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शक्ति, संरक्षण और संस्कृति का प्रतीक : रक्षा सूत्र

भविष्य पुराण में बताया गया है कि रक्षा कवच बांधने की प्रथा की शुरूवात महाराज इंद्र की पत्नी शचि ने किया था। जब देव और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था तब इंद्राणी ने अपने पति की विजय कामना के लिए उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र और चांवल-सरसों को बांधकर उनकी सुरक्षा और विजय की कामना की थी जिससे वे असुरों पर विजय प्राप्त कर सके थे।

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