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क्या कभी आर्यों ने द्वविड़ों पर हमला किया था?

भारत के आजाद होने के बाद देश के नागरिको को अंग्रेजों के षडयंत्र से मुक्त क्यों नहीं किया जा सका..? यह भी एक विडंबना है! बच्चे पाठ्य पुस्तक पढ़ कर यही जानते समझते हैं कि आर्य एक विदेशी आक्रणकारी हैं। इसी कारण देश में जातिगत मतभेद एवं अन्य भेद अभी भी कायम है। नये डीएनए अनुसंधान के परिणामों को पाठ्यपुस्तकों में स्थान देकर भारत नई पीढी को सत्य से अवगत कराना चाहिए।

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सहिष्णुता और राजनीति के द्वंद्व में फंसा हिन्दू समाज

एक के बाद एक लगातार हिन्दुओं को राजनीतिक दाँव-पेंच में कसा जा रहा है। उनके अधिकारों को खत्म करते कानून बनाए गये। अंग्रेजों ने तो ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चलकर हिन्दुओं पर जैसा कहर बरपाया उसकी मिसाल नहीं दी जा सकती। अंग्रेजों ने हिन्दू शब्द को आयातित बतलाकर हमारे इतिहास में उतार दिया।

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