स्वराज करुण

futuredपुस्तक समीक्षासाहित्य

लोकभाषा से लोकमन तक लाला जगदलपुरी की बाल रचनाओं की जीवंतता

र्तमान पीढ़ी के बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि अपनी 93 साल की जीवन यात्रा के लगभग सात दशक साहित्य साधना में लगा देने वाले साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी ने बड़ों के लिखने के साथ -साथ बच्चों के लिए भी ख़ूब लिखा।

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futuredपुस्तक समीक्षासाहित्य

समकाल की आवाज़ : पुस्तक चर्चा

समकालीन हिन्दी कविता के सशक्त और महत्वपूर्ण रचनाकार,  रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक विजय सिंह छत्तीसगढ़ के जगदलपुर (जिला -बस्तर) के निवासी हैं। उनकी 73 अतुकांत कविताओं का संग्रह ‘समकाल की आवाज़ ‘ सीरिज की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में सामने आया है।उनकी चयनित कविताओं की यह किताब नई दिल्ली के न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा वर्ष 2023 में प्रकाशित की गई है। पुस्तक 132 पेज की है।

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futuredविविध

जगन्नाथ संस्कृति का प्रदेश और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जन्मस्थली है ओड़िशा

उत्कल भूमि बंगाल की खाड़ी में पुरी के समुद्र तट पर विराजमान महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी की छत्रछाया में एक लाख 55 हज़ार 707 वर्ग किलोमीटर में विस्तारित है। नक्शे पर इस राज्य का उदय आज ही के दिन एक अप्रैल 1936 को ‘उड़ीसा’ के नाम से हुआ था ।

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futuredपुस्तक समीक्षासाहित्य

मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को राह दिखाने वाली पुस्तक : बोल -बत्तीसा

‘बोल -बत्तीसा’ में उनके स्वयं के दोहों और मुक्तकों सहित अन्य कवियों की काव्य पंक्तियों का भी समावेश है. ये छोटी -छोटी रचनाएँ ‘गागर में सागर’ जैसी हैं. पुस्तक के मुख पृष्ठ में यह बताने का प्रयास किया गया है कि मानव जीवन में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए.

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futuredलोक-संस्कृति

ओड़िया भाषा का चलित महानाटक धनु-जात्रा 

स्वर्गीय श्री सुरेन्द्र प्रबुद्ध ने भारतीय नाट्य साहित्य के इतिहास के  तथ्यात्मक अध्ययन के आधार पर अपने आलेख में यह भी बताया था कि ओड़िशा की ‘धनुजात्रा” का इतिहास पांच सौ वर्षों से अधिक पुराना नहीं है। भरत मुनि भारतीय नाट्य साहित्य के आदि पुरुष और प्रवर्तक थे।

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futuredसमाज

हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा के संस्थापक हरिशंकर परसाई

उनकी लोकप्रिय व्यंग्य रचनाओं में ‘सदाचार का ताबीज’,और ‘इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा ‘रानी नागफनी की कहानी’ उनका बहुचर्चित व्यंग्य उपन्यास है। वह हमेशा साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ रहे। धार्मिक और जातीय संकीर्णताओं का उन्होंने अपनी व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से हमेशा विरोध किया। वह अपनी कलम से साम्प्रदायिक शक्तियों का पर्दाफ़ाश भी करते रहे।

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