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संविधान की प्रस्तावना पर थोपे गए दो शब्द : समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता

आज प्रश्न तो यह भी उभरता है कि धर्मनिरपेक्ष जैसा कोई शब्द होता ही नहीं है – और विशेषतः भारत में तो कोई धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता! हमारी श्रुति, गति, मति, रीति, नीति, प्रवृत्ति, प्राप्ति, स्मृति, कृति, स्तुति – आदि सभी कुछ तो स्थायी रूप से धर्म सापेक्ष है। फिर ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे ‘अशब्द’ की भला भारत में क्या आवश्यकता है?

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futuredताजा खबरें

राष्ट्र संविधान दिवस 2024, राष्ट्रपति मुर्मू ने भारतीय संविधान को जीवित और प्रगतिशील दस्तावेज़ बताया

संविधान के 75वें वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय संविधान को एक जीवित और प्रगतिशील दस्तावेज़ बताया, जो बदलते समय के साथ नए विचारों को समाहित करता है।

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