वैदिक काल से आधुनिक युग तक संस्कृति, परंपरा और पर्यावरण का साथी बाँस
विश्व बाँस दिवस पर जानिए बाँस का महत्व—वेदों और लोक परंपराओं से लेकर आज के पर्यावरणीय और सांस्कृतिक संदर्भ तक, यह पौधा क्यों कहलाता है हरा सोना।
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Read Moreवैदिक ऋषियों के श्लोकों में प्रकृति संरक्षण और ओजोन परत जैसी सुरक्षा अवधारणा का उल्लेख मिलता है। जानें कैसे प्राचीन वैदिक सूत्र आधुनिक पर्यावरण संतुलन से जुड़े हैं।
Read Moreपितृपक्ष पूर्वजों के स्मरण, कुटुम्बीय एकता और प्रकृति से समन्वय का पर्व है। श्राद्ध, तर्पण और पाँच ग्रास परंपरा के माध्यम से यह व्यक्ति, परिवार और समाज को आंतरिक शक्ति और जीवन मूल्य प्रदान करता है।
Read Moreछत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ को केंद्र सरकार की हिंदी सलाहकार समिति में राष्ट्रीय सदस्य नामित किया गया है। यह नियुक्ति हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और तकनीकी शिक्षा में इसके समावेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई है।
Read Moreबिलासपुर में रक्षाबंधन पर 25वें वृक्ष रक्षाबंधन महोत्सव का आयोजन विवेकानंद उद्यान में हुआ, जिसमें वृक्षों को राखी बांधकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया गया।
Read Moreरक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट रिश्ते, सामाजिक एकता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाला भारतीय पर्व है, जो प्रेम, विश्वास और जिम्मेदारी की भावना को मजबूत करता है।
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