रविन्द्र गिन्नौरे

futuredमेरा गाँव मेरा बचपन

स्वच्छ जल और पर्यावरण की प्रहरी फुरफुन्दी

सावन,भादों में बच्चों के बीच इसे पकड़ने के लिए होड़ लग जाती थी, कि किसने कितनी पकड़ी और लाल पंखों वाला राजा किसके हाथ लगा। फुरफुन्दी पकड़ना आसान भी नहीं था। छोटे-छोटे पौधों पर इधर से उधर, कभी आगे, कभी पीछे उड़ने वाली फुरफुन्दी जिसे दबे पांव चुपचाप पकड़ना पड़ता था।

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वृक्षों की रक्षा करने वाले बलिदानियों की स्मृति में लगता है खेजड़ली में मेला

पेड़ों पर चलती कुल्हाड़ी के बीच लोगों ने अपने आपको सामने कर दिया। पेड़ कटे तो नहीं.. पर पेड़ों को बचाते 363 ग्रामीणों ने अपना जीवन पेड़ों के लिए समर्पित कर दिया। ऐसी दर्दनाक घटना 600 साल पहले राजस्थान के खेजड़ली गांव में घटी। पेड़ों की रक्षा करने के लिए ऐसा अनूठा बलिदान संत गुरु जभ्भोंजी के अनुयायी बिश्नोईयों ने किया था।

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गणपति के नाम और स्वरूप पुराणों से तांत्रिक पूजा तक

उपनिषद काल में भी गणपति की पूजा की परम्परा रही। गणपत्युपनिषद इसका प्रमाण है, जिसमें गणेश जी को कर्ता-धर्ता और प्रत्यक्ष तत्व कहा गया है। जिनके रूपों में साक्षात ब्रह्म व आत्मस्वरूप बताया गया है। स्मृति काल में भी गणेश पूजा का विधान रहा। नवग्रहों के पूजन के पूर्व गणेश की पूजा करने का निर्देश है। इनसे ही लक्ष्मी की प्राप्ति सम्भव होती है। पुराण युग में इस पूजा का उज्ज्वल रूप में उदय हुआ।

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वैदिक काल से राष्ट्रीय जनचेतना तक की यात्रा : गणेशोत्सव विशेष

आदिकाल से गणेश की स्तुति के अलग अलग प्रमाण मिले हैं। इनकी कथा भिन्न-भिन्न है। सतयुग में सिंहासन आरूढ़ विनायक के स्वरूप में पूजा गया जिनकी दस भुजा थी परन्तु मुख तो हाथी का ही था। त्रेतायुग में गणेश मयूरारूढ़, मयूरेश्वर के नाम से विख्यात थे जिनकी छह भुजा थी। द्वापर में इनका वाहन भूषकराज था तब इनकी चार भुजाएं थी। कलि के अंत में ये धुम्रकेत के नाम से अश्व में सवार होंगे इनका वर्ण भी धुम्र होगा।

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आर्यावर्त का द्वार द्वारका और श्रीकृष्ण मिथकीय नहीं

द्वारका 3102 ईसा पूर्व समुद्र के डूब में आ गई। द्वापर युग का अंत और कलियुग का प्रारंभ हुआ इस दौरान यह प्राकृतिक घटना घटी। श्रीमद्भागवत पुराण व अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार कलियुग 18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व की मध्य रात्रि से शुरू हुआ। द्वापरयुग से कलियुग में पृथ्वी में प्रवेश किया

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