दुर्बल नहीं, सबल बनो – स्वामी विवेकानंद
बचपन से ही स्वामी विवेकानन्द अपने शारीरिक सौष्ठव पर पूर्ण ध्यान देते थे। वे आमोद-प्रमोद और अध्ययन के साथ – साथ नियमित रूप से लाठी चलाना, मुक्केबाजी, घुड़सवारी, योग व अन्य कई प्रकार के खेल और शारीरिक अभ्यास किया करते थे। वे सदैव कठिन परिश्रम के लिये ताकतवर मांसपेशियों की आवश्यकता पर बल देते थे।
वे कहते – “पहले अपने शरीर का निर्माण करो, केवल तभी तुम अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण प्राप्त कर सकोगे ।” जीवन में श्रेष्ठ और सफल बनने के लिये पहली आवश्यकता है- शारीरिक और मानसिक बल प्राप्त करना । ‘सशक्त तन में ही सशक्त मन रहता है ।’
” शक्ति, शक्ति, शक्ति, यही वह है जिसकी हमें जीवन में सर्वाधिक आवश्यकता है। कमजोर के लिए यहाँ कोई जगह नहीं हैं, न इस जीवन, न ही किसी और जीवन में । दुर्बलता गुलामी की ओर ले जाती है । दुर्बलता हर प्रकार की दुर्गति की ओर ले जाती है- शारीरिक और मानसिक । शक्ति ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु ।’
स्वामी विवेकानन्द के ये शब्द प्रत्येक उस युवा के लिए हैं, जो जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है, जो अपने लक्ष्य को दक्षता के साथ हासिल करना चाहता है । वे कहते हैं- “हमें जो चाहिये वह है शक्ति। इसलिए स्वयं पर विश्वास रखो। अपनी नसों को ताकतवर बनाओ। हमें चाहिये लोहे की मांसपेशियां और स्टील की नसें । हम बहुत रो लिए, अब और नहीं। अपने पैरों पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ और मनुष्य बनो।”
एक बार जब स्वामी विवेकानन्द हिमालय की यात्रा कर रहे थे, तब उन्होंने देखा कि एक वृद्ध थका हुआ, हारा हुआ सा मार्ग में खड़ा अपने सामने स्थित ऊंची चढ़ाई वाले मार्ग को देख रहा था। वह पूर्ण हताश स्वर में स्वामी जी से बोला – ” श्रीमान्, इस चढ़ाई को कैसे पार करूं। मैं एक कदम भी और नहीं चल सकता, मेरी छाती फट जायेगी ।”
स्वामी जी ने वृद्ध की बात शांतिपूर्वक सुनी और कहा- “नीचे अपने पैरों की ओर देखो। आपके पैरों के नीचे जो सड़क है यह वही मार्ग है जिसे आप पार करके यहाँ तक आ गए हैं और सामने भी आप जो मार्ग देख रहे हैं, वह भी बहुत जल्द आपके पैरों के नीचे होगा ।”
इन शब्दों ने उस वृद्ध को उत्साह से भर दिया, वह आगे बढ़ चला और शीघ्र ही ऊंची मंजिल तक पहुंच गया। यही है मन की शक्ति । स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- “तब भी एक नजर पीछे प्राप्त उपलब्धियों पर डालों और तुम पाओगे कि हमने इतना बड़ा मार्ग तो तय कर ही लिया है, आगे तो बहुत थोड़ा बचा है । यही तुम्हें नई ऊर्जा और आगे बढ़ने की ताकत देगा ।”
भारत में विश्व के सर्वाधिक युवा हैं जिस देश के पास युवा-शक्ति की ऐसी विपुल सम्पदा हो, उसे उन्नति के शिखर तक जाने से कोई नहीं रोक सकता । किन्तु, जैसा स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि सर्वप्रथम भारत के युवा को शक्तिशाली बनना होगा।
शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक बल से युक्त सामर्थ्य प्राप्त करना होगा। लक्ष्य के प्रति सजग रहकर आगे बढ़ते हुए निराशा और दुर्बलता के भाव को निकट नहीं आने देना है। पिछली उपलब्धियों से ऊर्जा – उत्साह प्राप्त कर मंजिल तक पहुँचना है।
देश का युवा शक्तिशाली होगा तो राष्ट्र भी शक्तिशाली बनेगा और उन्नति के शीर्ष पर पहुँच सकेगा। स्वामी जी कहते हैं- “आप जिसे चाहें उसका ध्यान कर सकते हैं, पर मैं केवल सिंह के हृदय पर ध्यान केन्द्रित करूंगा। वह मुझे शक्ति देगा।” बनना है जो सिंह के समान वीर और बलवान बनो, भेड़ की तरह डरपोक नहीं। जीवन में सफलता प्राप्त करने की लालसा है तो यह सूत्र सदा स्मरण रखें- “दुर्बल नहीं, सबल बनो।” –
लेखक साहित्यसाधक एवं संस्कृतिकर्मी हैं।