रामलीला

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लिमतरा: जहाँ चार पीढ़ियों ने निभाई भगवान श्रीराम की भूमिका, आज भी जीवंत है रामलीला की परंपरा

दुर्ग जिले के लिमतरा गाँव की रामलीला मंडली आज भी जीवित परंपरा का प्रतीक है। यहाँ चार पीढ़ियों के कलाकारों ने भगवान श्रीराम की भूमिका निभाई और सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाया।

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छत्तीसगढ़ में लोकनाट्य, रासलीला और श्रीकृष्ण भक्ति की सांस्कृतिक परंपरा : जनमाष्टमी विशेष

छत्तीसगढ़ में लोकनाट्य, रासलीला और श्रीकृष्ण भक्ति की परंपरा का इतिहास, प्रमुख कलाकारों का योगदान और सांस्कृतिक महत्व का विस्तृत विवरण।

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चालिस वर्षों से मंचित हो रही है ग्राम तुरमा में रामलीला

जन-जन के हृदय में वास करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी की अद्भुत लीला के मंचन का इतिहास छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदाबाजार जिले के भाटापारा तहसील के अंतर्गत तुरमा नामक गांव में देखने को मिला, जहां पर रामलीला का मंचन सन 1983-84 से अद्यतन होते आ रहा है।

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देवी दुर्गा की आराधना और ऋतु परिवर्तन का पर्व नवरात्रि

नवरात्रि को कृषि और ऋतु परिवर्तन के संदर्भ में भी देखा जाता है। यह समय फसल की कटाई और नई फसल की बुवाई का होता है। शारदीय नवरात्रि विशेष रूप से शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है, जब मौसम बदलता है और धरती पर नई ऊर्जा का संचार होता है।

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छत्तीसगढ़ में आठे कन्हैया और जन्माष्टमी उत्सव

रायगढ़ के राजा भूपदेवसिंह के शासनकाल में नगर दरोगा ठाकुर रामचरण सिंह जात्रा से प्रभावित रास के निष्णात कलाकार थे। उन्होंने इस क्षेत्र में रामलीला और रासलीला के विकास के लिए अविस्मरणीय प्रयास किया। गौद, मल्दा, नरियरा और अकलतरा रासलीला के लिए और शिवरीनारायण, किकिरदा, रतनपुर, सारंगढ़ और कवर्धा रामलीला के लिए प्रसिद्ध थे। नरियरा के रासलीला को इतनी प्रसिद्धि मिली कि उसे ‘छत्तीसगढ़ का वृंदावन‘ कहा जाने लगा।

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प्रदर्शन कलाओं में रघुनंदन

जनजातीय संस्कृति का भी रामायण से नज़दीकी रिस्ता है। यहाँ कातकरी खुद को वानर सेना का वंशज मानते हैं। भील माता शबरी को अपना वंशज मानते हैं।सह्याद्रि क्षेत्र के वनवासी हर साल बोहाडा उत्सव मनाते हैं।

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